जबरन धर्मांतरण और समान नागरिक संहिता के बाद पुष्कर सिंह धामी की सरकार का एक और ऐसा नया कानून बन गया है, जो बताता है कि उत्तराखंड कैसे बीजेपी के लिए 'हिंदुत्व की राजनीति' का 'टेस्टिंग ग्राउंड' बनता जा रहा है। अब उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड को खत्म करने वाला कानून आया है। इसे लेकर धामी सरकार ने मॉनसून सत्र में 'अल्पसंख्यक शिक्षा बिल 2025' विधानसभा में पास किया था। इस बिल को अगस्त में कैबिनेट ने मंजूरी दी थी।
 
धामी सरकार के इस बिल को 6 अक्टूबर को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने मंजूरी दे दी है। इसके बाद इसके कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है।
राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने X पर लिखा, 'इस कानून के तहत अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक प्राधिकरण बनाया जाएगा जो अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देने का काम करेगा। साथ ही इस कानून के लागू होने के बाद मदरसा जैसे अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड से मान्यता लेनी होगी।'
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- क्या है कानून: इस का नाम 'अल्पसंख्यक शिक्षा बिल 2025' है। अब यह कानून बन गया है।
- कब से लागू होगा: राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह कानून 1 जुलाई 2026 से लागू किया जाएगा।
- किन पर लागू होगा: मदरसे ही नहीं, बल्कि सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान इसके दायरे में होंगे।
- क्यों लाया गया: इसलिए ताकि उत्तराखंड के सभी छात्रों को बराबर शिक्षा मिल सके।
- क्यों खास है यह: उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां मदरसा शिक्षा बोर्ड खत्म हो गया।
- सरकार ने क्या कहा: सीएम धामी ने कहा इससे शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
- विपक्ष ने क्या कहा: पूर्व सीएम हरीश रावत ने कहा कि इससे मदरसा शिक्षा में मॉडर्नाइजेशन की गति रुक जाएगी।
इस कानून से क्या कुछ बदलेगा?
उत्तराखंड सरकार का नया कानून 1 जुलाई 2026 से लागू होगा। इसके बाद मदरसा शिक्षा बोर्ड कानून 2016 और गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम 2019 खत्म हो जाएंगे।
इस कानून के लागू होने के बाद सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि बाकी अल्पसंख्यक धर्मों के शैक्षणिक संस्थानों को राज्य में अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलेगा।
अब तक सिर्फ मदरसों को ही अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलता था। अब मुस्लिम के साथ-साथ सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को भी अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलेगा। 
सरकार ने बताया कि एक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। इसका काम सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देना होगा। 1 जुलाई 2026 तक सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को इस प्राधिकरण से मान्यता लेनी होगी। जिनके पास मान्यता नहीं होगी, उन्हें बंद कर दिया जाएगा।
इस कानून के लागू होने के बाद, 1 जुलाई 2026 से सभी मदरसों और अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) और नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत पढ़ाया जाएगा। अब तक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों का अपना बोर्ड होता था, जो कोर्स तय करता था। मगर अब मदरसा शिक्षा बोर्ड खत्म हो जाएगा और मदरसों में भी वही पढ़ाया जाएगा, जो उत्तराखंड के बाकी स्कूलों में भी पढ़ाया जाता है।
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सरकार-विपक्ष का क्या है कहना
उत्तराखंड सरकार इसकी तारीफ कर रही है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि मदरसों में कई सालों से सेंट्रल स्कॉलरशिप बांटने में अनियमितताएं, मिड-डे मील में गड़बड़ी और पारदर्शिता की कमी जैसी समस्याएं आ रही थीं।
उन्होंने कहा कि नए कानून राज्य में शिक्षा व्यवस्था को ज्यादा पारदर्शी, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण बनाने में साबित होगा। उन्होंने कहा था कि अब सरकार को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की निगरानी और जरूरी निर्देश जारी करने का अधिकार भी होगा।
सरकार दावा कर रही है कि इससे राज्य की शिक्षा व्यवस्था बेहतर होगी। हालांकि, विपक्ष इस पर सवाल उठा रहा है। उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि 'इसके प्रभाव और दुष्प्रभाव भविष्य में पता चलेंगे। हालांकि, मुझे चिंता है कि इससे मदरसा शिक्षा में आधुनिकीकरण की गति रुक सकती है।' उन्होंने यह भी कहा कि किसी समुदाय को जितना अलग-थलग किया जाएगा, उतनी ही कट्टरता बढ़ेगी, तनाव बढ़ेगा औऱ सामाजिक घृणा बढ़ेगी।
