सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि पति द्वारा पत्नी से घरेलू खर्चों का हिसाब-किताब रखने के लिए कहना अपने आप में मानसिक क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता। इस फैसले के तहत कोर्ट ने पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दर्ज कराई गई FIR को पूरी तरह रद्द कर दिया।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में अदालतों को अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए। कई बार छोटी-मोटी रोजमर्रा की असहमतियां या घरेलू झगड़े आपराधिक मामलों में बदल जाते हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि भारतीय समाज में अक्सर पुरुष परिवार के वित्तीय मामलों पर नियंत्रण रखना चाहते हैं, लेकिन यह अपने आप में क्रूरता का आधार नहीं बन सकता।
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क्या था मामला?
इस मामले में पत्नी ने पति पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। उनमें शामिल था कि पति अपने माता-पिता को नियमित रूप से पैसे भेजता था, रोजाना खर्च का हिसाब एक्सेल शीट में रखने के लिए मजबूर करता था, गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद उसका पर्याप्त ध्यान नहीं रखा तथा उसके वजन को लेकर बार-बार ताने मारे। पत्नी ने इन आधारों पर पति के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत FIR दर्ज कराई थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी आरोपों की पड़ताल के बाद कहा कि आरोपों में कोई ठोस और विशिष्ट घटना का उल्लेख नहीं है। कोर्ट ने कहा, 'पति का अपने माता-पिता को पैसे भेजना कोई अपराध नहीं है। इसी तरह खर्चों का हिसाब मांगना, भले ही एक्सेल शीट में मांगा जाए, यदि इससे पत्नी को कोई गंभीर मानसिक या शारीरिक क्षति नहीं हुई, तो इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता।'
कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने कहा कि वैवाहिक जीवन में कई बार छोटी-छोटी बातों पर असहमति हो जाती है, लेकिन हर असहमति को आपराधिक मामले में बदलना उचित नहीं। कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि घरेलू हिंसा के मामलों में शिकायतकर्ता को विशिष्ट घटनाओं, तिथियों और प्रभाव का स्पष्ट उल्लेख करना चाहिए।
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कोर्ट ने आगे कहा, 'भारतीय समाज में अभी भी वित्तीय नियंत्रण को लेकर पुरुषों की सोच अलग हो सकती है, लेकिन इसे सीधे क्रूरता या घरेलू हिंसा का रूप देना सही नहीं। कानून का इस्तेमाल बदले की भावना से या पारिवारिक विवादों को सुलझाने के बजाय आपराधिक दबाव बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।'
