अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की जल्द ही घर वापसी होने वाली है। नासा और स्पेसएक्स ने 14 मार्च को फाल्कल 9 के जरिए क्रू-10 मिशन लॉन्च किया है। स्पेसएक्स का ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट फाल्कन-9 रॉकेट शुक्रवार की शाम फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च हुआ। इस मिशन के तहत दोनों की घर वापसी होगी।

 

अब सवाल है कि स्पेस में लगभग 9 महीने बिताने के बाद जब सुनीता और विल्मोर धरती पर वापस आएंगे तो उन्हें क्या-क्या समस्याएं आ सकती है? स्पेस में इतने लंबे समय तक रहने से क्या-क्या दिक्कतें आती है? यहां समझें...

 

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अंतरिक्ष में इंसान का अधिक समय तक रहना कितना खतरनाक?

बता दें कि जब कोई अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने के बाद पृथ्वी पर लौटता है, तो उनके शरीर और स्वास्थ्य पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ते हैं। यह प्रभाव माइक्रोग्रैविटी, रेडिएशन और स्पेस कंडीशन के कारण होते हैं। ऐसे में कोई व्यक्ति अगर लंबे समय तक स्पेस में रहने के बाद धरती पर लौटता है तो उसे कई तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियां होती है। 

 

हड्डियों और मांसपेशियों पर पड़ता है असर

दरअसल, अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, जिससे हड्डियों पर कोई दबाव नहीं पड़ता। ऐसे में अंतरिक्ष यात्री की बोन डेंसिटी हर महीने लगभग 1-2% तक घट जाता है। जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर लौटते हैं, तो उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

 

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मांसपेशियों का सिकुड़ना

अंतरिक्ष में शरीर को भार सहने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने, दौड़ने और भारी चीजें उठाने में दिक्कत होती है। इसी कारण अंतरिक्ष यात्री रोजाना 2-3 घंटे व्यायाम करते हैं ताकि उनकी मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर न हों।

 

 

हार्ट और ब्लड सर्कुलेशन पर असर

पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के कारण हार्ट को ब्लड पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं होता। इससे हार्ट धीरे-धीरे कमजोर हो सकता है और आकार में थोड़ा सिकुड़ भी सकता है। पृथ्वी पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को कमजोरी और चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

 

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सिर में अधिक ब्लड फ्लो

अंतरिक्ष में, ब्लड और अन्य शारीरिक तरल पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के बिना ऊपर की ओर चले जाते हैं। इससे सिर और चेहरे पर सूजन हो सकती है और नाक बंद होने जैसा अनुभव होता है। पृथ्वी पर लौटने के बाद शरीर को फिर से गुरुत्वाकर्षण के अनुसार एडजस्ट होने में समय लगता है।

 

देखने में समस्या

अंतरिक्ष में अधिक फ्लूइड शिफ्ट होने के कारण आंखों में प्रेशर बढ़ सकता है। इससे अंतरिक्ष यात्रियों को धुंधला दिखता है। ऐसे में अंतरिक्ष यात्री जब पृथ्वी पर लौटते है तो उन्हें देखने में भी समस्या आती है। 

 

अंतरिक्ष में रेडिएशन और माइक्रोग्रेविटी के चलते इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है। ऐसे में पृथ्वी पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को इंफेक्शन और एलर्जी का खतरा अधिक होता है।

 

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मानसिक असर

अंतरिक्ष में लंबे समय तक अकेलापन, अलगाव और सीमित स्थान में रहने के कारण तनाव, डिप्रेशन और मानसिक थकान हो सकती है। पृथ्वी पर लौटने के बाद, कुछ अंतरिक्ष यात्री सामाजिक जीवन में ढलने में कठिनाई महसूस करते हैं।

 

NASA और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए साइकेट्रिस्ट की मदद दी जाती है। इसके अलावा अंतरिक्ष में सोलर रेडिएशन और कॉस्मिक रेयस होती हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल में फिल्टर हो जाती हैं। लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से डीएनए को नुकसान और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

 

कैसे किया जाता है ठीक

बता दें कि जब अंतरिक्ष यात्री वापस आते हैं, तो उनके शरीर को रि-एडेप्टेशन होने में कुछ हफ्तों से लेकर महीनों तक का समय लग सकता है। फिजियोथेरेपी और व्यायाम के माध्यम से उनकी हड्डियों और मांसपेशियों को फिर से मजबूत किया जाता है। विशेष आहार और दवाइयों से हड्डियों की मजबूती वापस लाई जाती है।