गुरुवार (17 जुलाई) को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के 'मानगढ़ धाम' में भील जनजाति और आदिवासियों ने एक बड़ी महारैली का आयोजन किया। इसमें हजारों की तादाद में लोग कई राज्यों से शामिल होने के लिए आए। रैली को 'भील प्रदेश सांस्कृतिक महासम्मेलन' नाम दिया गया। महारैली का आयोजन भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और आदिवासी परिवार के बैनर तले हुआ, जिसमें राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भारी संख्या में लोग आए। सभा को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। भीलों और आदिवासियों का यह जमावड़ा राजनैतिक नहीं था बल्कि आदिसावियों के हक के लिए था।
इस महारैली में बांसवाड़ा के सांसद राज कुमार रोत, आदिवासी विधायक, भारत आदिवासी पार्टी के बड़े नेता, अध्यापक, सरकार में बड़े पदों पर बैठे आदिवासी और व्यवसायी पहुंचे। लेकिन इन सबके बीच 'भील प्रदेश सांस्कृतिक महासम्मेलन' का मकसद क्या है? इतनी बड़ी संख्या में चार राज्यों से आदिवासी समुदाय इस महारैली में शामिल होने के लिए क्यों आया। आइए जानते हैं कि इस महारैली का मकसद क्या था...
महारैली का मकसद क्या है?
भील प्रदेश सांस्कृतिक महासम्मेलन का मकसद राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ जिलों को मिलाकर एक अलग ‘भील प्रदेश’ बनाने की मांग पर जोर देना है। इसके साथ ही भील प्रदेश की नदियों के पानी पर भील आदिवासियों के लिए कानून बनाकर जल आरक्षण का प्रावधान करना, अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन में आरक्षण लागू करने समेत 36 मुद्दों को उठाया गया। महारैली में इन मुद्दों में चारों राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों की समस्याओं को शामिल किया है।
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भील आदिवासियों ने इस महारैली कार्यक्रम को पूरी योजना और गंभीरता से किया। रैली को आदिवासी समाज के वरिष्ठ लोगों ने संबोधित किया। कार्यक्रम के दौरान भील समाज के कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दीं। सभी आदिवासी तीर-कमान के साथ पारंपरिक वेषभूषा में शामिल हुए। बता दें कि राजस्थान में भील जनजाति, राज्य की कुल अनुसूचित जनजाति (ST) आबादी का लगभग 29.4 फीसदी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, राजस्थान में भीलों की जनसंख्या 2,805,948 है।
'70 साल में भी हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं'
आदिवासी परिवार के संस्थापक सदस्य कांतिलाल रोत ने इस दौरान कहा, 'भील प्रदेश की मांग कई साल से की जा रही है। हमने कई बार आंदोलन किए और आगे भी करते रहेंगे।' उन्होंने बताया कि राजस्थान और अन्य राज्यों के लोगों ने राजस्थान-मध्य प्रदेश सीमा पर बांसवाड़ा में स्थित मानगढ़ धाम में आयोजित इस कार्यक्रम में भाग लिया।
इस दौरान भंवरलाल परमार ने कहा कि आदिवासी भारत के मूल मालिक हैं। 70 साल में भी हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं। अब आदिवासी डरना छोड़ चुके हैं और भील प्रदेश के लिए संघर्ष तेज होगा। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि भील राजा रहे हैं। डूंगरपुर में 1282 में डूंगर भील राजा थे, जबकि बांसवाड़ा में 16वीं सदी में बांसिया भील शासन करते थे। सलूंबर में 12वीं सदी में सोनारा भील राजा थे। हमारे पूर्वज राजा-महाराजा और महिलाएं रानियां थीं। आज उनके वंशज फुटपाथ पर जीवन बिता रहे हैं।
45 जिलों को मिलाकर बनेगा भील प्रदेश?
उन्होंने कहा कि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 45 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनना चाहिए। परमार ने बताया कि कई आदिवासी क्षेत्रों में सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच रही हैं। महारैली में आदिवासी संगठनों ने स्पष्ट किया कि जब तक भील प्रदेश की मांग पूरी नहीं होती, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि ये आंदोलन आदिवासियों की अस्मिता, अधिकार और इतिहास को दोबारा प्राप्त करने के लिए है।
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सांसद राजकुमार रोत ने जारी किया नक्शा
दरअसल, बांसवाड़ा से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत ने अपने सोशल मीडिया पर 15 जुलाई को 'भील प्रदेश' का कथित 'नक्शा' शेयर किया था। भील प्रदेश का नक्शा शेयर करते हुए सांसद रोत ने लिखा, 'भील प्रदेश की मांग आजादी के पहले से ही उठती आई है, क्योंकि यहां के लोगों की संस्कृति, भाषा, बोली और रीति रिवाज दूसरे प्रदेशों से अलग हैं और आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को बचाने और उसके सरंक्षण के लिए जरूरी है।'
उन्होंने आगे एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र करते हुए लिखा, 'भील राज्य की मांग को लेकर गोविंद गुरु के नेतृत्व में साल 1913 में 1500 से ज्यादा आदिवासी मानगढ़ पर शहीद हुए थे। आजादी के बाद भील प्रदेश को चार राज्य में बांटकर इस क्षेत्र की जनता के साथ अन्याय किया। गोविंद गुरु के नेतृत्व में शहीद हुए 1500 से अधिक शहीदों के सम्मान में भील प्रदेश राज्य बनाना है।'
नेता हिन्दू राष्ट्र की बात कैसे कर सकते हैं?
भारत आदिवासी पार्टी के सांसद रोत कहा कि कुछ लोग कहते हैं जाति के आधार पर राज्य नहीं बन सकता। चलो मैं मानता हूं जाति के आधार पर राज्य नहीं बनेगा लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के नेता किस आधार पर धर्म के नाम पर हिन्दू राष्ट्र की बात कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि भील प्रदेश को लेकर पिछले दो तीन दिन से मीडिया में माहौल बना है। ये विरोधी लोग माहौल बना रहे हैं। दूसरी पार्टी के नेता भील प्रदेश की मांग को गलत ठहरा रहे हैं। उन्हें इतिहास में जाना चाहिए, इतिहास कि जानकारी नहीं।
रोत ने कहा कि साल 1913 में इसी मानगढ़ की पहाड़ी पर आदिवासियों ने जान गंवाई थी। उन्होंने कहा कि भील प्रदेश की मांग राजकुमार नहीं कर रहा, यहां का बच्चा बच्चा प्रदेश की मांग कर रहा है। राजस्थान के पूर्व मंत्री नंदलाल मीणा ने कहा था कि भील प्रदेश के लिए मंत्री पद छोड़ना पड़े तो छोड़ दूंगा।
बीजेपी ने बताया राज्य-विरोधी कदम
वहीं, भील प्रदेश के मांग और सांसद राजकुमार रोत के द्वारा नक्शा शेयर करने के बाद बीजेपी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने इस नक्शे की आलोचना करते हुए इसे असंवैधानिक और राज्य-विरोधी कदम बताया। उन्होंने 'एक्स' पर लिखा, 'राजस्थान की आन, बान और शान को तोड़ने की साजिश कभी सफल नहीं होगी। बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद राजकुमार रोत द्वारा जारी किया गया तथाकथित 'भील प्रदेश' का नक्शा एक शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्टंट है। यह न केवल गौरवशाली राजस्थान की एकता पर चोट है बल्कि आदिवासी समाज के नाम पर भ्रम फैलाने और सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश भी है।'
सांसद रोत ने दिया जवाब
सांसद रोत ने इसके जवाब में लिखा कि भारत के संविधान में नए राज्यों के निर्माण और पुनर्गठन के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लेख है और स्वतंत्र भारत में अलग-अलग आधार पर कई नए राज्यों का गठन हुआ है। उन्होंने कहा कि ‘भील प्रदेश’ भी राज्य बनने के लिए भाषाई-सांस्कृतिक-भौगोलिक एकरूपता, संसाधनों का असमान वितरण एवं आर्थिक विकास की जरूरत जैसे विभिन्न मापदंड पूरे करता है।
रोत ने कहा कि कल बीजेपी के एक नेता ने कहा कि राजकुमार रोत ने भील प्रदेश का नक्शा जारी कर राजस्थान के गौरवशाली इतिहास को तोड़ने का काम किया है। भील प्रदेश का नक्शा मैंने जारी नहीं किया वो नक्शा अंग्रेजों के शासन काल से है। साल 1896 में अंग्रेजों को लगा कि यह ट्राइबल क्षेत्र है यहां इंटरफियर करना आसान नहीं, भीलों से पंगा नहीं ले सकते इसकी उन्होंने इसे जारी किया। हम मानगढ़ के शहीदों को भील प्रदेश बनाकर श्रद्धांजलि देंगे। हम उनके सपने को पूरा करने का काम कर रहे हैं।