तेलंगाना की एक सुरंग में फंसे 8 मजदूरों को बाहर निकालने की कोशिश पिछले चार दिनों से चल रही हैं। 22 फरवरी को नागरकुरनूल जिले में सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था जिसके बाद 2 इंजीनियर समेत 6 मजदूर फंस गए। सोमवार को, तेलंगाना के मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव ने कहा कि फंसे हुए व्यक्तियों के बचने की संभावना 'बहुत कम' है और उन्हें बचाने में 'कम से कम तीन से चार दिन' लगेंगे। दरअसल, दुर्घटना वाली जगह कीचड़ और मलबे से भरा हुई है, जिससे बचावकर्मियों के लिए सुरंग के अंदर जाना असंभव हो गया है। 

 

बता दें कि मजदूरों को बचाने के लिए रैट माइनर्स की एक टीम कार्य में जुटी हुई है। यह वहीं टीम है जिसने 2023 में उत्तराखंड में सिल्कयारा सुरंग के अंदर फंसे निर्माण श्रमिकों को बचाया था। मंत्री ने कहा, 'ईमानदारी से कहूं तो उनके बचने की संभावना बहुत, बहुत, बहुत, बहुत कम है। क्योंकि, मैं खुद सुरंग के अंदर तक गया था जो कि दुर्घटना स्थल से लगभग 50 मीटर दूर था। सुंरग में 25 फीट तक कीचड़ जमा हो गया है। जब हमने मजदूरों के नाम पुकारे तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इसलिए ऐसा लगता है कि उनके जिंदा रहने की कोई संभावना न हो।'

 

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सुरंग में फंसे लोगों में कौन-कौन

तेलंगाना के श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) परियोजना की सुरंग में फंसे लोगों की पहचान उत्तर प्रदेश के मनोज कुमार और श्री निवास, जम्मू-कश्मीर के सनी सिंह, पंजाब के गुरप्रीत सिंह और झारखंड के संदीप साहू, जेगता जेस, संतोष साहू और अनुज साहू के रूप में हुई है। आठ लोगों में से दो इंजीनियर, दो ऑपरेटर और चार मजदूर हैं। 

 

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अबतक का अपडेट, जानें

भारतीय नौसेना के विशिष्ट मरीन कमांडो (MARCOS) सुरंग के अंदर फंसे आठ लोगों को बाहर निकालने के लिए राहत अभियान में शामिल हो गए हैं।

 

2023 में उत्तराखंड की सिल्क्यारा सुरंग से मजदूरों के सफल बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली एक टीम तेलंगाना में भी बचाव प्रयास में शामिल हो गई है। 

 

सुरंग के अंदर लोगों का पता लगाने के लिए खोजी कुत्तों को भी बुलाया गया लेकिन सुरंग में जलभराव के कारण कुत्ते आगे नहीं जा पा रहे है। 

 

तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क और सिंचाई मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी आज दुर्घटना स्थल पर पहुंचे। 

 

तेलंगाना सरकार ने सुरंग में फंसे आठ लोगों के बचाव के संबंध में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और राष्ट्रीय भौगोलिक अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों के अलावा एलएंडटी की ऑस्ट्रेलियाई यूनिट की मदद ली जा रही है।