संजय सिंह, पटना: बिहार की सियासत में विकास, रोजगार या शिक्षा जैसे मुद्दे बार बार उठते हैं, लेकिन चुनाव आते ही सबके गहरी जातीय समीकरणों की दिखती है। राज्य की राजनीति में मौजूद 215 जातियों में कुछ ऐसी ही है, जो दशकों से सत्ता की मुख्य धारा में है। जबकि कई जातियां अब तक विधानसभा के प्रतिनिधित्व से वंचित हैं। राज्य में अतिपिछड़ा वर्ग (इबीसी) की जातियों की संख्या सबसे अधिक 112 है। इसके बाद पिछड़ा वर्ग (बीसी) की संख्या 30, अनुसूचित जातियों (एसटी) की संख्या 22, सामान्य वर्ग की सात और अन्य जातियों की संख्या 12 प्रतिशत है। सियासी विश्लेषकों के अनुसार इस बार चुनाव में अति पिछड़ी जातियां सबसे महत्वपूर्ण निर्णायक भूमिका में रहेगी। चुनाव मैदान में उतरे दल इस जाति को साधने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुए है।
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RJD का कुशवाहा और भूमिहार पर दांव
आरजेडी की राजनीति का मूल आधार (माई) मुस्लिम यादव समीकरण है। इन्हीं समीकरणों के आधार पर लालू लंबे समय तक बिहार में शासन करते रहे। इस समीकरण में सेंधमारी न हो इस कारण मुस्लिम राजनीति पर मजबूत रखने वाले असदुद्दीन ओवैसी को महागठबंधन में इंट्री का रास्ता नहीं मिला। आरजेडी के समीकरण का लाभ कांग्रेस उठाती है। संगठन और जनाधार के मामले में कांग्रेस बिहार के हाल के वर्षों में कमजोर हुई है। पिछड़ा और अतिपिछड़ा वोट बैंक जेडीयू के तरफ खिसका है। लालू प्रसाद यादव इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि सिर्फ माई समीकरण के आधार पर बिहार में सत्ता में वापसी संभव नहीं है। आरजेडी ने अब कुशवाहा और भूमिहार वोट को साधने की कोशिश शुरू कर दी है। चर्चा है कि कुशवाहा प्रत्याशी को 12 और भूमिहार को दस सीटें देने की तैयारी चल रही है।
सहनी डिप्टी सीएम की मांग पर अड़े
आरजेडी ने महागठबंधन में शामिल घटक दलों से अनुरोध किया है कि जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही टिकट का बंटवारा किया जाय। कई जगहों पर कांग्रेस या दूसरे अन्य दल के लोग चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उन्हीं सीटों पर आरजेडी ने भी अपनी उम्मीदवारी ठोंक दी है। भागलपुर के कहलगांव सीट पर कांग्रेस की मजबूत दावेदारी है। इस क्षेत्र में कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी चुनाव प्रचार प्रसार कर भी रहे हैं, लेकिन अब आरजेडी की नजर इस सीट पर पड़ गई है।
आरजेडी यहां से झारखंड सरकार के एक मंत्री के बेटे को टिकट देना चाहती है। कांग्रेस यह सीट आरजेडी को देने के मूड में नहीं है। इधर वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी तीन महीने में 27 बार डिप्टी सीएम की दावेदारी कर चुके हैं। हालांकि कांग्रेस और आरजेडी ने सहनी के इस दावे का विरोध किया है। सहनी ने कहा कि यह बात पूरी तरह गलत है कि उनकी बात एनडीए से चल रही है। उन्होंने कहा कि वे पूरी तरह महागठबंधन के साथ हैं। आगामी समय में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनेगी। उनकी मांग तो सिर्फ इतनी है कि यदि उनकी सरकार बने तो उन्हें डिप्टी सीएम का पद दिया जाय।
पेच सुलझाने डी रजा पहुंचे पटना
महागठबंधन में सीट शेयरिंग का पेच फंसा हुआ है। सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव डी रजा इस केस को सुलझाने पटना पहुंचे हुए हैं। पिछले चुनाव में सीपीआई को छह सीटें मिली थी, लेकिन जीत दो पर ही हासिल हुई थी। इस बार सीपीआई ने महागठबंधन से 24 सीटों की डिमांड की है। पार्टी ने अपनी सूची महागठबंधन के संयोजक को सौंप दी है। माले और सीपीआई भी ज्यादा सीटों की मांग कर रही है। डी रजा की मुलाकात प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से हो चुकी है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि दोनो नेताओं के बीच सीट शेयरिंग का मामला सुलझ जाय। इधर इस बीच यह भी चर्चा है कि महागठबंधन में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा को चुनाव लड़ने के लिए दो सीटें दिए जाने की सहमति बन गई है। झामुमो को कटोरिया और मनिहारी की सीट मिल सकती है।
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बहरहाल इस चुनाव यह नारा जोड़दार तरीके से उछाला जा रहा है कि ‘जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ लेकिन वास्तविकता यह है कि छोटे और बिखरे वोट बैंक अब भी सियासत की भीड़ में हाशिए पर है। दल बड़े जातीय समूहों को प्राथमिकता दे रहे हैं। जबकि कई छोटी जातियां अब भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व के इंतजार में है।