'वह मेरा दोस्त है सारे जहां को है मालूम,
दगा करे वह किसी से तो शर्म आए मुझे।'
हरियाणा के नए कार्यकारी डीजीपी ओपी सिंह ने कातिल शिफाई के इस शेर के साथ राज्य की अहम जिम्मेदारी संभाली संभाली थी। उन्होंने पुलिसकर्मियों को लिखी अपनी पहली चिट्ठी में एक साफ संदेश दिया था कि पुलिसकर्मी संभल जाएं। शत्रुजित कपूर के जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के बाद उन्हें हरियाणा का डीजीपी नियुक्त किया गया था। IPS वाई पूरन कुमार की खुदकुशी के बाद पुलिस अधिकारियों के रवैये पर ही सवाल उठे थे। डीजीपी ओपी सिंह ने अपनी चिट्ठियों से पुलिसकर्मियों को बेहतर राह पर चलने के कई संदेश दिए हैं। उन्होंने बहादुरगढ़ में सब्जी वाले को सड़क से हटाने वाले एक्शन को लेकर पुलिसकर्मियों को फटकार लगाई है।
डीजीपी ओपी सिंह एक बार फिर अपने बयानों की वजह से चर्चा में हैं। उन्होंने बहादुरगढ़ में सब्जी वाले को जबरन सड़क से हटाने के पुलिसिया ऐक्शन को लेकर पुलिस को नसीहत दी है। उन्होंने शायराना अंदाज में कहा है कि पुलिस को तीर भी चलाना होता है लेकिन परिंदों की जान भी बचानी होती है।
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डीजीपी ओपी सिंह ने लिखा, पुलिस का काम ही कुछ ऐसा है-
मुख़्तसर सी ज़िन्दगी के अजीब से अफ़साने हैं,
यहाँ तीर भी चलाने हैं और परिंदे भी बचाने हैं।
ओपी सिंह, डीजीपी, हरियाणा:-
बहादुरगढ़ में सब्ज़ी वाले को सड़क से हटाने की कार्रवाई पर मैंने डीसीपी बहादुरगढ़ और सीपी झज्जर से बात की है। एसीपी दिनेश अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर है। दर्जनों मेडल जीतकर खेल कोटे से पुलिस में भर्ती हुए हैं। उनके सामने सड़क को सड़क रखने का काम था। जो मिला उसी से अतिक्रमण हटाने लगे। जब सब्जी की टोकरी पर बुलडोजर चले तो कहानी तो बननी ही थी। मैंने सीपी को कहा है कि फील्ड ऑफिसर्स को कैमरे से भरे वातावरण में अपना काम सावधानी से करने की ट्रेनिंग दिलाएं।
चिट्ठियों से कैसे पुलिस व्यवस्था में सुधार कर रहे ओपी सिंह?
डीजीपी ओपी सिंह अपने आदेशों और चिट्ठियों की वजह से चर्चा में हैं। उन्होंने अपना कार्यभार संभालते वक्त ही इशारा कर दिया था कि वह पुलिस व्यवस्था में व्यापक सुधार के पक्षधर हैं। उन्होंने अपने शायराना अंदाज में पुलिस को नसीहत देते हुए कहा था कि 'बाघ और बकरी' एक घाट पर रहें और किसी को गुमान न हो, न किसी को डर लगे।
ओपी सिंह, डीजीपी, हरियाणा:-
हिंसा और छलावा प्रकृति के स्वरूप में है। सभ्य जीवन इसके विरुद्ध अमन का सतत संघर्ष है। प्रजातंत्र का आश्वासन है कि शेर और बकरी एक ही घाट में पानी पीयें और शेर को अपनी ताकत का गुमान ना हो और ना ही बकरी को अपनी कमजोरी का मलाल। यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी पुलिस को मिली है।
पुलिस व्यवस्था में सुधार के पक्षधर हैं DGP ओपी सिंह
DGP ओपी सिंह ने 22 अक्तूबर को लिखी चिट्ठी में लिखा, 'मैं चाहता हूं कि आप यह समझें कि सरकारी दफ्तर लोगों के पैसे से बने हैं। ये उनकी सहायता और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हैं। मेरा मानना है कि पब्लिक डीलिंग एक बेहतरीन कला है। इसका संबंध आपके ऑफिस के डिजाइन, सॉफ्ट-स्किल और प्रबंधन क्षमता से है। सबसे पहले अपने ऑफिस की टेबल का साइज छोटा करें। अपनी और विजिटर्स की कुर्सी एक जैसी करें। अपनी कुर्सी पर तौलिए का इस्तेमाल बिल्कुल न करें। इसका कोई मतलब नहीं है। जिन्हें पब्लिक डीलिंग की समझ नहीं, उन्हें चौकी-थानों से हटाएं।'
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ओपी सिंह, डीजीपी:-
लोगों को गेट से विजिटर्स रूम तक पहुंचने के लिए मेट्रो रेल स्टेशन के प्रोटोकॉल की तरह फुट स्टेप्स, साइनेज अपनाएं। डीएवी पुलिस-पब्लिक स्कूल के इच्छुक छात्रों को स्टीवर्ड की ट्रेनिंग दें। उन्हें विजिटर्स को गेट पर रिसीव करने और उन्हें विजिटर्स रूम तक पहुंचने में सहायता करने के स्वयंसेवा के काम में लगाएं। परेशान लोगों को भटकना नहीं पड़ेगा और बच्चों को सॉफ्ट स्किल और संवेदनशीलता की ट्रेनिंग मिलेगी।
'बदमाशों को जेल में ठूंसो, चैन की सांस ले जनता'
देश राज्यों में बंटा है। राज्य जिलों में और जिले थानों में। अपने थानों में ठगों-बदमाशों को भगाए रखने के लिए आफको सिपाही, हवलदार, थानेदार, लाठी, बंदूक, गाड़ी और मोटर नियमों की ताकत मिली है। आम राय है कि थानेदार की मर्जी के बगैर परिंदा भी पर नहीं मार सका, पत्ता भी नहीं हिल सकता। इतना भरोसा तो लोक भगवान पर भी नहीं करते। सब आपके ऊपर है। अगर आप ठगों-बदमाशों को जेल में ठूसेंगे तो तोल चैन की सांस लेंगे।
उन्होंने शायर तकीर का एक शेर भी लिखा-
'एक ना एक शम्मा अंधेरे में जलाए रखिए,
सुबह होने को है माहौल बनाए रखिए।'
ओपी सिंह, डीजीपी, हरियाणा:-
आप बच्चों को यह भी बताएं कि महंगी से महंगी गाड़ी के इंजन में अगर चीनी डाल दिया जाए तो उसका इंजन सीज हो जाता है। ड्रग्स दिमाग के साथ यही करता है। उनको कहें कि दुनियाभर में उनकी पीढ़ी जेन ज़ी, जेन अल्फा, सिगरेट, शराब और ड्रग्स से दूर हो रही है, क्लाइमेट चेंज, युद्ध और करप्शन से चिंतित है। उनको भी ऐसा ही करना चाहिए।
डीजीपी ओपी सिंह ने अपनी एक और चिट्ठी में लिखा, 'अगर किसी थाना प्रभारी के इलाके में अपराध बढ़ा या जनता का भरोसा टूटा, तो जिम्मेदारी तय होगी। मेज पर बैठकर पुलिसिंग नहीं हो सकती, बल्कि गलियों, स्कूलों, चौपालों में जाकर लोगों से सीधा संवाद करना ही सच्ची पुलिसिंग है।'
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क्यों निराला है ओपी सिंह का अंदाज?
ओपी सिंह, दूसरे उच्चाधिकारियों की तुलना में पुलिसवादी सुधार के पक्षधर हैं, इसलिए उनकी जमकर तारीफ हो रही है। वह पुलिस की कठोर छवि की तुलना में, मददगार छवि को ज्यादा तरजीह देते हैं। उन्होंने पुलिसकर्मियों से अपनी कार्यशैली बदलने की अपील की है। उन्होंने पद संभालने के साथ ही कह दिया था कि कोई भी अपराधी किसी गरीब को देखकर इतना मजबूत न समझे कि वह कुछ भी कर सकता है और गरीब को यह अहसास न हो कि उसके साथ कुछ भी हो सकता है।
ओपी सिंह, संवाद के पक्षधर हैं। उन्होंने जनसेवा और सुधार पर जोर दिया है। उन्होंने पुलिस प्रोटोकॉल को सुधारने की बात कही है। उनका कहना है कि टेबल छोटी होनी चाहिए, बिना तौलिए की कुर्सी होनी चाहिए, पीड़ितों से मिलने के लिए विजिटर रूम होना चाहिए। अगर कोई देर रात फोन करता है तो उसे तत्काल प्रतिक्रिया दें।
IPS पूरन सिंह की खुदकुशी के बाद पुलिस की विभागीय व्यवस्था पर सवाल उठे थे। सीनियर अधिकारियों की मनोवृत्ति पर सवाल उठे थे। खुद निचले रैंक के अधिकारियों के मन में डर बना हुआ था। कार्यवाहक डीजीपी ओपी सिंह आए दिन पुलिसकर्मियों को मोटिवेट कर रहे हैं।
