उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन पर हुए अतिक्रमण मामले की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में होगी और संभव है कि आज ही इस पर फैसला भी आ जाए। यह विवाद रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर कब्जे से जुड़ा है, जिसका असर लगभग 5 हजार परिवारों और 50 हजार लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा। इस मामले में सरकार ने हाई कोर्ट में एक शपथ पत्र दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि यह विवाद नजूल भूमि से संबंधित है लेकिन कोर्ट ने 10 जनवरी 2017 को इस दावे को खारिज कर दिया था। अब सवाल यह है कि जो जमीन सरकार नजूल भूमि बता रही है, वह वास्तव में है क्या? आइए समझते हैं।
नगर निगम ने बनभूलपुरा इलाके में 8 फरवरी 2024 को एक अवैध मदरसा ढहा दिया था। नमाज पढ़ने के लिए बनाई गई एक बिल्डिंग पर भी बुलडोजर चला दिया था जिसके बाद वहां हिंसा फैल गई थी। भीड़ ने भी प्रतिक्रिया देते हुए पुलिस और निगम के अमले पर हमला कर दिया था। इसके साथ ही लोगों ने बनभूलपुरा थाने को घेरकर उस पर पथराव किया था। इस हिंसा में 6 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 300 पुलिसकर्मी निगम कर्मचारी घायल हुए थे।
यह भी पढ़ें- बिहार में चलेंगी लग्जरी कारवां बसें, मिलेगी फाइव स्टार होटल जैसी सुविधा
जानिए अब तक क्या हुआ?
याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी के अनुसार, मामला 2007 में बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र की रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट आदेश से शुरू हुआ, जिसमें 0.59 एकड़ जमीन मुक्त कराई गई। 2013 में गौला नदी में अवैध खनन और पुल क्षति पर उनकी जनहित याचिका की सुनवाई में रेलवे भूमि अतिक्रमण मामला दोबारा सामने आया। 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने रेलवे को दस हफ्ते में अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया। बाद में प्रदेश सरकार और अतिक्रमणकारियों ने भूमि को नजूल बताते हुए शपथ पत्र दिया लेकिन कोर्ट ने 10 जनवरी 2017 को इसे खारिज कर दिया।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां 2017 में सभी पक्षों को हाईकोर्ट में व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र दाखिल करने को कहा गया। कार्रवाई न होने पर अवमानना याचिका दायर हुई। 2022 में हाई कोर्ट ने फिर तथ्य प्रस्तुत करने को कहा लेकिन अतिक्रमणकारी असफल रहे। 2022 में पुनः नोटिस जारी हुआ। इसके खिलाफ 2023 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां कोर्ट ने कहा कि 50 हजार लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता और पुनर्वास योजना जरूरी है।
नजूल भूमि क्या है?
नजूल भूमि सरकारी संपत्ति होती है, जिसका मालिकाना हक राज्य सरकार के पास रहता है। यह मुख्य रूप से मुगल काल या ब्रिटिश शासन के दौरान जब्त की गई या अधिग्रहीत भूमि को कहते हैं जो अब गैर-कृषि इस्तेमाल जैसे रोड, बिल्डिंग, बाजार या सार्वजनिक कार्यों के लिए रिजर्व रहती है। इसका प्रकार और उपयोग-
- सिंचित नजूल भूमि- जहां खेती संभव है, अनुसूचित जाति/जनजाति या भूमिहीन लोगों को खेती के लिए 3 बीघा तक पट्टे पर दी जाती है लेकिन बेची या ट्रांसफर नहीं की जा सकती।
- गैर-सिंचित भूमि- पानी की कमी वाली, 6 बीघा तक पट्टे पर खेती के इस्तेमाल के लिए।
- बंजर भूमि- खेती मुश्किल वाली, 9 बीघा तक समान शर्तों पर।
- सरकार इसे लीज पर दे सकती है लेकिन मालिकाना हक कभी हस्तांतरित नहीं किया जाता। उत्तर प्रदेश नजूल संपदा विधेयक जैसे कानून इससे संबंधित नियम बनाते हैं।
यह भी पढ़ें- 'दूल्हा बाप बनने लायक नहीं', दुलहन ने 3 दिन में तोड़ दी शादी, वापस मांगे पैसे
नजूल भूमि खरीदने पर क्या प्रतिबंध हैं?
- नजूल भूमि पर पूरा मालिकाना हक (फ्रीहोल्ड) मिलना या इसे खरीदना पूरी तरह से प्रतिबंधित है क्योंकि इसका स्वामित्व राज्य सरकार के पास रहता है इसलिए ऐसा करना मुमकिन नहीं होता। इन पर पूर्ण प्रतिबंध है।
- बिक्री और हस्तांतरण निषेध- पट्टे पर ली गई नजूल भूमि को न बेचा, न किराए पर और न ही इसका बंटवारा किया जा सकता है। केवल निश्चित समय के लिए खेती या उपयोग के लिए दी जाती है।
- निर्माण और फ्लैट खरीद पर रोक- इस भूमि पर बनी बिल्डिंग, फ्लैट या बंगला नहीं खरीदा जा सकता। कृषि भूमि के रूप में भी खरीद संभव नहीं।
- फ्रीहोल्ड पर पूर्ण प्रतिबंध- उत्तर प्रदेश नजूल संपदा विधेयक जैसे कानूनों से निजी व्यक्तियों/संस्थाओं को फ्रीहोल्ड नहीं किया जा सकता। केवल सार्वजनिक उपयोग (अस्पताल, स्कूल) के लिए लीज रिन्यू या कैंसल होती है।
यह प्रतिबंध नजूल भूमि (हस्तांतरण) अधिनियम 1956 और राज्य-विशिष्ट नियमों से लागू होते हैं, ताकि सरकारी संपत्ति सुरक्षित रहे। नजूल भूमि पर फ्रीहोल्ड आमतौर पर नहीं दिया जाता, क्योंकि इसका स्वामित्व राज्य सरकार के पास रहता है; केवल लीज या पट्टे पर उपयोग की अनुमति होती है।
