logo

ट्रेंडिंग:

BJP, JDU, RJD; अति पिछड़ों पर टिकी सभी की निगाहें, कौन मारेगा बाजी?

बिहार विधानसभा चुनाव में सभी की निगाहें अति पिछड़ों पर हैं क्योंकि राज्य में इनकी आबादी काफी संख्या में है।

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार । Photo Credit: PTI

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार । Photo Credit: PTI

संजय सिंह, पटना: बिहार की राजनीति इस बार के विधानसभा चुनाव में एक नए मोड़ पर खड़ी है। सभी राजनीतिक दलों की निगाहें इस बार खास तौर पर पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक पर टिकी हैं। राज्य की कुल आबादी में अति पिछड़ों की हिस्सेदारी करीब 36 प्रतिशत है, जिनमें 112 उपजातियां शामिल हैं। इनका राजनीतिक महत्व इस बार पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। चुनावी समीकरणों में यह वर्ग 'किंगमेकर' साबित हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है—क्या कोई दल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस वोट बैंक पर मजबूत पकड़ को तोड़ पाएगा?

 

नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद से ही उनकी राजनीति का केंद्र बिंदु पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 115 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें 67 प्रत्याशी पिछड़ी या अति पिछड़ी जातियों से थे। इनमें से सिर्फ अति पिछड़ा वर्ग के 27 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। यही वजह है कि यह वर्ग नीतीश के लिए मजबूत आधार बना हुआ है। भाजपा भी अब इसी रणनीति पर चल रही है। टिकट बंटवारे में पिछड़ों की हिस्सेदारी बढ़ाने और जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का निर्णय इसी वोट बैंक को साधने की दिशा में देखा जा रहा है।

 

यह भी पढ़ेंः कौन हैं मिंता देवी, संसद में क्यों छाईं हैं इनकी तस्वीरें?

कांग्रेस भी बदल रही पैटर्न

कभी दलित, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर भरोसा करने वाली कांग्रेस अब समीकरण बदल रही है। भागलपुर दंगे के बाद अल्पसंख्यक वोटर आरजेडी के पाले में चले जाने के कारण कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। पार्टी ने दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर साफ संकेत दिया है कि अब उसका फोकस पिछड़ों और अति पिछड़ों को लुभाने पर होगा।

आरजेडी का नया दांव

आरजेडी अब अपने पारंपरिक 'माई' (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती। लोकसभा चुनाव में उम्मीद से कम सफलता मिलने के बाद पार्टी को यह अहसास हुआ है कि चुनावी जीत के लिए पिछड़ों और अति पिछड़ों का समर्थन जरूरी है। यही कारण है कि पार्टी ने मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जो लालू प्रसाद के भरोसेमंद नेताओं में गिने जाते हैं।

 

यह भी पढ़ेंः बिहार: कम जनाधार, बड़ा नुकसान, बड़ी पार्टियों पर भारी पड़ते छोटे दल

 

उम्मीद है कि यह बदलाव विधानसभा चुनाव में पार्टी को अतिरिक्त समर्थन दिला सकता है। हालांक, भाकपा माले की बात करें तो उसकी रणनीति में ज्यादा बदलाव नहीं दिख रहा है। यह पार्टी पहले से ही पिछड़ा, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग की राजनीति करता आ रहा है और उसी आधार पर चुनावी मैदान में उतरेगा।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap