सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की जमानत की शर्तों को आसान कर दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का आर्टिकिल या ओपीनियन लिख सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उन मामलों पर नहीं जो अभी कोर्ट में चल रहे हैं यानी कि विचाराधीन हैं। 

 

कोर्ट ने विशेष जांच दल (SIT) को यह भी आदेश दिया कि वह इस मामले की जांच चार हफ्तों में पूरी करे। सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दी थी। उन्हें हरियाणा पुलिस ने 18 मई को 'ऑपरेशन सिंदूर' से जुड़े उनके दो फेसबुक पोस्ट के कारण गिरफ्तार किया था। उस समय कोर्ट ने हरियाणा सरकार को SIT बनाकर मामले की जांच करने का आदेश दिया था।

 

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हुई थीं दो शिकायतें

महमूदाबाद की गिरफ्तारी दो शिकायतों के बाद हुई थी। एक शिकायत हरियाणा राज्य महिला आयोग ने की थी। उनके फेसबुक पोस्ट में सेना की संयम की तारीफ की गई थी, लेकिन 'युद्ध को भड़काने वाले और दिखावटी देशभक्ति' के खिलाफ चेतावनी दी गई थी। 

 

हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने शिकायत की कि महमूदाबाद ने महिला अधिकारियों, खासकर कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह, जो सीमा पार हमले के बाद मीडिया को जानकारी दे रही थीं, उनका अपमान किया। इस शिकायत के बाद उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई। दूसरा मामला राय पुलिस स्टेशन में स्थानीय बीजेपी यूथ लीडर और जठेरी गांव के सरपंच योगेश की शिकायत पर दर्ज हुआ।

पिछली सुनवाई में क्या हुआ?

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने SIT को आदेश दिया कि वह महमूदाबाद के खिलाफ जांच को केवल उनके दो फेसबुक पोस्ट और उनसे जुड़े FIR तक सीमित रखे। महमूदाबाद के वकील कपिल सिब्बल ने चिंता जताई थी कि SIT, FIR से आगे जाकर जांच कर सकती है और उन्होंने बताया कि SIT ने महमूदाबाद से उनके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस मांगे थे।

 

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कोर्ट ने कहा कि SIT को महमूदाबाद का फोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि दोनों FIR पहले से रिकॉर्ड में हैं। कोर्ट ने कहा, 'डिवाइस की क्या जरूरत है? जांच का दायरा बढ़ाने की कोशिश न करें। SIT अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन दाएं-बाएं जाने की जरूरत नहीं है।'