महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में आई बाढ़, किसानों के लिए त्रासदी बनकर आई। कई किसान आर्थिक बदहाली का सामना कर रहे हैं। किसानों की खुदकुशी के भी कुछ मामले सामने आए हैं। महाराष्ट्र, उन राज्यों में शुमार है, जहां किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि महराष्ट्र में अब तक 2518 किसानों ने जान दी है। मराठवाड़ा की गिनती भी उन इलाकों में होती है, जहां किसान सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं।
किसानों की फसलें तबाह हो चुकी हैं। बाढ़ की वजह से गन्ने, प्याज और धान की फसलें खराब हो गईं। बाढ़ में सैकड़ों की संख्या में मवेशी भी मारे गए, जिन पर किसान कृषि के लिए निर्भर थे। मराठवाड़ा के मातरेवाडी गांव में लक्ष्मण बाबा साहेब पवार नाम के एक किसान ने खुदकुशी कर ली थी। लक्ष्मण ने खेती के लिए 80 हजार से ज्यादा कर्ज ले रखा था, फसल तबाह हुई तो जान दे दी।
किसान परिवारों का कहना है कि बाढ़ की वजह से खराब मिट्टी खेतों में घुस आई है। कई साल तक इन इलाकों में खेती नहीं हो सकती है। किसानों को उम्मीद थी कि जून और जुलाई के बीच हुई बारिश की वजह से उनकी फसलें अच्छी होंगी, उपज बेहतर होगी लेकिन इसका उलटा हुआ। किसानों ने बाढ़ की विभीषिका झेली। बाढ़ की वजह से किसानों के कृषि उपकरण तक बह गए।
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महाराष्ट्र में बाढ़ से कितना नुकसान हुआ है?
महाराष्ट्र में अगस्त और सितंबर 2025 में भीषण बाढ़ आई थी। मराठवाड़ा क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। 29 जिलों में 68 लाख हेक्टेयर खेतों को नुकसान पहुंचा था। करीब 60,000 हेक्टेयर फसलें तबाह हो गईं। खेतों में गाद भर गया है, जहां खेती करना किसानों के लिए टेढ़ी खीर है, जमीनें बंजर हो गईं हैं।
कितना नुकसान हुआ?
महाराष्ट्र में कुल 1.43 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर खेती की गई थी। इसमें से लगभग 68.69 लाख हेक्टेयर जमीन पर फसलों को नुकसान पहुंचा है। कई जगह पर नुकसान आंशिक है। बड़े इलाके में पूरी फसल खराब हो गई है। खरीफ सीजन में मराठवाड़ा के 29 जिले प्रभावित हैं। नुकसान की वजह से जनवरी से सितंबर के बीच मराठवाड़ा में 781 किसानों ने आत्महत्या की।
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बाढ़ से क्या-क्या तबाह हुआ?
- फसलें पूरी तरह से खराब हो गईं
- खेत की उपजाऊ मिट्टी बह गई है
- कृषि के काम में आने वाले हजारों जानवरों की मौतें हुईं
- जहां तालाब थे, वहां अब गाद भर गई है
- कृषि का पारिस्थितिकि तंत्र बदल गया है
- किसानों की आर्थिक स्थिति सबसे खराब दौर में है
सरकारी मुआवजे में क्या है?
देवेंद्र फडणवीस, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र:-
हम 100 प्रतिशत नुकसान की भरपाई तो नहीं कर सकते, लेकिन हमने किसानों को फिर से खड़ा करने के लिए यथासंभव संसाधन पहुंचाने का फैसला किया है।
NDRF फंड के नियमों के मुताबिक महाराष्ट्र में मुआवजा दिया जा रहा है। जिन जमीनों पर सिंचाई नहीं हो पाती है,वहां मदद के लिए 8,500 रुपये प्रति हेक्टेयर किसानों को मिलेंगे। जिन फसलों की मौसमी सिंचाई होती है, उनके लिए 17,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और सिंचित भूमि के लिए 22,500 रुपये प्रति हेक्टेयर दिया जाएगा।
देंवेंद्र फडणवीस, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र:
किसानों को 6,175 करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज देने का फैसला लिया गया है। रबी की फसल की बुवाई में मदद के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपये की अतिरिक्त सहायता दी जाएगी।मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, 'महाराष्ट्र में 45 लाख किसानों का बीमा किया गया है। सहायता पैकेज के अलावा, जिन बीमित किसानों की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है, उन्हें 17,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की बीमा राशि मिलेगी। सूखी जमीन वालों को 35,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और सिंचित जमीन वालों को 50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर से ज्यादा की राशि मिलेगी। सरकार दीपावली से पहले किसानों को लगभग 18,000 करोड़ रुपये का फसल मुआवजा देगी।
महाराष्ट्र सरकार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की मरम्मत के लिए 10,000 करोड़ रुपये और आपातकालीन राहत के लिए डीपीडीसी में 1,500 करोड़ रुपये रिजर्व रखेगी। मुख्यमंत्री ने भरोसा दिया है कि राज्य सरकार अभाव या सूखे की स्थिति में जरूरी सभी उपाय करेगी। लोगों को रेवेन्यू में छूट दिया जाएगा। किसानों को लैंड रेवेन्यू में छूट, क्रॉप लोन रिकंस्ट्रक्शन, एग्रीकल्चरल लोन वसूली पर रोक, कृषि पंपों के बिजली बिल माफी, स्कूल और कॉलेज, एग्जाम फी माफी आदि शामिल हैं।
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एक नजर, आर्थिक पैकेज पर
- 31,628 करोड़ रुपये के कुल आर्थिक पैकेज का एलान
- गैर सिंचाई योग्य जमीन: 8,500 रुपये प्रति हेक्टेयर
- मौसमी सिंचाई योग्य जमीन: 17,000 रुपये प्रति हेक्टेयर
- सिंचाई योग्य जमीन: 22,500 रुपये प्रति हेक्टेयर
- कुल फसल क्षतिपूर्ति: ₹6,175 करोड़ रुपये
- रबी फसल के लिए 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर मदद
- पूरी तरह बर्बाद फसलों के लिए बीमा राशि 17,000 प्रति हेक्टेयर
- सूखी जमीन के लिए 35,000 रुपये हेक्टेयर
- सिंचित भूमि के लिए: 50,000 प्रति हेक्टेयर
- गाद प्रभावित जमीनों पर मिट्टी डालने के लिए- 47,000 प्रति हेक्टेयर कैश
- किसानों के कुओं में गाद हटाने के लिए: 30,000 प्रति कुआं
- आपातकालीन आधार पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए ₹10,000 करोड़
- DPDC के लिए अलग से ₹1,500 करोड़ रुपये
- बिजली बिल, राजस्व, परीक्षा फीस में भी छूट
पहले मराठवाड़ा के लिए क्या आर्थिक पैकेज घोषित हुए हैं?
मराठवाड़ा में बाढ़ भी एक बड़ी समस्या है, बारिश का न होना भी। यहां सूखा पड़ने की वजह से भी किसान बड़ा नुकसान झेलते हैं। मौसम संबंधी दिक्कतों की वजह से किसानों की आर्थिक स्थिति यहां बेहाल रही है। मराठवाड़ा में किसान बड़ी संख्या में सोयाबीन और कपास की खेती करते हैं। सरकार से कई प्रॉसेसिंग यूनिट स्थापित करने की मांग उठती रहती है। अक्तूबर 2023 में सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए सरकार ने 59,000 करोड़ रुपये के पैकेज का एलान किया था। तब किसान नेताओं ने सवाल उठाया था कि इस पैकेज में कृषि-उद्योगों का जिक्र क्यों नहीं है। उद्धव ठाकरे ने भी मांग की थी कि मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए 1 हजार करोड़ रुपये के पैकेज का एलान होना चाहिए। आर्थिक पैकेजों के एलान के बाद भी मराठवाड़ा से किसानों की आत्महत्याएं नहीं रुकीं हैं।
आपदा में मराठवाड़ा ने क्या गंवाया है?
मराठवाड़ा में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। विदर्भ, पश्चिम महाराष्ट्र और उत्तर महाराष्ट्र में भी तबाही मची है। मराठवाड़ा के लिए सरकार ने 1500 करोड़ रुपये के फंड का एलान किया है।
किसान संगठन क्यों नाराज हैं?
किसान संगठनों का कहना है कि यह पैकेज दिखावटी है। सरकार ने 2025 में फसल बीमा योजना (PMFBY) के नियम बदले, जिससे किसानों की सुरक्षा कम हो गई है। पहले, बुआई से पहले के नुकसान, मौसम की मार और फसल कटाई के समय नुकसान को बीमा में शामिल किया जाता था, लेकिन अब केवल कटाई के बाद के नुकसान को कवर किया जाता है।
नए नियमों की बातें जो किसानों को खटक रहीं हैं
- अब नुकसान का आकलन रेवेन्यू सर्कल के आधार पर होता है
- नुकसान की गणना बीते सात साल की औसत उपज के आधार पर होती है
- अगर नुकसान इस सीमा से कम है तो कोई मुआवजा नहीं मिलता
- पहले सरकार बीमा प्रीमियम देती थी, अब किसानों को खुद देना पड़ता है
किसान क्या चाहते हैं?
- पुराने बीमा नियम बहाल हों
- मुआवजा बढ़ाकर कम से कम 50,000 रुपये प्रति हेक्टेयर हो
- मौजूदा राशि बुआई की लागत भी नहीं निकाल सकती है
- 31,628 करोड़ में से केवल 6,500 करोड़ ही किसानों को सीधे मिल रहे हैं
- किसानों के लिए ज्यादा बड़े आर्थिक मुआवजे का एलान हो
मराठवाड़ा में की सबसे बड़ी चिंता क्या है?
मराठवाड़ा क्षेत्र में कुल 8 जिले आते हैं। छत्रपति संभाजीनगर, जालना, बीड, धाराशिव (उस्मानाबाद), लातूर, परभणी, नांदेड़ और हिंगोली। इन जिलों में किसानों की खुदकुशी को रोकना दशकों से सरकार के लिए चुनौती रही है। कई किसानों की मौत को सरकार खुदकुशी की लिस्ट में ही नहीं रखती है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यहां सबसे ज्यादा किसान खुदकुशी कर सकते हैं। जनवरी से 11 जुलाई 2025 तक मराठवाड़ा में कुल 543 किसानों ने आत्महत्या की है। बीड जिले में ही जनवरी से लेकर 11 जुलाई 2025 तक 136 किसानों खुदकुशी की। छत्रपति संभाजीनगर में 96 किसानों ने अपनी जान दे दी।
संजय राउत, नेता, शिवसेना UBT:-
पीएम केयर्स फंड से मराठवाड़ा के किसानों की मदद की जाए। अगर बाढ़ प्रभावित किसानों को मदद नहीं मिली तो यह साफ होना चाहिए कि यह फंड किसके लिए है। मदद न मिलने से किसानों की आत्महत्याएं बढ़ेंगी। मराठवाड़ा अभी भी निजामशाही के साये में है, जहां अत्याचार और शोषण जारी है।
जुलाई तक किसानों की खुदकुशी के जिलेवार आंकड़े
- छत्रपति संभाजीनगर: 96
- जालना: 34
- परभणी: 65
- नांदेड़: 76
- बीड: 136
- लातूर: 39
- धाराशिव: 66
- हिंगोली: 31
विपक्ष की शिकायत क्या है?
- शिवसेना (UBT): मराठवाड़ा में बाढ़ के हालात पर शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि मराठवाड़ा में बाढ़ की स्थिति अभी भी गंभीर है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही। सरकार ब्रिटिश प्रधानमंत्री के स्वागत में व्यस्त थी।
संजय राउत:-उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मराठवाड़ा आएंगे और बाढ़ पीड़ितों के लिए कुछ घोषणाएं करेंगे, लेकिन उनका बोझ कम करने के लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक मामूली पैकेज की घोषणा की, जो नाकाफी है। किसानों को प्रति हेक्टर 50 हजार रुपये मुआवजा मिलना चाहिए, क्योंकि बाढ़ से खराब हुई जमीन अगली दो पीढ़ियों तक खेती के लिए इस्तेमाल नहीं हो पाएगी। शिवसेना (UBT) मराठवाड़ा के लिए मोर्चा निकालेगी, जिसका नेतृत्व उद्धव ठाकरे करेंगे।
- कांग्रेस: कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने राज्य सरकार के राहत फंड पर कहा है कि सरकार किसानों का मजाक उड़ा रही है।
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विजय वडेट्टीवार, कांग्रेस विधायक दल के नेता:-
महायुति सरकार किसानों का मज़ाक उड़ा रही है। जनवरी से सितंबर तक मराठवाड़ा में कम से कम 781 किसानों ने आत्महत्या की है। पिछले 15 दिनों में भारी बारिश के कारण कम से कम 74 किसानों ने आत्महत्या की है। ऐसे में सरकार ने सहायता राशि के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। यह सरकार द्वारा किसानों का मज़ाक उड़ाना है।
- विजय वडेट्टीवार ने कहा, 'राज्य में किसानों की जमीनें कट गई हैं। उनके मवेशी बह गए हैं। ऐसे समय में, किसानों को प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये की कुल सहायता मिलने की उम्मीद थी। एनडीआरएफ के मानदंडों के अनुसार दी जाने वाली सहायता बहुत कम है। इससे किसानों को कोई मदद नहीं मिलेगी, बल्कि वे बर्बाद हो जाएंगे।'
किसान संगठनों का क्या कहना है?
अजीत नवले, महासचिव अखिल भारतीय किसान सभा:-
किसानों के लिए असली पैकेज 6,500 करोड़ रुपये का है, जो एनडीआरएफ के मानदंडों के अतिरिक्त है। राहत पैकेज में फसल बीमा राशि को शामिल करना किसानों के साथ एक क्रूर मजाक के अलावा और कुछ नहीं है।
