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अमौर विधानसभा: क्या ओवैसी से कांग्रेस छीन पाएगी अपना सियासी दुर्ग?

बिहार की अमौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस सबसे मजबूत रही है। मगर पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने उनके किले में सेंधमारी की। 2025 के चुनाव में सबकी निगाह इस पर है कि क्या कांग्रेस अपना सियासी दुर्ग छिन पाएगी या नहीं?

Amour vidhan sabha.

अमौर विधानसभा सीट। ( Photo Credit: Khabargaon)

पूर्णिया जिले में पड़ने वाली अमौर विधानसभा सीट की गिनती मुस्लिम बहुल सीटों में होती है। यहां हिंदू आबादी अल्पसंख्यक है। 2020 में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने जीत दर्ज की थी। सीमांचल की इस सीट पर धार्मिक सियासत हावी रहती है। विधानसभा क्षेत्र की पूरी आबादी गावों में बसती है। हिंदू अल्पसंख्यक होने के बावजूद यहां से एक बार भारतीय जनता पार्टी भी जीत चुकी है। 

 

अमौर क्षेत्र के लोगों को हर साल परमान, कनकनई और महानंदा जैसी नदियों का प्रकोप झेलना पड़ता है। बाढ़ से होने वाली कटान यहां की मुख्य समस्या है। पुल नहीं होने के कारण आज भी बहुत से गांव मुख्य धारा से कटे हैं। मानसून सीजन में लोगों को सिर्फ नावों का सहारा होता है। खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और सरकारी स्कूलों की कमी भी बड़ा मुद्दा है।

 

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सीट का समीकरण

अमौर विधानसभा क्षेत्र में लगभग 69.8 फीसदी मुस्लिम मतदाता है। किसी भी प्रत्याशी के सियासी भाग्य का फैसला इन्हीं के हाथों में होता है। विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग 4.1 और अनुसूचित जनजाति के वोटर्स की संख्या 0.71 फीसदी है। 100 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। यहां के चुनाव में स्थानीय के अलावा राष्ट्रीय मुद्दों का भी असर दिखता है। 

 

यही वजह है कि पिछले चुनाव में ओवैसी की पार्टी को बड़ी जीत मिली। सीमांचल में ओवैसी की पार्टी के उदय ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को चिंता में डाल दिया है। अगर यहां मुस्लिम वोटों का बंटवारा आरजेडी और एआईएमआईएम के बीच होता है तो इसका फायदा जेडीयू जैसे दलों को मिल सकता है।

2020 विधानसभा चुनाव का रिजल्ट

पिछले विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान ने बाजी मारी थी। दो निर्दलीय समेत कुल 11 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। अख्तरुल ईमान के खिलाफ कांग्रेस ने अब्दुल जलील मस्तान और जेडीयू ने सबा जफर पर दांव खेला। अख्तरुल ईमान को सबसे अधिक 94,459 मत मिले। दूसरे स्थान पर 41,944 मतों के साथ जेडीयू प्रत्याशी सबा जफर रहे। दोनों के बीच हार जीत का अंतर 52,515 वोटों का रहा। कांग्रेस प्रत्याशी को 31,863 मत मिले थे। आठ प्रत्याशियों को अपनी जमानत गंवानी पड़ी।

मौजूदा विधायक का परिचय

विधायक अख्तरुल ईमान एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हैं। 2020 के चुनावी हलफनामे में उन्होंने समाज सेवा, व्यवसाय और कृषि को अपना पेशा बता रखा है। अख्तरुल ईमान ने 1990 में पटना स्थित मगध विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। उनके पास जहां 74 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति है तो वहीं 7 लाख रुपये से ज्यादा की देनदारी भी। चुनावी हलफनामे के मुताबिक उनके खिलाफ आठ मामले दर्ज हैं। अख्तरुल ईमान एआईएमआईएम से पहले आरजेडी और जेडीयू में भी रह चुके हैं। उनका विवादित बयान से भी पुराना नाता है। 

विधानसभा सीट का इतिहास

अमौर विधानसभा सीट साल 1967 में अस्तित्व में आई। पूर्णिया जिले में होने के बावजूद अमौर विधानसभा सीट किशनगंज लोकसभा का हिस्सा है। अमौर विधानसभा सीट पर दो उपचुनाव समेत कुल 15 बार चुनाव हो चुके हैं। सबसे अधिक छह बार कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की। 1967 और 1969 में दो बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने अपना परचम लहराया।

 

1972 में पहली बार हसीब उर रहमान बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीते। हालाांकि वह दो बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक रह चुके थे। साल 1985 में पहली बार बतौर निर्दलीय विधायक विधानसभा पहुंचने वाले अब्दुल जलील अमौर से छह बार विधायक रहे। पिछले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अमौर विधानसभा सीट से जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम और भाजपा को भी एक-एक बार जीत मिल चुकी है।

 

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अमौर विधानसभा: कब-कौन जीता
साल विजेता   पार्टी
1967 हसीब उर रहमान प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1969 हसीब उर रहमान प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1972 हसीब उर रहमान निर्दलीय 
1977 चंद्रशेखर झा जनता पार्टी
1980 मो. मोइजुद्दीन मिन्शी कांग्रेस (आई)
1985 अब्दुल जलील मस्तान  निर्दलीय
1990 अब्दुल जलील मस्तान कांग्रेस
1995  मुजफ्फर हुसैन समाजवादी पार्टी
2000 अब्दुल जलील मस्तान कांग्रेस
2005 (फरवरी) अब्दुल जलील मस्तान कांग्रेस
2005 (अक्तूबर) अब्दुल जलील मस्तान कांग्रेस
2010   सबा जफर बीजेपी
2015 अब्दुल जलील मस्तान कांग्रेस
2020 अख्तरुल ईमान एआईएमआईएम 

 

नोट: आंकड़े भारत निर्वाचन आयोग

 

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