वंदे भारत ट्रेनें भारत की सबसे तेज गति और समय से चलने वाली ट्रेनों में से एक है। इस ट्रेन ने अपनी तेज हाई स्पीड वाली डिजाइन और आधुनिक सुविधाओं के साथ लोगों के यात्रा अनुभव को ही बदल दिया है। वंदे भारत भारत के लगभग हर बड़े शहर से चल रही हैं। अभी तक यह ट्रेन सिर्फ चेयर कार थी लेकिन अब इसमें स्लीपर कोच भी जोड़े गए हैं, जिससे लोगों में इसका क्रेज बढ़ रहा है।
भारतीय रेलवे अपनी सभी ट्रेनों पर अपना मालिकाना हक रखता है। क्या आपको पता है वंदे भारत ट्रेनों का संचालन करने के बावजूद, भारतीय रेलवे इनके लिए सालाना भारी किराया चुकाता है। ऐसे में एक दिलचस्प सवाल उठता है कि वंदे भारत ट्रेनों का असली मालिक कौन है? अगर रेलवे वंदे भारत का असली मालिक है तो वह इनके लिए किराया क्यों चुकाता है?
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वंदे भारत ट्रेनों का असली मालिक कौन है?
वंदे भारत ट्रेनों का असली मालिक भारतीय रेलवे ही है। मेक इन इंडिया पहल के तहत इन ट्रेनों का निर्माण चेन्नई में होता है। इसके अलावा, देश के अन्य हिस्सों में भी वंदे भारत का निर्माण किया जाता है। अब तक रेलवे ने वंदे भारत ट्रेनों के लिए लगभग 500 कोच तैयार कर चुका है। इसमें से कई कोच का निर्यात दूसरे देशों को भी किया गया है।
भारतीय रेलवे किराया देता है?
भारतीय रेलवे वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण चेन्नई और देश के अलग-अलग हिस्सों में करता है। इसका मालिकाना हक पूरी तरह से रेलवे के पास है, इसके बावजूद कोई सोच सकता है कि रेलवे वंदे भारत ट्रेनों के लिए हर साल किराया क्यों देता है? इन ट्रेनों के लिए किराया देने के पीछे की सबसे बड़ी वजह इसमें आने वाला भारी-भरकम खर्च है। दरअसल, रेलवे वंदे भारत ट्रेन के कोच को बनाने के लिए हर साल अरबों डॉलर खर्च करता है।
रेलवे के पास वंदे भारत को बनाने के लिए एक साथ इतनी बड़ी रकम नहीं है। ऐसे में रेलवे मार्केट से पैसे उधार लेता है या यूं कहें कि कर्ज लेता है। रेलवे को यह उधारी भारतीय रेलवे वित्त निगम (IRFC) देता है। IRFC रेलवे द्वारा वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थापित एक कंपनी है।
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पैसा खर्च कैसे होता है?
रेलवे IRFC से जो उधारी लेता है उसे कई तरीकों से खर्च करता है। इन पैसों का इस्तेमाल रेलवे वंदे भारत और अन्य रेलगाड़ियों के डिब्बों के निर्माण, नई पटरियां बिछाने और निर्माण परियोजनाओं के लिए करता है। IRFC इन कामों के लिए फंड देता है और फिर उन्हें रेलवे को लीज पर दे देता है। इसके बदले में रेलवे ये पैसे सालाना किराए के तौर पर IRFC को वापस लौटाता है। दरअसल, इस तरीके को अपनाने का मकसद यह है कि शुरुआती दौर में ही रेलवे पर भारी लागत का बोझ ना पड़े, बल्कि वह रेल संचालन से होने वाली कमाई से IRFC को धीरे-धीरे उधारी चुका सके।
रेलवे ने कितना खर्च किया?
वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय रेलवे ने IRFC से उधार ली गई उधारी पर मूलधन और ब्याज दोनों को चुकाने के लिए 30,154 करोड़ रुपये खर्च किए। रेलवे ने इस धनराशि में से 17,000 करोड़ रुपये से ज्यादा मूलधन के रूप में और 13,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ब्याज के रूप में चुकाए गए।
इस अवधि तक, रेलवे ने 2.95 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति पट्टे पर हासिल की थी। इसमें वंदे भारत ट्रेनें, लगभग 13,000 रेलवे के इंजन और अलग-अलग कोचों शामिल थे। यह भारी-भरकम खर्च भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण के पीछे की वित्तीय रणनीति को दर्शाता है।