सड़कों की खराब हालत को लेकर हर किसी को शिकायत होती है। कुछ लोग इसकी शिकायत अधिकारियों से भी करते हैं। लेकिन महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के रहने वाले 28 साल के एक्टिविस्ट चैतन्य पाटिल मुंबई-गोवा हाइवे पर पैदल घूम रहे हैं और इसकी रिपोर्ट सीधे सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को भेज रहे हैं। 


हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चैतन्य पाटिल ने 490 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। उन्होंने इसे 'रास्ता सत्याग्रह' का नाम दिया है। उन्होंने 29 दिन में अपना सफर पूरा किया। उन्होंने 9 अगस्त को रायगढ़ के पलास्पे से अपनी यात्रा शुरू की थी और 20 अक्टूबर तक इसे खत्म किया। NH-66 पर पैदल चलकर उन्होंने गड्ढों, एक्सीडेंट स्पॉट, रोड साइन, पुलस और दूसरी खतरनाक चीजों को डॉक्यूटमेंट किया। उनका दावा है कि उन्होंने वह सारी चीजें डॉक्यूमेंट की, जो लोगों की जान को खतरे में डालती हैं। 


चैतन्य ने कहा, 'मेरा एकमात्र मकसद मुंबई-गोवा नेशनल हाइवे को सुरक्षित, एक्सीडेंट फ्री और अच्छी क्वालिटी का बनाना है, ताकि लोग बिना किसी डर के यात्रा कर सकें। खराब सड़कों की वजह से लोगों की जान खतरे में नहीं पड़नी चाहिए।'

 

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कौन हैं चैतन्य पाटिल?

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 28 साल के इंजीनियरिंग ग्रेजुएट चैतन्य पाटिल 2019 से मुंबई-गोवा हाइवे प्रोजेक्ट को लेकर चिंता जता रहे हैं। चैतन्य रायगढ़ जिले के कासू गांव के रहने वाले हैं।


उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने फोन कॉल, ईमेल और सोशल मीडिया के जरिए सड़क सुरक्षा से जुड़े खतरों को लेकर अधिकारियों से संपर्क किया है। उनका दावा है कि उन्होंने जिन बातों की शिकायत की, उनमें से कई गड्ढों को 24 से 48 घंटे के अंदर भर दिया गया।


पिछले साल उन्होंने पलास्पे-मानगांव स्ट्रेच के लिए GPS बेस्ड फोटोग्राफिक डेटा भी तैयार किया और इसे मुख्यमंत्री, NHAI और संबंधित अधिकारियों के साथ शेयर किया, जिसके बाद कुछ मरम्मत का काम हुआ।

 

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पैदल यात्रा से क्या हासिल हुआ?

चैतन्य पाटिल ने 29 दिन की पैदल यात्रा की। उन्होंने 59 ऐसी जगहों की पहचान की, जहां खतरा था। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट शिवसेना (यूबीटी) सांसद अरविंद सावंत के जरिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को सौंपी है।


उन्होंने बताया कि सर्विस रोड समेत करीब 75 से 85 किलोमीटर का काम अभी भी बाकी है। खासकर उन हिस्सों में जहां पुल का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि अपने सफर के दौरान उन्होंने हाइवे से लोहे के टुकड़े और टूटी हुई कांच की बोतलों के मलबे को भी इकट्ठा किया।


चैतन्य ने कहा, 'मैंने बचपन से मुंबई-गोवा हाइवे का काम देखा है और हादसों और रुके हुए प्रोजेक्ट्स को करीब से देखा है। यह पैदल यात्रा उन मुद्दों पर ध्यान खींचने की एक कोशिश है, जिनकी वजह से लोगों की जान गई है।'