हरियाणा पुलिस ने वर्ष 2026 के लिए अपराध‑रोधी रणनीति को नया तेवर देते हुए हिंसक अपराधियों, ड्रग नेटवर्क, साइबर अपराध और उभरते सुरक्षा खतरों पर सख्त और प्री‑एम्पटिव (पूर्व‑नियोजित) फोकस का संकेत दिया है। मधुबन स्थित हरियाणा पुलिस अकादमी में हुई उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में डीजीपी ओ.पी. सिंह ने साफ कहा कि 'हरियाणा की आखिरी गली तक दबदबा पुलिस का होना चाहिए, अपराधियों का नहीं।'

 

रणनीति के केंद्र में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को 100 हिंसक अपराधियों की लाइव निगरानी की जिम्मेदारी देना शामिल है, जबकि हर जिले को अपने 20 सबसे खतरनाक अपराधियों की अलग सूची तैयार कर उन पर कड़ी नजर रखने को कहा गया है। इनमें हत्या, रंगदारी, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और संगठित गिरोहों से जुड़े आरोपी और सजायाफ्ता अपराधी शामिल रहेंगे, जिन पर लगातार निगरानी, कानूनी पाबंदियां और आर्थिक जांच के जरिए दबाव बनाए रखने की बात कही गई।

 

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सिर्फ रेड नहीं, सज़ा और डि‑एडिक्शन भी

इसी के साथ, शहरी इलाकों में रंगदारी, सीमावर्ती जिलों में ड्रग सप्लाई रूट और ग्रामीण बेल्ट में जुआ‑शराब और बदमाश तत्वों वाले इलाकों को क्राइम हॉटस्पॉट मानकर वहां लगातार 'डोमिनेशन' (दबदबा) वाली पुलिस मौजूदगी पर जोर दिया गया। डीजीपी ने साफ किया कि लक्ष्य सिर्फ घटना के बाद कार्रवाई नहीं, बल्कि अपराध की तैयारी, संसाधन जुटाने और नेटवर्किंग को पहले ही चरण में तोड़ना है।

 

 

 


नशे के खिलाफ मोर्चे पर 2026 के लिए फोकस 'कमर्शियल क्वांटिटी' वाले मामलों पर रहेगा, जहां सख्त जांच, मजबूत चार्जशीट और कोर्ट में सज़ा की दर बढ़ाने को प्राथमिकता दी जाएगी। ड्रग माफिया की अवैध कमाई की पहचान कर उसे कुर्क करने की कार्रवाई को अनिवार्य हथियार के रूप में देखा जा रहा है, ताकि नेटवर्क की आर्थिक कमर तोड़ी जा सके।

डि-एक्टिवेशन सेंटर का विस्तार

बैठक में नशा‑मुक्ति व्यवस्था को सामाजिक न्याय विभाग से स्वास्थ्य विभाग में स्थानांतरण के हालिया सरकारी फैसले को भी अहम अवसर के रूप में देखा गया। वरिष्ठ अधिकारियों ने माना कि इससे डि‑एडिक्शन सेंटरों का विस्तार और अपग्रेडेशन तेज़ी से हो सकता है, बशर्ते पुलिस, स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन के बीच करीबी समन्वय बने।


जिलों से अपेक्षा की गई कि वे सिर्फ पकड़‑धकड़ और जागरूकता तक सीमित न रहकर युवाओं और दोहराए जाने वाले नशा‑उपयोगकर्ताओं को ठोस उपचार और पुनर्वास विकल्प तक पहुंचाने में भी सक्रिय भूमिका निभाएं।

हेल्पलाइन से लेकर कोर्टरूम तक

मधुबन बैठक ने साफ दिखा दिया कि साइबर फ्रंट पर लड़ाई सिर्फ टेक्निकल नहीं, कानूनी भी है। डीजीपी ओ.पी. सिंह ने माना कि साइबर अपराधी संसाधन‑सम्पन्न, तकनीकी रूप से दक्ष और कई बार महंगे वकीलों से लैस होते हैं, ऐसे में पुलिस की तैयारी सतही नहीं हो सकती।


रणनीति के तहत साइबर हेल्पलाइन और जिला‑स्तरीय रिस्पॉन्स सिस्टम को और मजबूत करने, शिकायत से एफआईआर, चार्जशीट और ट्रायल तक पूरी प्रक्रिया की नियमित समीक्षा करने पर जोर दिया गया। डिजिटल सबूतों की कस्टडी, फॉरेंसिक प्रोटोकॉल और गवाह‑सुरक्षा जैसी बातों के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर को कड़ा बनाने और शुरू से ही अभियोजन पक्ष के साथ तालमेल पर बल दिया गया।

स्लीपर सेल, सीमापार नेटवर्क

बैठक में पारंपरिक अपराध से आगे बढ़कर सुरक्षा से जुड़ी नई चुनौतियों पर भी गंभीर चर्चा हुई। हरियाणा की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए आतंकवादी स्लीपर सेल की पहचान और उन्हें सक्रिय होने से पहले ही नाकाम करने को प्रमुख प्राथमिकता बताया गया। सिंह ने अधिकारियों को आगाह किया कि स्थानीय शरारती तत्वों को पाकिस्तान‑मूल के अपराधियों या संगठित गिरोहों के साथ हाथ मिलाकर सनसनीखेज वारदातों की साजिश रचने का कोई अवसर न मिले।

 

बदले हुए भू‑राजनीतिक परिदृश्य के बीच संदिग्ध घुसपैठ और अवैध प्रवास पर भी सतर्क नज़र रखने की बात कही गई, जिसमें संदिग्ध बांग्लादेशी नागरिकों की गतिविधियों की वैधानिक निगरानी भी शामिल है। अधिकारियों को संकेत दिया गया कि यह निगरानी कानून, प्रक्रिया और मानवाधिकारों के दायरे में रहकर, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और जन‑सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानकर की जाए।

विकसित भारत और हरियाणा की ‘यूएसपी’

पूरी चर्चा के दौरान डीजीपी ने राज्य की सुरक्षा जरूरतों को केंद्र की 'विकसित भारत 2047' दृष्टि से जोड़कर देखा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि वे खुद को सिर्फ क्राइम‑कंट्रोल एजेंसी नहीं, बल्कि हरियाणा के दीर्घकालिक आर्थिक‑सामाजिक विकास के सुरक्षा सहयोगी के रूप में देखें।

 

सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा, 'हरियाणा की सबसे बड़ी ताक़त अपराधियों पर क़ानून का दबदबा (पुलिस हेगेमनी) है; यही हमारी इन्वेस्टमेंट और टैलेंट डेस्टिनेशन के रूप में यूएसपी है और इसे हमें पूरे जोर से सुरक्षित रखना है।' 

 

उनका संदेश था कि निवेश, रोज़गार और विकास की विश्वासनीयता का सीधा संबंध इस बात से है कि क्या गिरोह, रंगदारी नेटवर्क और संगठित अपराधी खुद को ‘हावी’ महसूस करते हैं या ‘घिरा हुआ’।

 

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लास्ट माइल की लड़ाई

आख़िर में कहानी फिर थाने पर आकर टिकती है, जिसे सिंह 'नागरिक सुरक्षा का पहला स्तंभ' मानते हैं। उन्होंने ज़िला पुलिस नेतृत्व से कहा कि वास्तविक नेतृत्व वहीं मापा जाएगा, जहां थाना‑स्तर पर एसएचओ स्थानीय इंटेलिजेंस मजबूत करे, दोहराए जाने वाले अपराधियों पर नज़र रखे, अपराध की तैयारी के हर चरण को बाधित करे और जनता के बीच पुलिस की मौजूदगी को पेशेवर और भरोसेमंद रूप में स्थापित करे।

 

'साइबर फ्रॉड से लेकर नॉर्को नेटवर्क और टेरर स्लीपर सेल तक, हम तेज़ इंटेलिजेंस और मजबूत क़ानून का मेल करके उभरते अपराध से तीन कदम आगे रहेंगे,' सिंह ने बैठक के बाद कहा।