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पाकिस्तान ही नहीं, 191 देशों को कर्ज देता है IMF, कहां से आता है पैसा?

दुनिया में आर्थिक संकट का सामना कर रहे देश, जब भी फंसते हैं, मदद के लिए IMF की ओर तकते हैं। पाकिस्तान को भी IMF से आस है। यह संस्था क्या है, काम क्या करती है, क्यों जरूरी है, आइए समझते हैं।

International Monetary Fund

इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड। (Photo Credit: IMF)

जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत, अंतरराष्ट्रीय मुद्दा कोष (IMF) में पाकिस्तान को दिए जा रहे कर्ज की समीक्षा करने के लिए दबाव डाल रहा है। भारत के इन प्रयासों को पाकिस्तान राजनीति से प्रेरित बता रहा है। पाकिस्तान के कुल कर्ज का 10 फीसदी हिस्सा, IMF ने दिया है। IMF अपने सदस्य देशों में आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए कर्ज मुहैया कराता है।

IMF के कुल 191 सदस्य देश हैं, जिन्हें यह वैश्विक संस्था कर्ज देती है। आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन, व्यापार और मौद्रिक सहयोग बढ़ाने के लिए यह संस्था काम करती है। IMF की स्थापना जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में हुई थी। 27 दिसंबर 1945 को IMF का काम औपचारिक तौर पर शुरू हुआ। 

IMF के काम-धाम की शुरुआत 1 मार्च 1947 से हुई थी। शुरुआत में सिर्फ 29 देश इससे जुड़े थे, अब दुनिया के 191 देश इसके सदस्य हैं। दुनिया इसे कर्ज देने वाली संस्था के तौर पर जानती है लेकिन वैश्विक स्थिरता के लिए IMF का होना, बेहद अहम है। कई देशों की पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मदद से ही पटरी पर लौटी है।

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यह संस्था क्यों जरूरी है, कैसे काम करती है, कौन इसका सबसे बड़ा कर्जदार है, कौन सबसे ज्यादा मदद करता है, आइए जानते हैं- 


IMF में कितने देश शामिल हैं, IMF का काम क्या है?
IMF में 191 देश शामिल हैं। IMF का काम वैश्विक आर्थिक स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना है। यह वैश्विक और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं की निगरानी करता है। IMF अपने सदस्य देशों को नीतिगत सलाह देता है। जो देश के कर्ज के बोझ तले दबे हैं, आर्थिक संकट और महंगाई का सामना करते हैं, उन्हें IMF कर्ज देता है। IMF की इस योजना का नाम रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रुमेंट (RFI) है। पाकिस्तान ने इस योजना के तहत भी कर्ज लिया है। 

लोन की शर्तें क्या होती हैं?
IMF शर्तों के साथ ही लोन देता है। जिन देशों को लोन दिया जाता है, उन्हें टैक्स, वित्तीय प्रबंधन और आर्थिक नीतियों के बारे में IMF की ओर से सलाह भी मिलती है। यह सलाह, कुछ हद तक बाध्यकारी भी होती है, जिन्हें देशों को मानना पड़ता है। IMF के लोन की शर्तें, देश की आर्थिक स्थिति और लोन के प्रकार पर निर्भर करती हैं। IMF की ओर से सलाह मिल सती है कि सरकार खर्च और आय के बीच संतुलन बनाए, विदेशी मुद्रा भंडार को एक तय स्तर पर बनाए रखे, महंगाई को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीतियों में बदवाल करे, सार्वजनिक और बाहरी कर्ज को सीमित रखे। IMF की ओर से यह भी सलाह दी जाती है कि देश अपने टैक्स प्रणाली बदलें, सार्वजनिक खर्चे को नियंत्रित करें, भ्रष्टाचार खत्म करें, बाजार सुधारे, व्यापार नीतियों को उदार बनाएं, बैंकिंग सेक्टर को दुरुस्त करें। श्रम नीतियों में बदलाव करें। 

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अगर शर्तें पूरी न हों तो क्या होता है?
अगर शर्तें पूरी नहीं होती हैं तो लोन की अगली किश्त रोकी का जा सकती है। IMF पर वैश्विक दबाव पड़ रहा है कि पाकिस्तान के कर्ज की 9 मई को समीक्षा करे। पाकिस्तान के डर है कि उसका बेल आउट पैकेज न प्रभावित हो जाए। वजह यह है कि IMF का निर्देश होता है कि हर हाल में ऐसी नीतियों लागू की जाएं, जो आर्थिक स्थिरता और सतत विकास को बढ़ावा दें। वित्तीय और आर्थिक आंकड़ों में पारदर्शिता कायम रहे। पाकिस्तान पर भारत ने आरोप लगाया है कि इस देश ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। 

IMF की शर्तों से परेशानियां क्या आती हैं?
IMF की कुछ शर्तें ऐसी होती हैं, जिसकी वजह से आर्थिक स्थिरता आने की जगह अस्थिरता बढ़ जाती है। IMF खर्च में कटौती, सब्सिडी खत्म करने और प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने की सलाह देता है। सब्सिडी खत्म होती है, महंगाई बढ़ती है तो जनता आक्रोशित होती है। पाकिस्तान ने साल 2019 में IMF से एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF) के तहत लोन लिया था, जिसकी शर्तों में राजस्व बढ़ाना, ऊर्जा सब्सिडी कम करना और केंद्रीय बैंक को स्वायत्त करना शामिल था। 

पाकिस्तान को 6 बिलियन डॉलर का कर्ज मिला लेकिन इस कर्ज का कुछ ही हिस्सा पाकिस्तान को मिला है। 37 महीनों में पूरी धनराशि आएगी। पाकिस्तान में महंगाई अचानक से बढ़ गई, बिजली की कीमतें बढ़ गईं, टैक्स लगाया गया, जिसकी वजह से मिडिल क्लास नाराज हो गया। नीतियां इतनी कठोर हो गईं को प्राइवेटाइजेशन में निवेश की कम हो पाया। आर्थिक मंदी आई, जनता में नाराजगी बढ़ी। साल 2020 से ही पाकिस्तान परेशान है। 

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IMF के पास पैसा कहां से आता है?
IMF के पास हर सदस्य देश के लिए एक विशेष कोटा होता है। यह कोटा, अर्थव्यवस्था के आकार पर आधारित होती है। IMF अपने सदस्य देशों को गैर-रियायती कर्ज देने के लिए मुख्य रूप से सदस्य देशों अपने कोटा के हिसाब से योगदान देते हैं। यही राशि, IMF में जमा होती है। आर्थिक संकट के दौरान, सदस्य देश, इस संस्था से मदद मांगते हैं। दिसंबर 2023 तक, IMF के पास कुल 982 बिलियन स्पेशल ड्राविंग राइट्स थे। इसके तहत IMF करीब 695 बिलियन SDR तक कर्ज दे सकता था। भारतीय अंकों में यह राशि 78 लाख करोड़ रुपये के आस-पास हो सकती है।

क्या भारत को भी IMF ने दिया है कर्ज?
भारत ने साल 1981-82 और 1991-92 में कर्ज लिया था। 80 के दशक में भारत ने एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी, और 90 के दशक में स्टैंड-बाय-अरेंजमेंट् और कंपनसेटरी फाइनेंसिंग फैसिलिटी के तहत कर्ज लिया था। भारत ने 19947 से 2000 के बीच तक IMF से करीब 10 से 12 अरब डॉलर का कर्ज लिया था, जिसे भारत ने चुका दिया है। भारत IMF का कर्जदार नहीं है, भारत IMF को पैसे देता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब 700 अरब डॉलर से ज्यादा हो चुका है। 

 

सबसे ज्यादा कर्जदार कौन है?

  • अर्जेंटीना- 40.9 अरब डॉलर 
  • मिस्र- 11 अरब डॉलर
  • यूक्रेन- 9 अरब डॉलर
  • पाकिस्तान- 7 अरब डॉलर
  • इक्वाडोर- 6 अरब डॉलर 
  • कोलंबिया- 3 अरब डॉलर
  • अंगोला- 3 अरब डॉलर
  • केन्या- 3 अरब डॉलर
  • घाना- 2 अरब डॉलर
  • आइवरी कोस्ट- 2 अरब डॉलर
    (सोर्स: IMF)

इन्हें अगर और आसान भाषा में समझें तो अर्जेंटीना ने IMF से करीब 3.41 लाख करोड़ रुपये कर्ज लिए हैं। मिस्र पर 91,850 करोड़ रुपये का कर्ज है, यूक्रेन पर 75,150 करोड़ रुपये का कर्ज है। पाकिस्तान ने IMF से करीब 63.39 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया है।

 
IMF को किन देशों से मिलती हैं फंडिंग?
191 देशों को IMF से फंडिंग मिलती है। अमेरिका सबसे ज्यादा फंड देता है। अमेरिका का IMF कोटा करीब 155 अरब डॉलर है। कुछ आंकड़ों में  अमेरिका के पास 17 फीसदी वोटिंग पावर भी है। जापान, चीन और जर्मनी जैसे देश भी पैसे देते हैं।

  • अमेरिका- 110 अरब अमेरिकी डॉलर
  • जापान- 40 अरब डॉलर
  • चीन- 40.54 अरब डॉलर
  • जर्मनी- 35.42 अरब डॉलर
  • फ्रांस- 26.81 अरब डॉलर
  • यूके- 26.81
  • इटली- 20.04 अरब डॉलर
  • भारत- 18 अरब डॉलर
    (सोर्स: IMF)

IMF की जरूरत क्यों है?
सदस्य देश वित्तीय संकट में न फंसे, खराब हुई अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे, वैश्विक विकास में कोई देश पीछे न छूटने पाए, मुद्रा स्थिर रहे, अवमूल्यन न होने पाए, व्यापार, रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। IMF अपने देशों को विकास के लिए मंच देता है, तकनीकी सहायता और नीतिगत सलाह देता है, जिससे संकटग्रस्त देशों की आर्थिक नीतियां सुधरती भी हैं। IMF की शर्तें हमेशा से ही आलोचना के केंद्र में रहीं लेकिन तब भी वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए ऐसी संस्थाओं का होना जरूरी है। 

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