देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई की रफ्तार वैसे तो कभी नहीं थमती लेकिन कभी-कभार फंस जरूर जाती है। खासकर तब जब बात 'मोनोरेल' की हो। महीनेभर में तीन बार ऐसा हो चुका है जब मुंबई की मोनोरेल अचानक रुक गई। बाद में बड़ी मशक्कत के बाद यात्रियों को इससे निकाला गया। अधिकारी हर बार इसे 'तकनीकी खराबी' बताते हैं।
सोमवार को जो मोनोरेल चलते-चलते रुक गई, उसमें 17 यात्री सवार थे। घंटेभर की मशक्कर के बाद सभी को निकाला गया। इससे पहले 19 अगस्त को दो रूट पर मोनोरेल रुक गई थी। इसमें हजार से ज्यादा यात्री फंस गए थे। उस दिन बारिश भी खूब हो रही थी। बाद में बड़ी मशक्कत से फायर ब्रिगेड की टीम ने इन यात्रियों को मोनोरेल से सुरक्षित निकाला था।
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एक महीने में 3 बार अटकी रेल
- 15 सितंबर: अधिकारियों ने बताया था कि यह घटना एंटॉप हिल बस डिपो और GTBN स्टेशन के बीच वडाला में हुई थी। सुबह-सुबह 7 बजकर 16 मिनट पर मोनोरेल रुक गई थी। इसमें 17 यात्री सवार थे। सभी यात्रियों को 7:40 बजे तक दूसरी ट्रेन से सुरक्षित स्टेशन पहुंचा दिया था।
- 19 अगस्त: दो मोनोरेल अटक गई। पहली- मैसूर कॉलोनी स्टेशन के पास, जिसमें 582 यात्री सवार थे। दूसरी- आचार्य आत्रे स्टेशन के पास, जिसमें 566 यात्री सवार थे। तीन घंटे तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद यात्रियों को क्रेन और फायर ब्रिगेड की मदद से सुरक्षित निकाला गया था।

बार-बार क्यों अटक जा रही है मोनोरेल?
मोनोरेल में सिर्फ 4 कोच होते हैं। इसे इसलिए लाया गया था, ताकि लोकल ट्रेन और बसों का लोड कम किया जा सके। हालांकि, यह अब 'गले की फांस' की तरह बनती जा रही है। कभी तकनीकी खराबी तो कभी ओवरलोडिंग की वजह से मोनोरेल के अटक जाने की खबरें आती रही हैं।
19 अगस्त को जब दो मोनोरेल अटकीं तो अधिकारियों ने 'ओवरलोडिंग' को इसकी वजह बताया। मोनोरेल के रखरखाव और चलाने की जिम्मेदारी मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MMRDA) के पास है।
19 अगस्त को MMRDA के एक अधिकारी ने बताया था कि एक मोनोरेल में ज्यादा से ज्यादा 562 यात्री सफर कर सकते हैं लेकिन दोनों मोनोरेल में क्षमता से ज्यादा यात्री थे। एक में 566 तो दूसरी में 582 यात्री सवार थे।
वहीं, 15 सितंबर को वडाला के पास सुबह-सुबह 7:16 बजे मोनोरेल रुक गई थी। उस वक्त इसमें 17 यात्री ही सवार थे। MMRDA ने इसके पीछे 'तकनीकी खराबी' की समस्या बताई। गनीमत रही कि उसी वक्त बगल के ट्रैक से एक और मोनोरेल गुजर रही थी। इसमें सभी 17 यात्रियों को बैठाया गया।
नवंबर 2017 में मैसूर कॉलोनी स्टेशन के पास एक खाली ट्रेन में आग लगने के बाद चेंबूर से वडाला लाइन पर मोनोरेल को रोक दिया गया था। लगभग 9 महीने बाद मोनोरेल दोबारा शुरू हुई थी।
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क्यों 'सफेद हाथी' है मोनोरेल?
मोनोरेल को यात्रियों की सहूलियत के लिए लाया गया था। मकसद था कि लोकल ट्रेन की भीड़ मोनोरेल में आए। हालांकि, मोनोरेल देखने में जितनी अच्छी है, उतनी अच्छी सर्विस इसकी नहीं रही है। मोनोरेल को लेकर जो उम्मीदें थीं, यह उस पर भी खरी नहीं उतरी।
जब मोनोरोल को शुरू किया गया था, तब इससे हर दिन 1.5 लाख से 2 लाख तक यात्रियों के सफर करने की उम्मीद थी। हालांकि, अनुमान है कि इससे अभी भी रोज बमुश्किल 18 से 19 हजार यात्री ही सफर कर रहे हैं।
इसे इसलिए 'सफेद हाथी' कहा जाता है कि क्योंकि इसके रखरखाव और चलाने पर खर्चा तो बहुत होता है लेकिन इससे कमाई उतनी नहीं हो रही है।
MMRDA के बजट के मुताबिक, 2024-25 में मोनरेल की टिकट बिक्री से 14.89 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। हालांकि, इसके रखरखाव और चलाने पर 60 करोड़ से ज्यादा खर्च हो गया था। इससे पहले 2023-24 में टिकट बिक्री से 10.02 करोड़ रुपये आए लेकिन रखरखाव और चलाने पर लगभग 106 करोड़ रुपये खर्च हुए।
इससे भी पहले 2022-23 में टिकटों की बिक्री से MMRDA को 7.50 करोड़ का रेवेन्यू मिला जबकि इसके रखरखाव और चलाने पर 89.15 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा था।
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क्या है मुंबई की मोनोरेल?
मुंबई पहला और इकलौता शहर है जहां मोनोरेल चलती है। यह छोटी ट्रेन होती है। 2009 में जब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी, तब इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था।
हालांकि, मुंबई के मोनोरेल प्रोजेक्ट को शुरू होने में काफी लंबा समय लग गया। इसके पहले फेज का काम फरवरी 2014 में पूरा हुआ जबकि दूसरा फेज मार्च 2019 में पूरा हुआ। इस पूरे प्रोजेक्ट पर 2,700 करोड़ रुपये खर्च हुए।
पहले फेज में 8.8 किलोमीटर लंबा रूट वडाला से चेंबूर तक बना। दूसरे फेज में 11.2 किलोमीटर लंबा रूट बनाया गया, जो संत गाडगे महाराज चौक तक है। कुल मिलाकर 20 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर है, जिस पर मोनोरेल चलती है। इस पूरे कॉरिडोर में कुल 17 स्टेशन बनाए गए हैं।
लोकल ट्रेन की तुलना में मोनोरेल की स्पीड भी कम है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। हालांकि, मुंबई की मोनोरेल की स्पीड 31 किलोमीटर प्रति घंटा है। वडाला से चेंबूर तक 22 मिनट और वडाला से संत गाडगे महाराज चक तक के सफर में 32 मिनट का समय लगता है।
