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अलौली विधानसभा: क्या RJD मारेगी हैट्रिक या JDU फिर से कायम करेगी जलवा

अलौली विधानसभा पर पिछले दो बार से आरजेडी जीत दर्ज कर रही है। इस बार देखना होगा कि क्या वह हैट्रिक मार पाती है या फिर जेडीयू उससे यह सीट छीन पाएगी। 

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बिहार के खगड़िया जिले की अलौली विधानसभा सीट वीआईपी सीटों में गिनी जाती है, क्योंकि यह सीट कई बार बड़े नेताओं की सियासी जंग का केंद्र रही है। यह सीट खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। सामाजिक समीकरण के लिहाज से यह विधानसभा अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है।

 

अलौली सीट का गठन 1977 में हुआ था। तब से अब तक यहां 11 बार चुनाव हो चुके हैं। इस सीट पर दलित समाज का दबदबा माना जाता है। अलौली का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है, यहां कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू सभी को जीत का स्वाद मिल चुका है।

 

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मौजूदा समीकरण

अलौली सीट वर्तमान में आरजेडी के कब्जे में है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार रामवृक्ष सदा ने जीत दर्ज की थी। खगड़िया जिले की इस सीट पर यादव, दलित और मुस्लिम वोटरों का समीकरण बेहद असरदार माना जाता है। यही वजह है कि आरजेडी को यहां बढ़त मिलती रही है।

जेडीयू और एलजेपी भी यहां सशक्त दावेदारी पेश करते रहे हैं। लेकिन पिछले दो चुनावों से आरजेडी ने यहां अपना परचम लहराया है।

2020 में क्या हुआ था?

2020 के विधानसभा चुनाव में अलौली सीट पर लगभग 57 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस चुनाव में आरजेडी के रामवृक्ष सदा ने जेडीयू की साधना देवी को हराया था। इस सीट पर रामवृक्ष सदा को 47,183 वोट मिले थे जबकि साधना देवी को 44,410 वोट मिले थे।

विधायक का परिचय

रामवृक्ष सदा मुसहर जाति से हैं। उनकी शैक्षणिक योग्यता मैट्रिकुलेशन स्तर की है। राजनीतिक रूप से वे लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से जुड़े हैं। उनकी राजनीतिक विरासत खास तौर पर गरीबी, संघर्ष और सामाजिक न्याय की कहानियों से जुड़ी है। इनके पिता मजदूर थे, और रामवृक्ष सदा तकरीबन तीन दशकों तक स्थानीय स्तर पर संघर्ष करते रहे; चुनाव लड़ने के लिए चंदा इकट्ठा किया गया और 2010 में पहली बार जीतकर विधायक बने।

 

जहां तक आपराधिक मामले की बात है, रामवृक्ष सदा पर कोई खास आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है लेकिन उनके बेटे रामानंदन सदा की हाथ में राइफल के साथ फोटो वायरल हुई थी, और इस बात की शिकायत भी की गई थी कि पुलिस ने इस मामले में क्यों कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा, एक घटना में उनके पुत्र और उनको जान से मारने की धमकी मिलने की रिपोर्ट भी की गई थी, जब एक व्यक्ति उनसे रंगदारी मांगने आया था।

 

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विधानसभा का इतिहास

इस सीट पर ज्यादातर कांग्रेस और आरजेडी व जेडीयू का ही कब्जा रहा है।

1962: मिश्री सदा (कांग्रेस)

1967: मिश्री सदा (कांग्रेस)

1969: रामविलास पासवान (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)

1972: मिश्री सदा (कांग्रेस)

1977: पशुपति कुमार पारस (जनता पार्टी)

1980: मिश्री सदा (कांग्रेस)

1985: — (लोकदल)

1990: — (जनता दल)

1995: पशुपति कुमार पारस (जनता दल)

2000: पशुपति कुमार पारस (जेडीयू)

2005: — (लोक जनशक्ति पार्टी)

2005: — (लोक जनशक्ति पार्टी)

2010: रामचंद्र सदा (जेडीयू)

2015: चंदन कुमार (आरजेडी)

2020: रामवृक्ष सदा (आरजेडी)


यह सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन 1990 के बाद से सामाजिक समीकरण ने यहां आरजेडी को मजबूत किया।

 

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