मध्य प्रदेश में गधों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है। प्रदेश के नौ जिलों में एक भी गधा नहीं है। पिछले तीन दशक में गधों की संख्या में करीब 94 प्रतिशत की गिरावट आई है। साल 1997 में जहां गधों की संख्या 49,289 थी तो वहीं 28 साल बाद 2025 में यह आंकड़ा घटकर 3,052 हो गया है। मध्य प्रदेश में हुई पशुगणना में कई चौंकाने वाली आंकड़े सामने आए हैं।

 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 1.5 करोड़ गाय हैं। लगभग एक करोड़ 9 लाख बकरियां हैं। भैसों की संख्या भी एक करोड़ है। घोड़ों की संख्या 10 हजार के नीचे पहुंच गई। 558,324 भेड़ें और 89,177 सूअरों की संख्या है। सबसे अधिक संकट गधों, खच्चर और ऊंटों पर मंडरा रहा है। ऊंटों की कुल संख्या 2,896  और सिर्फ 972 खच्चर हैं।

 

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विदिशा जिले में एक समय गधों की संख्या 6,400 से भी ज्यादा थी। अब यहां सिर्फ 171 गधे बचे हैं। राजधानी भोपाल में इनकी संख्या सिर्फ 56 है। सबसे अधिक 332 गधे नर्मदापुरम जिले में हैं। 232 के साथ छतरपुर दूसरे स्थान पर है। मुरैना में 228 और रीवा जिले में 226 गधे की बचे हैं। उमरिया, हरदा, सिवनी, निवाड़ी और डिंडोरी समेत कुल 9 जिलों में एक भी गधा नहीं बचा है।

 

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एक समय ऐसा भी था जब ग्रामीण भारत में गधों की पीठ पर बोझा ढोया जाता था। अपने वजन से अधिक भार उठाने और दुर्गम इलाकों में चलने की क्षमता के कारण गधों का इस्तेमाल माल ढुलाई में खूब होता था। मगर अब ये न के बराबर दिखते हैं। पूरे देश में गधों की आबादी तेजी से गिर रही है। 2022 में जारी सरकारी पशुधन जनगणना के मुताबिक देशभर में गधों की कुल संख्या 1,20,000 बची है। 2012 से 2019 के बीच करीब 61 फीसद की कमी आई है।


माना जाता है कि मशीनीकरण, परिवहन के नए साधन और गधों के अवैध व्यापार की वजह से इनकी संख्या में गिरावट आई है। चीन गधों की खाल खरीदता है। इससे 'एजियाओ' दवा बनती है। इसे गधे की खाल उबालकर तैयार किया जाता है। हालांकि भारत में गधों के मारने पर प्रतिबंध हैं। बावजूद इसके इनकी संख्या में गिराटव देखने को मिल रही है।