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2 कंपनियां, 600 आउटलेट; भारत में कितना बड़ा है McDonald's का बिजनेस?

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने मैकडॉनल्ड्स बंद करने की बात कर दी है। ऐसे में जानते हैं कि भारत में मैकडॉनल्ड्स का भारत में कितना बड़ा कारोबार है? भारत में मैकडॉनल्ड्स कारोबार कैसे संभालती है?

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: PTI)

लोकसभा में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चर्चा के दौरान अमेरिकी कंपनी मैकडॉनल्ड्स का जिक्र भी हुआ। कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने मैकडॉनल्ड्स को भारत में बंद करने तक की मांग कर दी। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से बार-बार दावा किया जा रहा है कि उन्होंने ही भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाया था। इस पर ही दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि या तो डोनाल्ड ट्रंप का मुंह बंद कराओ या भारत में मैकडॉनल्ड्स बंद कराओ।

 

दीपेंद्र हुड्डा ने लोकसभा में कहा, 'आप यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अमेरिका से हाथ मिलाना है या आंख दिखाना है। या तो डोनाल्ड का मुंह बंद कराओ या भारत में मैकडॉनल्ड्स बंद कराओ। भारत एक महाशक्ति है। अमेरिका को भी यह पता चलना चाहिए कि भारत और पाकिस्तान को एक तराजू पर नहीं तौल सकते।'

 

उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि मैकडॉनल्ड्स एक अमेरिकी कंपनी है। अगर भारत में इसे बंद किया जाता है तो इससे अमेरिका पर दबाव बढ़ेगा। हालांकि, ऐसा होने की गुंजाइश न के बराबर है। मगर जब मैकडॉनल्ड्स की चर्चा हो रही है, तब जानते हैं कि आखिर भारत में इसका कितना बड़ा बिजनेस है?

 

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मैकडॉनल्ड्स की शुरुआत कैसे हुई?

1940 में दो भाई- रिचर्ड और मॉरिस मैकडॉनल्ड्स ने कैलिफोर्निया के सैन बर्नार्डिनो में एक छोटे से हैमबर्गर स्टैंड के साथ इसकी शुरुआत की थी। पहले यह छोटा रेस्टोरेंट था लेकिन 1948 में दोनों भाइयों ने इसे 'स्पीडी सर्विस सिस्टम' शुरू किया, ताकि लोगों को जल्द से जल्द बर्गर और फ्राइज मिल सके।

 

साल 1954 में मल्टीमिक्सर बेचने के लिए रे क्रोक आते हैं और उनकी मुलाकात मैकडॉनल्ड्स ब्रदर्स से होती है। उन्होंने ही मैकडॉनल्ड्स को फ्रेंचाइज बिजनेस में बदलने का आइडिया दिया। बाद में 1955 में रे क्रोक ने इलिनोइस के डेस प्लेन्स में अपना पहला मैकडॉनल्ड्स खोला।

 

इसके बाद मैकडॉनल्ड्स का कारोबार बढ़ता चला गया। 1967 में मैकडॉनल्ड्स ने अपना पहला इंटरनेशनल स्टोर कनाडा और प्यूर्टो रिको में खोला। आज के समय में मैकडॉनल्ड्स दुनिया की सबसे बड़ी रेस्टोरेंट कंपनी है। दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में इसके 43 हजार से ज्यादा आउटलेट हैं। इनमें 22 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। मैकडॉनल्ड्स से हर दिन करीब 7 करोड़ लोग बर्गर-फ्राइज खरीदते हैं। आज मैकडॉनल्ड्स की मार्केट कैप 215 अरब डॉलर से ज्यादा है। भारतीय करंसी में यह रकम 18.71 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होती है।

 

1991 में जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था खोली तो इससे विदेशी कंपनियों के यहां आने का रास्ता खुल गया। साल 1996 में मैकडॉनल्ड्स ने भारत में एंट्री की।

 

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भारत में कैसे हुई मैकडॉनल्ड्स की एंट्री?

भारत में एंट्री के लिए मैकडॉनल्ड्स ने फ्रेंचाइजी मॉडल का अपनाया। भारत में मैकडॉनल्ड्स का पहला स्टोर अक्टूबर 1996 में दिल्ली के वसंत विहार इलाके में खुला।

 

मैकडॉनल्ड्स ने भारत में बिजनेस करने के लिए देश को दो हिस्सों में बांटा। दोनों हिस्सों का बिजनेस संभालने के लिए दो अलग-अलग कंपनियों के साथ जुड़ी। उत्तर और पूर्व भारत के कारोबार के लिए कनॉट प्लाजा रेस्टोरेंट लिमिटेड (CPRL) को फ्रेंचाइजी दी। यह कंपनी विक्रम बख्शी की है। वहीं, पश्चिम और दक्षिण भारत के लिए हार्डकैसल रेस्टोरेंट प्राइवेट लिमिटेड (HRPL) को फ्रेंचाइजी दी। साल 2009 में HRPL को वेस्टलाइफ फूडवर्ल्ड ने खरीद लिया था।

 

शुरुआत में CPRL में मैकडॉनल्ड्स की भी 50% हिस्सेदारी थी। हालांकि, विक्रम बख्शी और मैकडॉनल्ड्स में कई बातों पर विवाद भी हुआ। आखिरकार 2019 में मैकडॉनल्ड्स ने इसमें 100% हिस्सेदारी खरीद ली।

 

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भारत में कितना बड़ा है कारोबार?

भारत में मैकडॉनल्ड्स ने 1995 में एंट्री की थी और सिर्फ 30 साल के भीतर ही सबसे बड़ी रेस्टोरेंट चेन बन गई। मैकडॉनल्ड्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 तक भारत में उसके 665 आउटलेट हैं। जबकि, 2023 में 581 आउटलेट थे। यानी एक साल में 84 नए आउटलेट खुल गए हैं।

 

पश्चिम और दक्षिण भारत में मैकडॉनल्ड्स की फ्रेंचाइजी लेने वाली वेस्टलाइफ फूडवर्ल्ड के तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, गोवा और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में लगभग 400 आउटलेट हैं। इनमें 10 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।

 

2025-26 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच वेस्टलाइफ फूडवर्ल्ड का कुल रेवेन्यू 657.64 करोड़ रुपये था। वहीं, 2024-25 की पहली तिमाही में इसे 616.33 करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिला था। मुनाफे की बात की जाए तो 2025-26 की पहली तिमाही में वेस्टलाइफ को 12.3 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है, जबकि पिछले साल की पहली तिमाही में कंपनी को 32.5 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।

 

उत्तर और पूर्व भारत में फ्रेंचाइजी संभालने वाली CPRL पब्लिक कंपनी नहीं है। इसलिए इसकी ज्यादा जानकारी पब्लिक डोमेन में मौजूद नहीं है। हालांकि, बिजनेस इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म Tofler के डेटा के मुताबिक, 2023-24 में CPRL का रेवेन्यू 1,449 करोड़ रुपये रहा था। वहीं, कंपनी का कुल मुनाफा 123.32 करोड़ रुपये था।

 

माना जाता है कि अभी CPRL के अभी 125 आउटलेट हैं। इस साल के आखिर तक इसे बढ़ाकर 200 तक कर लिया जाएगा। कंपनी 2030 तक इन्हें बढ़ाकर 600 तक करने की तैयारी कर रही है। CPRL के वाइस चेयरमैन अनंत अग्रवाल ने बताया था 2030 तक कंपनी 1200 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।

 

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