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उत्तराखंड घूमने जाने के लिए अलग से देने होंगे पैसे, जल्द लागू होगा नियम

उत्तराखंड में बढ़ते वाहनों की संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने नियम बनाया है कि इस पैसे का उपयोग पर्यावरण संरक्षण, वनीकरण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए किया जाएगा।

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प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

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उत्तराखंड सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और सड़कों के रखरखाव के लिए एक बड़ा कदम उठाते हुए राज्य में ग्रीन सेस (Green Cess) लागू करने का फैसला किया है। यह नया पर्यावरणीय शुल्क 1 जनवरी 2026 से प्रभावी होगा। खास बात यह है कि यह सेस मुख्य रूप से राज्य के बाहर से आने वाले वाहनों पर लगाया जाएगा, जबकि स्थानीय वाहनों को इससे राहत दी गई है।

 

सरकार का कहना है कि पहाड़ी राज्य होने के कारण उत्तराखंड में भारी वाहनों की आवाजाही से पर्यावरण, सड़क ढांचे और वायु गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है। ग्रीन सेस से मिलने वाली राशि का उपयोग सड़क मरम्मत, पर्यावरण संरक्षण, वनीकरण और प्रदूषण नियंत्रण जैसे कार्यों में किया जाएगा।

 

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वाहनों के अनुसार लगेगा सेस

सरकारी अधिसूचना के अनुसार, ग्रीन सेस की दरें वाहनों की श्रेणी और वजन के आधार पर तय की गई हैं। हल्के वाहनों पर यह शुल्क अपेक्षाकृत कम रखा गया है, जबकि भारी मालवाहक वाहनों और बड़े बसों पर अधिक सेस लगाया जाएगा। जानकारी के मुताबिक यह शुल्क लगभग 80 रुपये से लेकर 700 रुपये तक हो सकता है। इससे उन वाहनों पर ज्यादा भार पड़ेगा जो नियमित रूप से दूसरे राज्यों से उत्तराखंड में प्रवेश करते हैं।

 

राज्य सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि उत्तराखंड में रजिस्टर्ड वाहनों को इस ग्रीन सेस से मुक्त रखा जाएगा, ताकि स्थानीय लोगों और व्यवसायों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ न पड़े। वहीं, आपातकालीन सेवाओं से जुड़े वाहनों और कुछ विशेष श्रेणियों को भी छूट देने का प्रावधान किया गया है।

किन्हें रहेगी छूट

दूसरे राज्यों के कुछ वाहनों को छूट भी दी जाएगी। दूसरे राज्यों के दो पहिया वाहनों, केंद्र- राज्य सरकार के वाहनों, दूसरे प्रदेश के सरकारी वाहनों, ट्रैक्टर, रोड रोलर, कंबाइन हार्वेस्टर इत्यादि पर भी ग्रीन सेस लागू नहीं होगा।

 

इसके अलावा शव वाहन, एंबुलेंस, फायर टेंडर और सेना के वाहन भी ग्रीन सेस से मुक्त रहेंगे। साथ ही इलेक्ट्रिक वाहन, सोलर हाइब्रिड और सीएनजी से चलने वाले वाहनों को भी ग्रीन सेस से छूट मिलेगी।

डिजिटल सिस्टम का लिया जाएगा सहारा

परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ग्रीन सेस वसूली के लिए राज्य की सीमाओं पर चेक पोस्ट और डिजिटल सिस्टम का सहारा लिया जाएगा, जिससे पारदर्शिता बनी रहे और राजस्व लीकेज की संभावना कम हो। साथ ही, इस व्यवस्था को लागू करने से पहले सभी तकनीकी और प्रशासनिक तैयारियां पूरी कर ली जाएंगी।

 

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ग्रीन सेस से प्राप्त धन का सही उपयोग किया गया, तो इससे पर्यटन पर पड़ने वाले दबाव, प्रदूषण और सड़क क्षति जैसी समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, ट्रांसपोर्ट कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि सेस का बोझ अंततः आम उपभोक्ताओं पर न डाला जाए।

 

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कुल मिलाकर, ग्रीन सेस को उत्तराखंड सरकार का पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने का प्रयास माना जा रहा है, जिसकी असली प्रभावशीलता इसके क्रियान्वयन के बाद ही सामने आएगी।

 

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