1990 में हुए बहुचर्चित पनवारी कांड से जुड़े मामले में बुधवार को एससी-एसटी कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने 35 वर्षों बाद न्याय की उम्मीद में लगे पीड़ितों को राहत देते हुए 36 आरोपियों को दोषी करार दिया है। इस भयावह घटना में आरोपियों ने दलित समुदाय पर हमला कर कई लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया था। हमले के बाद हालात इतने बिगड़ गए कि करीब 150 परिवारों को अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ा था। लंबे समय से न्याय के इंतजार में रहे पीड़ितों और उनके परिवारों ने अदालत के इस फैसले पर राहत की सांस ली है। हालांकि, सबूतों के आधार में 15 आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया। फिर भी इस निर्णय को पीड़ितों के लिए एक बड़ी कानूनी जीत माना जा रहा है, जिसने उन्हें वर्षों की पीड़ा के बाद कुछ सुकून दिया है।

 

पनवारी कांड: 21 जून 1990 की दर्दनाक घटना 

21 जून 1990 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के थाना सिकंदरा अंतर्गत गांव पनवारी में एक भयावह हिंसा हुई थी, जिसे पनवारी कांड के नाम से जाना जाता है। इस दिन भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात गांव में आनी थी। पनवारी गांव जाट बहुल था और कुछ स्थानीय दबंगों ने इस बारात का विरोध किया। यह विरोध धीरे-धीरे जातीय तनाव में बदल गया और देखते ही देखते जाट और जाटव समुदायों के बीच हिंसक टकराव हो गया। 

 

इस संघर्ष में कई लोगों की जान गई और सबसे अधिक नुकसान जाटव समुदाय को उठानी पड़ी। न सिर्फ पनवारी, बल्कि आस-पास के गांवों में भी हिंसा फैल गई। भरतपुर जैसे अन्य जिलों से भी जाट समुदाय के लोग आगरा पहुंचे और जाटव बहुल इलाकों में हमला किया गया। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि जिले के तत्कालीन डीएम अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह को खुद गांवों में जाकर बैठकें करनी पड़ीं ताकि शांति बहाल की जा सके। केंद्रीय मंत्री रहे रामजीलाल सुमन ने भी हस्तक्षेप किया और दलित समाज की बेटी की बारात चढ़वाने का प्रयास किया लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह सफल नहीं हो सके। इस घटना को आज भी एक दर्दनाक सपने की तरह याद किया जाता है। 

 

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लगभग दस दिनों तक गांव में कर्फ्यू रहा

घटना के दौरान हालात इतने बिगड़ गए कि प्रशासन को कर्फ्यू लगाने के साथ-साथ सेना की भी मदद लेनी पड़ी। एक समुदाय के कुछ लोगों ने दूसरे समुदाय के गांवों और मोहल्लों पर हमला किया, जिससे आसपास के क्षेत्रों, विशेष रूप से आगरा जिले के गांवों में तनाव और हिंसा फैल गई। पुलिस ने बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया, जिनमें कई निर्दोष भी शामिल थे। इस हिंसा के चलते कई परिवारों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और वर्षों तक उन्हें न्याय पाने के लिए अदालतों के चक्कर काटने पड़े।

भयावह हमला जिसने हिला दी थी आगरा की आत्मा

आगरा जिला शासकीय अधिवक्ता (डीजीसी) हेमंत दीक्षित ने बताया कि पनवारी कांड को आगरा के इतिहास का एक काला अध्याय माना जाता है। करीब 250 से 300  जाट समुदाय के लोगों ने जाटवों की बस्ती पर हमला किया था। यह भीड़ हथियारों से लैस थी और उसने जाटव समुदाय के घरों में घुसकर लूटपाट की। कई लोगों को बेरहमी से पीटा गया, जिससे कई गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बाद उपद्रवियों ने घरों में आग लगा दी, जिससे भारी नुकसान हुआ। इस भयावह हमले की रिपोर्ट तत्कालीन थाना प्रभारी (एसओ) ओमवीर सिंह द्वारा थाने में दर्ज कराई गई थी। इसके बाद वर्ष 1994 से इस मामले में कानूनी कार्यवाही और सुनवाई की प्रक्रिया आरंभ हुई, जो आज तक न्याय की उम्मीद में जारी है।

 

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30 मई को होगा सजा का ऐलान

जाटों के हमले का शिकार हुए एक पूर्व फौजी बुधवार को अपने बेटे शमशेर सिंह के साथ एससी-एसटी कोर्ट में गवाही देने पहुंचे। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश पुष्कर उपाध्याय की अदालत ने इस मामले में 36 आरोपियों को दोषी करार दिया, जिससे वर्षों से न्याय की आस लगाए इस बुजुर्ग ने राहत की सांस ली। उनके बेटे शमशेर सिंह भावुक हो गए और अदालत के फैसले के प्रति आभार जताया।

 

डीजीसी हेमंत दीक्षित ने बताया कि इस मामले में कुल 73 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। इनमें से एक आरोपी को किशोर घोषित कर दिया गया, जबकि 22 की अब तक मौत हो चुकी है। अदालत ने 15 आरोपियों को बरी कर दिया और 36 को दोषी माना है। अब 30 मई को कोर्ट सजा का ऐलान करेगी, जिसका पीड़ित पक्ष और समाज लंबे समय से इंतजार कर रहे थे।

 

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जाटव समुदाय कौन होते है?

जाटव समुदाय मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में पाया जाने वाला एक दलित समुदाय है। यह अनुसूचित जाति के अंतर्गत आता है। जाटव लोग परंपरागत रूप से चमड़े का काम करने वाले चमार समुदाय का हिस्सा रहे हैं, लेकिन समय के साथ उन्होंने विभिन्न पेशों और सामाजिक गतिविधियों में अपनी पहचान बनाई है।

 

जाटव समुदाय डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों से काफी प्रभावित है और बौद्ध धर्म को अपनाने वालों में भी इनकी संख्या अच्छी-खासी है। वे सामाजिक समानता और शिक्षा पर जोर देते हैं। उत्तर प्रदेश में जाटव समुदाय की बड़ी आबादी बहुजन समाज पार्टी (BSP) की समर्थक रही है, जिसकी स्थापना कांशीराम ने की थी और मायावती ने इसे आगे बढ़ाया।