फ्री की रेवड़ियों में दबता जा रहा 'महंगाई' का मुद्दा, आखिर क्यों?
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• NEW DELHI 20 Dec 2024, (अपडेटेड 21 Dec 2024, 6:08 AM IST)
देश की राजनीति ने ऐसी करवट ली है कि 'महंगाई' पर बात करने की बजाय अन्य मुद्दों को प्रथमिकता दी जा रही है। तमाम मुद्दों के बीच लोगों को यह पता नहीं लग पा रहा है कि कैसे उनकी जेब ढीली हो रही है।
प्रतीकात्मक तस्वीर। Source- AI
साल 2024 में लोकसभा चुनाव के साथ में जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। लोकसभा चुनाव में मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान, संविधान पर खतरा, सरकार की योजनाओं पर खूब बातें हुईं। वहीं, चारों राज्य विधानसभा चुनावों में सुरक्षा, 370 को लेकर नाराजगी, राज्य की बहाली, घुसपैठिया, मुसलमान जमीन हड़प लेंगे, हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी, जाट और जातियों की बात हुई। लेकिन इन चुनाव में अगर बात नहीं हुई तो वह है 'महंगाई' की।
महंगाई भारत के आम लोगों के लिए वह मुद्दा है जो हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने और हर साल उन्हें प्रभावित करती है। यहां महंगाई से मलतब कार, घड़ी और सुपरबाईक से नहीं है, बल्कि महंगाई से मलतब सब्जी, दाल और रोटी जैसी रोजमर्रा के जरूरी सामानों से है। दुर्भाग्य यह है कि बीते इन चुनावों में किसी भी पार्टी और देश के किसी बड़े नेता ने महंगी सब्जी, दाल और रोटी को मुद्दा नहीं बनाया बल्कि सबने देश के लोगों को फ्री में रेवड़ियां बांटने पर जोर दिया।
फ्री की रेवड़ियां
किसी पार्टी ने महिलाओं को वोट लेने के लिए हर महीने अकाउंट में पैसे देने की बात की तो किसी ने बुजुर्गों को, तो कुछ ने गरीबों को। पार्टियां और उसके नेता इस बात को बड़ी ही चालाकी से भूल गए या इस मुद्दे को 'भूलवा' दिया गया कि महंगाई पर बात ना हो। वैसे भी आखिर में राजनीतिक पार्टियां या सरकारें देश के लोगों को कितनी भी फ्री की रेवड़ियां दे दें लेकिन सब्जी, दाल और रोटी उन्हें रोज खुद से ही खरीद कर खानी है।
देश की राजनीति ने करवट ली
देश की राजनीति ने ऐसी करवट ली है कि 'महंगाई' पर बात करने की बजाय अन्य मुद्दों को प्रथमिकता दी जा रही है। तमाम मुद्दों के बीच लोगों को यह पता नहीं लग पा रहा है कि कैसे उनकी जेब ढीली हो रही है। भारतीय FMCG कंपनियां खाद्य तेल और गेहूं जैसे प्रोडक्ट्स की बढ़ती कीमतों के बीच 3 से 5 फीसदी तक अपनी वस्तुओं की कीमतें बढ़ाने पर विचार कर रही हैं। ये कंपनियां लगातार मुद्रास्फीति के बीच उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादों के आकार को ही कम कर रही हैं। कंपनियां इससे वस्तुओं की मूल्य वृद्धि को संतुलित कर रही हैं।
इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रोडक्ट्स के दाम भले ही ना बढ़े रहे हों लेकिन इनका आकार कम हो रहा है, ऐसे में उपभोक्ताओं को फिर भी चपत लग रही है। उपभोक्ता भी इस खबर को जनकर भी बेखबर बन रहा है।
महंगाई के लिए हो जाएं तैयार
पैकेज्ड कंज्यूमर सामान बनाने वाली कंपनियां ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज, पारले प्रोडक्ट्स लिमिटेड, आईटीसी लिमिटेड और गोदरेज इंडस्ट्रीज अपने प्रोडक्ट पैक के आकार को कम करने पर काम कर रही हैं। इसी को उद्योग की भाषा में कीमतों में बढ़ोतरी करते हैं। कंपनियों का कहना है कि गेहूं और तेल जैसे प्रमुख कच्चे माल की कीमतें बढ़ने की वजह से बिस्कुट, केक, साबुन और पैकेज्ड सामानों को बनाने में ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। इन प्रोडक्ट्स में आने वाली तिमाहियों में 7 फीसदी तक की बढ़ोतरी होने की संभावना जताई जा रही है।
FMCG सेक्टर क्या है?
FMCG यानी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स। यह वो उत्पाद हैं जो एक सामान्य उपभोक्ता द्वारा इस्तेमाल के लिए खरीदे जाते हैं। यह कम कीमत पर जल्दी बिक जाते हैं। ये उत्पाद रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े होते हैं और इनमें भोजन, पेय पदार्थ, टॉयलेटरीज़, सफाई की चीजें और अन्य घरेलू सामान शामिल हैं।
FMCG सेक्टर में प्रोसेस्ड फूड आते हैं। इसमें दूध, दही, मक्खन, अनाज आदि के प्रोडक्ट्स आते हैं। इसके अलावा फ्रूट्स, सब्जी, ड्राई फ्रूट, बोतलबंद पानी, एनर्जी ड्रिंक, जूस, कूकीज , ब्रेड और बिस्कुट आते हैं।
यूं महंगे हुए आटा, तेल और मसाले
बीते एक साल में आटा, तेल, मसाले और मेवों की कीमतों में डेढ़ से दो गुना कर की बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं सर्दी का मौसम आने के बाद भी सब्जियों की कीमतें कम नहीं हो रही हैंष पिछले साल दिसंबर में जहां मटर 40-50 रुपये प्रतिकिलो के भाव से मिल रही थी वह इस साल 80-100 रुपये किलो मिल रही है। इसी तरह से हर सब्जी में डलने वाले आलू के दाम भी कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। पिछले साल आलू 17 रुपये किलो जबकि इस साल 30 रुपये किलो बिक रहा है।
यही हाल टमाटर और लहसुन का भी है जो पिछले साल के मुकाबले क्रमश: 35 से बढ़कर 50-60 रुपये किलो और 200-240 से बढ़कर 400-450 रुपये किलो बिक रहा है। बता दें कि यह फुटकर सब्जी विक्रेताओं के दाम हैं।
आटा-तेल के दाम
सामान | दिसंबर 2023 | दिसंबर 2024 |
सरसों का तेल (पैक्ड) | 130 | 142 |
वनस्पति घी | 100 | 150 |
आटा पैक्ड (10 किलो का कट्टा | 310 | 430 |
रिफाइंड तेल | 110 | 140 |
सब्जी खरीदने में परेशानी हो रही
उत्तर प्रदेश के नोएडा में रहने वाली एक गृहिणी चंदा ने बढ़ती महंगाई को लेकर कहा कि रोजमर्रा की सब्जी खरीदने में परेशानी हो रही है। हम पहले जितनी सब्जी खरीदते थे उसकी मात्रा को अब कम कर दिया है। महीने में सब्जी और राशन खरीदने से घर का बजट बिगड़ गया है।
मंडी से महंगी आ रही है सब्जी
वहीं, नोएडा में ही सब्जी विक्रेता राधे ने 'खबरगांव' से बात करते हुए कहा, 'सब्जी मंडी से ही महंगी आ रही है, जिसकी वजह से मुझे भी लोगों को महंगे दाम में सब्जी बेचना पड़ रहा है। महंगाई की वजह से लोग सब्जी कम खरीद रहे हैं। लोग इस समय दाल और आलू अधिक खा रहे हैं।' राधे ने आगे बताया कि टमाटर, बैगन, मटर खरीदने वालों की तादात घटी है और इनमें से आलू सस्ता होने की वजह से लोग 4-5 किलो आलू ले जाते हैं और वहीं खाते हैं।
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