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नारियल तेल खाने वाला या बालों में लगाने वाला? सुप्रीम कोर्ट से जानिए

नारियल तेल पर 20 साल से चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सिर्फ पैकिंग की वजह से तेल बदल नहीं सकता है।

coconut oil

प्रतीकात्मक तस्वीर, Photo: Freepik

किसी तरह की चोट लग जाए, कहीं कुछ छिल जाए या कोई जलन होने लगे तो लोग नारियल तेल लगाने को कहते हैं। आपने भी डिब्बे में बंद होकर बाजार में बिकने वाला नारियल तेल इस्तेमाल किया होगा। लोग इस तेल को बालों में भी लगाते हैं और इसका ज्यादा इस्तेमाल बालों वाले तेल की तरह ही होता है। हालांकि, देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर कुछ ऐसा कहा है जिससे आप भी चौंक जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि नारियल तेल एक तरह का खाने वाला तेल ही है और इस पर कम टैक्स लगना चाहिए। दरअसल, खाने वाले तेल और कॉस्मेटिक इस्तेमाल वाले तेल पर टैक्स अलग-अलग लगता है।

 

इस मामले पर पहले सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने विभाजित फैसला सुनाया था। यानी दोनों जजों की राय अलग-अलग थी। तब बेंच में रहे तत्कालीन जस्टिस रंजन गोगोई ने माना था कि छोटे पैकेट में पैक किया गया नारियल तेल एक तरह से खाने वाला तेल है। वहीं, जस्टिस आर भानुमति ने माना था कि इसे बालों में लगाने वाला तेल माना जाएगा। फिर यह मामला बड़ी बेंच को भेज दिया गया था। अब तीन जजों की बेंच ने यह माना है कि अगर कोई नारियल तेल खाने लायक है तो उसे खाने लायक माना जाना चाहिए। इस बेंच ने यह भी कहा है कि अगर तेल कॉस्मेटिक स्डैंडर्ड के हिसाब से है तो उसे बालों वाला तेल माना जाएगा और उसी के हिसाब से टैक्स भी लगेगा।

 

दरअसल, राजस्व विभाग की अपील थी कि सभी तरह के शुद्ध नारियल तेल को बालों में लगाना वाला तेल माना जाए। इसके पीछे की कहानी यह है कि खाने वाले तेल पर टैक्स कम लगता है और बालों में लगाने वाले तेल पर टैक्स ज्यादा लगता है। राजस्व विभाग का कहना है कि इस तरह के तेल को खाने वाला तेल माना जाने की वजह से एक्साइज ड्यूटी, जुर्माने और ब्याज के रूप में 160 करोड़ रुपये का नुकसान उसे हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि खाने वाले तेल को छोटे पैकेट में बेचने से वह बालों में लगाने वाला तेल नहीं हो जाएगा।

क्या है पैराशूट कोकोनट ऑयल केस?

 

इस तरह के 4 केस मारिको लिमिटेड के खिलाफ दायर किए गए हैं जो 'पैराशूट' नाम के ब्रांड से अपना तेल बेचती है। यह मामला 2005 का है। टैक्स डिपार्टमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में कुल 8 अपील दायर की थी। इन अपील में कहा गया कि 2005 से 2007 के बीच इन कंपनियों ने कम टैक्स दिया। बाकी की चार अपील भी मारिको से जुड़ी कंपनियों के खिलाफ ही दायर की गई थीं। ये कंपनियां थोक में नारियल तेल खरीदती हैं और उन्हें 50 मिलीलीटर से लेकर 2 लीटर तक के पैकेट में भरकर बेच देती हैं।

 

जुलाई 2007 में केंद्रीय एक्साइज विभाग ने इन कंपनियों को नोटिस जारी किया कि वे इन तेलों को हेयर ऑयल बताकर बेचें। 2008 में विभाग ने मारिको और उसकी कंपनियों पर भारी भरकम जुर्माना लगाया और ब्याज भी जोड़ना शुरू कर दिया। हालांकि, कस्टम्स एक्साइज एंड सर्विस टैक्स अपीलीय ट्राइब्यूनल ने भी कंपनियों के पक्ष में ही फैसला सुनाया था। उसके बाद ही यह विभाग सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

 

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