उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के दिहुली में 44 साल पहले हुई एक भयावह घटना एक बार फिर चर्चा में है। दोबारा चर्चा में आने की वजह यह है कि 1981 में हुए दिहुली नरसंहार के मामले में अब अदालत का फैसला आया है। कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है। दो दोषियों पर दो-दो लाख रुपये और एक लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया गया है। यह मामला दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुए नरसंहार का है। उस दिन 24 दलितों को एक साथ मार डाला गया था। यह फैसला एडीजे विशेष डकैती कोर्ट ने सुनाया है। जब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो तीनों आरोपी कोर्ट में ही रोने लगे।

 

 बुधवार को तीनों दोषी कप्तान सिंह, राम सेवक और रामपोल का मैनपुरी जिला कारागार से लाया गया और कोर्ट में पेश किया गया। फैसला सुनाए जाने के वक्त तीनों के परिजन भी कोर्ट में ही मौजूद थे और फांसी की सजा होते ही तीनों के परिजन भी रोने लगे। निचली अदालत के फैसले के बाद ये तीनों 30 दिन के भीतर हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं। इसी केस में अन्य आरोपी लक्ष्मी, इंदल, रुखन और ज्ञानचंद्र उर्फ गिनना अभी फरार हैं। जिन लोगों को सजा सुनाई गई है उनमें रामसेवक की उम्र 80 साल, कप्तान सिंह की उम्र 73 साल और रामपाल की उम्र 76 साल है।

 

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किसने-किसने गंवाई जान?

 

रिपोर्ट के मुताबिक, 1981 में हुए इस सामूहिक नरसंहार में दलित समुदाय से आने वाले प्रीत सिंह, गजाधर, गंगा सिंह, धन देवी, मुकेश, शीला, भूरे, मानिकचंद्र, लीलाधर, गीतम, लालाराम, आशा देवी, दाताराम, मुनेश, भरत सिंह, शिवदयाल, रामसेवक, राजेश, राजेंद्री, शृंगार वती, शांति, रामदुलारी, राम प्रसाद और ज्वाला प्रसाद को मार डाला गया था।

इस केस में जो फैसला सुनाया गया है वह बनवारी लाल, कुमार प्रसाद, हरि नारायण और लायक सिंह की गवाही के आधार पर तय हुआ। अब इन सबकी मौत हो चुकी है। इस केस में कुमार प्रसाद ने बताया था कि 24 लोगों की हत्या के साथ-साथ लूट भी की गई थी। इस केस में कुल 20 आरोपी थे। तीन को सजा सुनाई गई है, 4 फरार हैं और 1981 से अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है।

दिहुली में क्या हुआ था?

 

यह पूरा मामला 18 नवंबर 1981 का है। रात के समय राधे और संतोष की अगुवाई में लुटेरों का एक गिरोह इस गांव में पहुंचा। खुद को पुलिस बताने वाले इन लोगों ने गांव वालों पर हमला बोल दिया और 24 दलितों को गोली मार दी। दरअसल, 1978 में राधे और संतोष ने कुंवरपाल जाटव नाम के शख्स की हत्या कर दी थी। 1980 में पुलिस के साथ राधे-संतोष गैंग की एक मुठभेढ़ हुई थी। इसी एनकाउंटर में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था और 4 दलित सरकारी गवाह बन गए थे। राधे और संतोष ठाकुर समुदाय से आते थे।

 

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इन दोनों को शक था कि दिहुली गांव के इन दलितों में से कुछ लोग पुलिस के लिए मुखबिरी कर रहे हैं। इसी शक के आधार पर इन लोगों के गिरोह ने 24 लोगों को मार डाला था। सबसे पहले ज्वाला प्रसाद नाम के शख्स को आलू के खेत में गोली मारी गई उसके बाद इन हमलावरों ने पूरे गांव में अंधाधुंध गोलियां चलाईं। लगभग ढाई घंटे तक चले इस कांड ने पूरे गांव को सदमे में डाल दिया था। बाकी के लोग गांव छोड़कर भाग गए थे। कुल 20 लोगों के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दायर की थी। मुख्य आरोपी राधे और संतोष की मौत ट्रायल के दौरान ही हो चुकी है।