ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है? जिस पर हो रहा बवाल; समझें ABCD
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• NEW DELHI 09 Sept 2025, (अपडेटेड 10 Sept 2025, 6:16 AM IST)
कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने एक लेख में केंद्र सरकार के ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे 'सुनियोजित दुस्साहस' बताया है। ऐसे में जानते हैं कि यह प्रोजेक्ट क्या है? और क्यों इस पर सवाल उठते हैं?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (www.andamantourism.gov.in/)
केंद्र सरकार का 'ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट' पर एक बार फिर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इस प्रोजेक्ट की कड़ी आलोचना करते हुए इसे एक 'सुनियोजित दुस्साहस' बताया है। उन्होंने अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में लेख लिखकर इस पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने लिखा है, 'पूरी तरह से गलत तरीके से किया गया 72 हजार करोड़ रुपये का खर्च अंडमान निकोबार के मूल आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है।' उन्होंने दावा किया कि इससे यहां रहने वाले शोम्पे आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा है।
सोनिया गांधी ने कहा, 'पिछले 11 साल में अधूरी और गलत नीतियां बनाई गई हैं। इस सुनियोजित दुस्साहस में से एक है ग्रेट निकोबार मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट। 72 हजार करोड़ रुपये का यह पूरी तरह से गलत खर्च द्वीप के मूल आदिवासी समुदायओं के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करता है। यह दुनिया के सबसे अनोखे वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के इकोसिस्टम के लिए खतरा है।'
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सोनिया गांधी ने क्या लिखा?
अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख में सोनिया गांधी ने लिखा कि 'ग्रेट निकोबार आईलैंड दो मुल समुदायों- निकोबारी और शोम्पेन का घर है। निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गांव इस प्रोजेक्ट के दायरे में आते हैं। 2004 में आई सुनामी के दौरान निकोबारी लोगों को अपने गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।'
उन्होंने आरोप लगाया कि कानूनों का खुलेआम मजाक उड़ाया जा रहा है, जिसकी कीमत सबसे कमजोर लोगों को चुकानी पड़ सकती है। उन्होंने कहा, 'जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर हो तो हमारी अंतरात्मा चुप नहीं रह सकती और न ही उसे चुप रहना चाहिए।'
सोनिया गांधी के इस लेख को कई कांग्रेसी नेताओं ने साझा किया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इसे साझा करते हुए लिखा, 'ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट एक गलत कदम है जो आदिवासी अधिकारों को कुचल रहा है।' वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इसे साझा किया।
"The Great Nicobar Island Project is a misadventure, trampling on tribal rights and making a mockery of legal and deliberative processes."
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 8, 2025
Through this article, Congress Parliamentary Party Chairperson Smt. Sonia Gandhi highlights the injustices inflicted on Nicobar’s people and… pic.twitter.com/3mM4xHKq04
वहीं, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस लेख को साझा करते हुए इसे 'गंभीर मुद्दा' बताया। उन्होंने कहा, 'विकास जरूरी है लेकिन यह बिना विनाश के भी किया जा सकता है।'
क्या है ग्रेट निकोबार?
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर केंद्र सरकार 72 से 80 हजार करोड़ रुपये तक खर्च करेगी। यह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है। यह श्रीलंका से लगभग 1,300 किलोमीटर दूर है।
ग्रेट निकोबार द्वीपों के दक्षिण में स्थित है। इस द्वीप पर 1969 से बसाहट शुरू हुई थी। उससे पहले तक यहां सिर्फ शोम्पेन और ग्रेट निकोबारी जनजाति के लोग ही रहते आए हैं। शोम्पेन शिकारी हैं, जो द्वीप के अंदरूनी हिस्सों में रहते हैं और माना जाता है कि वे 30 हजार साल पहले यहां आए थे। शोम्पेन बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे हुए हैं और सरकार की नीति है कि उन्हें अछूता छोड़ दिया जाए। यहां लगभग 230 शोम्पेन ही बचे हैं।
वहीं, ग्रेट निकोबारी जनजाति को लेकर माना जाता है कि ये 10 हजार साल पहले यहां आए थे। आज इनकी आबादी लगभग 1 हजार है। इनके अलावा ग्रेट निकोबार द्वीपर पर लगभग 4 हजार लोग बसे हैं।
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सरकार का प्लान क्या है?
मार्च 2021 में नीति आयोग ने ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी दी थी। यहां सरकार कई सारी सुविधाएं बनाने जा रही है। इसमें बंदरगाह से लेकर एयरपोर्ट और टाउनशिप तक शामिल है।
इस प्रोजेक्ट के तहत यहां डीप सी पोर्ट और ग्रीनफील्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनेगा। डीप सी एयरपोर्ट की खास बात यह होती है कि यहां बड़े-बड़े कंटेनर जहाज भी आसानी से आ-जा सकते हैं। यह एक बहुत बड़ा पोर्ट होगा, जहां हर साल 1.6 करोड़ TEU कंटेनर आएंगे। TEU यानी ट्वेंटी फीट इक्विवेलेंट यूनिट। एक TEU का मतलब हुआ 20 फीट लंबा कंटेनर। यानी, इस पोर्ट पर सालाना 20 फीट लंबे 1.6 करोड़ कंटेनर आएंगे।
इसी तरह यहां एक नया इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन रहा है। अनुमान है कि एयरपोर्ट 2050 तक हर घंटे 4,000 लोगों को हैंडल करेगा। यह एयरपोर्ट डिफेंस और सिविल दोनों के लिए इस्तेमाल होगा।
इसके अलावा एक टाउनशिप भी बनेगी, जिसमें 3 से 4 लाख लोग रह सकेंगे। इसमें रेसिडेंशियल के साथ-साथ कमर्शियल और इंस्टीट्यूशनल बिल्डिंग होंगी। गैस और सोलर प्लांट भी यहां होगा, जिनसे बिजली पैदा होगी।
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लेकिन दिक्कत क्या है?
सरकार दावा कर रही है कि यह प्रोजेक्ट काफी खास है। हालांकि, पर्यावरणविद और विपक्ष इस पर सवाल उठाता रहा है। मानवविज्ञानी एन्स्टिस जस्टिन ने बीबीसी से कहा, 'यह शोम्पेन जनजति के लिए बड़ा दर्दनाक होगा। बाहरी दुनिया में हम जिसे विकास कहते हैं, वह उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उनका अपना एक पारंपरिक जीवन है।'
ऐसा भी दावा किया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के लिए लाखों पेड़ काटे जाएंगे, जिससे यहां की दुर्लभ वनस्पतियां और जीव-जंतुओं पर असर पड़ेगा। यहां मेगापोड और लेदरबैक कछुओं की दुर्लभ प्रजातियां पाईं जाती है। कांग्रेस सांसद और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि सरकार दावा कर रही है कि 8.5 लाख पेड़ काटे जाएंगे लेकिन कुछ अनुमानों के अनुसार यह संख्या 32 से 58 लाख के बीच है।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम को एक चिट्ठी लिखकर प्रोजेक्ट को मंजूरी देने में वन अधिकार कानून के कथित उल्लंघन पर चिंता जताई थी। राहुल ने कहा था कि '2004 की सुनामी के दौरान आदिवासी समुदाय विस्थापित हो गए थे और अब तक अपनी पैतृक जमीन पर लौट नहीं पाए हैं। अब उन्हें डर है कि यह प्रोजेक्ट उनके लिए खतरा बन जाएगी।'
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तो फिर क्यों इसे बनाया क्यों जा रहा है?
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इसे रणनीतिक लिहाज से भी खास माना जा रहा है। गलथिया बे में बनने वाला इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT) ग्रेट निकोबार को हिंद महासागर और स्वेज नहर को जोड़ेगा। स्वेज नहर यूरोप और एशिया को जोड़ने वाला अहम रास्ता है और हिंद महासागर में बहुत सारा ग्लोबल ट्रेड होता है।
ग्रेट निकोबार मलक्का स्ट्रेट के पास है, जो दुनिया का सबसे व्यस्त शिपिंग रास्ता है। 30-40% ग्लोबल ट्रेड और 60% चीनी सामान (खासकर तेल) इसी रास्ते से जाता है। अभी भारत का ज्यादातर कार्गो सिंगापुर, कोलंबो या मलेशिया के पोर्ट क्लैंग जैसे विदेशी पोर्ट्स से होकर जाता है। इससे टाइम और पैसा दोनों बर्बाद होते हैं। गलथिया बे का पोर्ट भारत को इन पोर्ट्स जितना बड़ा हब बनाएगा, जिससे भारत का ट्रेड सस्ता और तेज होगा।
यह चीन को जवाब माना जा रहा है। दरअसल, चीन ने हिंद महासगर में म्यांमार, श्रीलंका, अफ्रीका और पाकिस्तान में भारी निवेश किया है। यह उसकी 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' स्ट्रैटेजी है, जिससे वह भारत को समुद्री रास्तों में घेरना चाहता है। गलथिया बे का पोर्ट भारत को एक अल्टरनेटिव हब बनाएगा। इससे भारत ग्लोबल शिपिंग में बड़ा प्लेयर बनेगा और चीन की बढ़ती ताकत को बैलेंस करेगा। यह हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की पोजिशन को मजबूत करेगा।
यह क्षेत्र भारत के सुरक्षा हितों के लिहाज से भी मायने रखता है। यहां पहले ही नौसेना का एक एयरबेस है। इस प्रोजेक्ट के तहत यहां सैन्य बुनियादी ढांचे को भी मजबूत किया जाएगा। इससे हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में पैनी नजर रखने में मदद मिलेगी। अंडमान-निकोबार एकमात्र ट्राई-सर्विस कमांड है। यानी यहां आर्मी, नेवी और एयरफोर्स तीनों साथ में काम करते हैं। इस प्रोजेक्ट से ये कमांड और भी मजबूत होगी।
इन सबके अलावा यह भारत की ऐक्ट-ईस्ट पॉलिसी का भी हिस्सा है, जिसका मकसद जापान, साउथ कोरिया और ASEAN देशों के साथ ट्रेड और सिक्योरिटी रिश्ते मजबूत करना है।
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