स्विगी, जोमैटो, ब्लिंकिट और जेप्टो जैसी कंपनियों में काम करने वाले गिग वर्कर्स आज हड़ताल पर हैं। काम के हालात, कम सैलरी और सोशल सिक्योरिटी की कमी को लेकर गिग वर्कर्स हड़ताल कर रहे हैं। गिग वर्कर्स ने यह हड़ताल न्यू ईयर के मौके पर बुलाई है, जिससे पीक आवर्स में डिलीवरी सर्विस बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) और तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स यूनियन (TGPWU) ने यह हड़ताल बुलाई है। फेडरेशन का कहना है कि डिलीवरी वर्कर्स को लंब समय तक काम करना पड़ता है लेकिन इसके बावजूद न तो उन्हें सही सैलरी मिलती है और न ही जॉब सिक्योरिटी। गिग वर्कर्स का यह भी कहना है कि '10 मिनट डिलीवरी मॉडल' को खत्म किया जाना चाहिए।
स्विगी, जोमैटो से घर-घर खाना पहुंचाने वाले एजेंटों को कहना है कि लंबे समय तक काम करने के बावजूद उनकी कमाई कम हुई है, जिससे वे आर्थिक रूप से परेशान हैं।
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गिग वर्कर्स का क्या है कहना?
गिग वर्कर्स वे कर्मचारी होते हैं जिन्हें टास्क पूरा करने के हिसाब से पेमेंट मिलता है। इनकी कोई फिक्स्ड सैलरी नहीं होती, ना ही ज्यादातर मामलों में PF, इंश्योरेंस, लीव जैसी सुविधाएं।
एक फूड डिलीवरी एजेंट ने कहा, 'अभी डिलीवरी बंद हैं। हमने सुना है कि हड़ताल है, इसलिए हम बिल्कुल काम नहीं कर रहे हैं। हम शुक्रगुजार हैं कि कंपनी ने शुरुआत में हमें बहुत कुछ दिया। लेकिन अब वे सब कुछ वापस ले रहे हैं जो उन्होंने दिया था। दूसरी कंपनियां प्रमोशन देती हैं, लेकिन यहां हमें सिर्फ डिमोशन मिल रहा है। घर चलाने के लिए हमें 15-16 घंटे काम करना पड़ता है।'
एक फूड डिलीवरी एजेंट ने कहा, 'शुरू में रेट कार्ड ठीक था, लेकिन अब उन्होंने इसे बदल दिया है, जिससे सभी राइडर्स को दिक्कतें और परेशानियां हो रही हैं। हमें इंश्योरेंस क्लेम भी नहीं मिलता। हाल ही में बाराखंभा में एक राइडर का एक्सीडेंट हो गया था और उसे कोई क्लेम नहीं मिला। हमारे टीम लीडर और कंपनी के सीनियर अधिकारियों ने उसे एक PDF बनाने को कहा, जिसे वे बैंगलोर भेजेंगे। वहां से कोई जवाब नहीं आया। हम सबने मिलकर उस राइडर की मदद के लिए 1000-2000 रुपये दिए। अब वह लड़का रात में भी काम कर रहा है, रात 1 या 2 बजे ऑर्डर ले रहा है।'
उन्होंने कहा, 'टीम लीडर कभी फोन नहीं उठाता। 20 या 25 कॉल के बाद अकड़ के साथ जवाब देता है। और अगर आप उससे थोड़ी भी बहस करते हैं, तो वह आपकी ID ब्लॉक कर देता है। 14 घंटे काम करने के बाद हमें सिर्फ 700-800 रुपये मिल रहे हैं। आज पूरे दिल्ली में हड़ताल है।'
एक और फूड डिलीवरी एजेंट ने कहा, 'हम भी हड़ताल में हिस्सा ले रहे हैं। इसके कई कारण हैं। उदाहरण के लिए, रेट कार्ड। हमें पर्याप्त पैसे नहीं मिलते। कंपनी इंश्योरेंस नहीं देती। जब हम कस्टमर के पास जाते हैं, चाहे हम कितनी भी परेशानी में हों, हम मुस्कुराते हैं और कहते हैं, 'धन्यवाद सर, हमें रेटिंग दे दीजिए।' अगर किसी भी वजह से ऑर्डर कैंसिल हो जाता है, तो पेनल्टी राइडर पर लगती है। कंपनी को इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए।
गिग वर्कर्स का कहना है कि हम दिन में 14 घंटे काम करते हैं, दिन-रात सड़क पर बिताते हैं। हमें अपने काम के हिसाब से पैसे नहीं मिलते।'
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क्या हैं गिग वर्कर्स की मांगें?
इससे पहले 25 दिसंबर को भी गिग वर्कर्स ने हड़ताल की थी। TGPWU के फाउंडर और प्रेसिडेंट शेख सलाउद्दीन ने कहा, 'हमारी प्लेटफॉर्म कंपनियों से मांग थी कि हमारा पुराना पेआउट स्ट्रक्चर फिर से लागू किया जाए और सभी प्लेटफॉर्म से 10 मिनट डिलीवरी का ऑप्शन हटा दिया जाए। हमने 25 और 31 तारीख को हड़ताल का आह्वान किया था। 25 तारीख को पूरे भारत में 40 हजार वर्कर्स इसके समर्थन में सामने आए।'
उन्होंने कहा था कि हम इस बारे में चर्चा करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने इस मामले में राज्य और केंद्र सरकार से भी दखल देने का अनुरोध किया था।
हड़ताल कर रहे गिग वर्कर्स की एक मांग यह भी थी कि काम के दौरान ब्रेक दिया जाना चाहिए और वर्कर्स से तय समय से ज्यादा काम नहीं करवाया जाना चाहिए। उन्होंने अपने लिए स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना कवर और पेंशन जैसी सोशल सिक्योरिटी भी मांगी है।