असम में कथित रूप से फर्जी एनकाउंटरों का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने असम के मानवाधिकार आयोग (AHRC) को निर्देश दिए हैं कि वह फर्जी एनकाउंटर के इन दावों की जांच करे। याचिका में दावा किया गया है कि असम सरकार ने साल 2014 में जारी की गई सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का उल्लंघन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में गाइडलाइन जारी की थीं कि पुलिस एनकाउंटर के केस में किस तरह से जांच की जाएगी। असम सरकार ने अपने एक एफिडेविट में कहा है कि लगभग एक साल के अंदर 171 एनकाउंटर हुए जिसमें कुल 56 लोग मारे गए और 145 लोग घायल हुए। 

 

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्य कांत और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने सुनवाई की। इस बेंच ने कहा कि लोगों के अधिकारों के रक्षक के रूप में मानवाधिकार आयोगों की भूमिका बेहद अहम है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि असम मानवाधिकार आयोग इस मामले में निष्पक्ष और त्वरित जांच करे। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि पीड़ित और उनके परिवार के लोगों को पर्याप्त मौका दिया जाए और सार्वजनिक नोटिस निकालकर उन सबको न्योता दिया जाए जो एनकाउंटरों को फर्जी बता रहे हैं। साथ ही, ऐसे दावे करने वाले लोगों की पहचान भी गोपनीय रखी जाए।

 

यह भी पढ़ें- DMK ने MNM के लिए छोड़ी एक सीट, कमल हासन जाएंगे राज्यसभा

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

 

इस तरह के मामलों में जो पीड़ित हैं, वे किसी भी तरह से पीछे न रह जाएं इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन्हें जरूरत पड़े उन्हें असम की स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की ओर से मदद भी मुहैया कराई जाए। असम सरकार का पक्ष रखने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, 'इस पर आपको फिर से सोचना चाहिए। इससे ब्लैकमेलिंग बढ़ सकता है। इससे कुछ ऐसी चीजें नॉर्मलाइज हो सकती हैं, जो मैं कहना नहीं चाहता हूं।' इस पर जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, 'हममें सिस्टम पर भरोसा रखना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति चाहता है तो वह याचिकाकर्ता से बात कर सकता है।' 

 

 

PUCL गाइडलाइंस का उल्लंघन हुआ या नहीं? इस बात पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हमने पहले कहा है कि मामले रिपोर्ट करने बनाने का तंत्र बनाने का काम इस अदालत का है। याचिकाकर्ता ने कई ऐसे उदाहरण दिए हैं जिनसे लगता है PUCL गाइडलाइन्स के मुताबिक, प्रक्रियाओं का उल्लंघन नहीं किया गया है। फौरी तौर पर कुछ मामलों को छोड़कर यह कहना मुश्किल है कि गाइडलाइन्स का उल्लंघन किया गया है।'

 

यह भी पढ़ें- 'वे उसे चाहते हैं, जिस पर उनका हक नहीं', शशि थरूर ने PAK को जमकर धोया

कोर्ट में किसने, क्या कहा?

 

याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद की ओर से वकील प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और आरोप लगाए कि असम में पिछले कुछ साल से PUCL गाइडलाइन्स का बड़े स्तर पर उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि असम में कई FIR तो पीड़ित के खिलाफ ही लिख दी गईं। प्रशांत भूषण ने कहा कि जब यह मामला हाई कोर्ट में लंबित था तब 135 एनकाउंटर ऐसे हुए जिनमें लोगों को गोली मारी गई। 

 

वहीं, असम सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि PUCL गाइडलाइन्स का उल्लंघन नहीं किया गया है। उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि इस तरह की जांच करने से उन अधिकारियों का हौसला टूटेगा जो देश की रक्षा के लिए आतंकी हमलों और उग्रवादी हमलों में अपनी जान की भी परवाह नहीं करते। 

 

यह भी पढ़ें- सोर्स कोड, फंडिंग और देरी, क्या है कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की कहानी?


इसी मामले पर जब फरवरी 2025 में कोर्ट में सुनवाई हुई थी तब असम पुलिस ने कहा था कि अधिकारियों के खिलाफ जांच किए जाने से उनका हौसला टूट जाएगा। इससे पहले, यह मामला गौहाटी हाई कोर्ट में गया था लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी थी कि राज्य सरकार पहले ही हर मामले में जांच कर रही है, इसलिए अलग से कोई अन्य जांच करने की कोई जरूरत नहीं है। 


क्या है यह पूरा मामला?

 

दरअसल, असम के एक वकील आरिफ मोहम्मद येसिन ज्वाद्दर ने एक याचिका दायर करके राज्य में पुलिस एनकाउंटर का मुद्दा उठाआ था। उन्होंने आरोप लगाए थे कि मई 2021 से लेकर याचिका दाखिल किए जाने तक असम पुलिस ने अलग-अलग मामलों में कुल 80 फर्जी एनकाउंटर किए। रोचक बात यह है कि असम में 2021 में ही हिमंत बिस्व सरमा की अगुवाई वाली सरकार बनी थी। याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद ने मांग की थी कि इस मामले में एक स्वतंत्र एजेंसी जैसे कि CBI, SIT या किसी दूसरे राज्य की पुलिस से जांट करवाई जाए।

 

इस याचिका पर सबसे पहले 17 जुलाई 2023 को नोटिस जारी किया गया। इसमें असम सरकार के अलावा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और असम मानवाधिकार आयोग से भी जवाब मांगा गया। अप्रैल 2024 में कोर्ट ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता इसके बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी दें। कोर्ट के इस सुझाव पर याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद ने तिनसुकिया एनकाउंटर केस के पीड़ितों का एफिडेविट दाखिल किया। इस एनकाउंटर में दीपज्योति नियोग, बिस्वनाथ बुर्गोहैन और मनोज बुर्गोहैन को कथित रूप से पुलिस ने गोली मारकर घायल कर दिया था।

 

यह भी पढ़ें- जबरन पद से हटाए जाएंगे जस्टिस वर्मा? सरकार लाएगी महाभियोग प्रस्ताव!

 

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाए कि इस के दो पीड़ितों बिस्वनाथ और मनोज के परिजन ने इनके लापता होने की रिपोर्ट लिखने वाली चाही लेकिन संबंधित थाने के इंचार्ज ने शिकायत लिखने से इनकार कर दिया और कहा कि ये लोग प्रतिबंधित उग्रवादी संगंठन ULFA में शामिल हो गए हैं। जब इन लोगों के एनकाउंटर हो गए तब एफआईआर लिखी गई।

 

यह भी आरोप है कि असम को ढोल्ला थाने के इनचार्ज ने खुद को ही इस मामले में जांच अधिकारी नियुक्त कर लिया जबकि वह खुद इस एनकाउंटर में शामिल थे। पुलिस की तरफ से कहा गया था कि एनकाउंटर में मारे जाने से पहले दीपज्योति नियोग ने उन्हीं की पिस्टल छीन ली थी। इस मामले पर जब सुनवाई हुई तब कोर्ट ने भी इस पर चिंता जताई और कहा कि यह कानून के लिए ठीक नहीं है। 

 

अक्तूबर में सुप्रीम कोर्ट ने डेटा मांगा कि क्या ऐसे मामलों में कोई जांच शुरू की गई है। इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में सिर्फ यह देखना है कि PUCL बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में जारी की गई गाइडलाइन्स का उल्लंघन किया गया है या नहीं।