संजय सिंह, पटना। छठ महापर्व के नौवें दिन पहले चरण का मतदान होगा, जबकि दूसरे चरण का मतदान 14वें दिन निर्धारित किया गया है। दीपावली के समय से ही प्रवासी वोटरों का गांव घर आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। छठ मनाने के दो तीन दिन बाद यह पुनः अपने काम पर शहरों में लौट जाते हैं। सियासी दलों को ऐसे लगभग 46 लाख वोटरों को रोकना आसान नहीं होगा। इसके लिए सियासी दलों को और उम्मीदवारों को विशेष अभियान चलाने की जरूरत होगी।
दूसरे चरण में होगी ज्यादा समस्या
पहले चरण के चुनाव में वोटरों को रोकने में ज्यादा समस्या नहीं होगी, लेकिन दूसरे चरण के मतदाताओं को रोकना भी आसान नहीं होगा। 14 दिनों तक दूसरे चरण वाले वोटर रुकना नहीं चाहेंगे। इससे उनके रोजी रोजगार पर असर पड़ेगा। हालांकि सियासी दलों ने ऐसे वोटरों को रोकने के लिए पुरजोर तैयारी कर रखी है। उनको लुभाने के लिए कई महीने पहले से उनसे संपर्क साधा जा रहा है। कुछ वोटरों को घर आने-जाने की सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात भी कही जा रही है। घर आने पर चुनाव के संबंध में बताया जाएगा। उनसे अनुरोध किया जाएगा कि वे चुनाव तक रूकें। कुछ लोगों ने छठ के दौरान गिफ्ट बांटने की योजना भी बनाई है। छठ के लिए विशेष किट भी तैयार किया गया है।
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46 लाख लोग रहते हैं प्रदेश से बाहर
जातीय आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 46 लाख लोग रोजगार को लेकर दूसरे प्रदेश में रहते हैं। यदि छठ, दीपावली के दौरान एक तिहाई लोगों की वापसी होती है तो, ऐसे लोगों की संख्या 15 लाख से अधिक होगी। यानि कि एक विधानसभा क्षेत्र में 6 हजार वोटर बढ़ जाएंगे। यदि 2020 के चुनावी आंकड़े पर गौर किया जाए तो तीन दर्जन ऐसी सीटें थीं जहां हार जीत का अंतर पांच से छह हजार वोटों के बीच था। यही कारण है कि प्रवासी वोटरों को रोकने के लिए सभी दलों ने अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
पलायन के आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो स्पष्ट होगा सबसे ज्यादा पलायन सवर्णों में है। पलायन करने वालों में सबसे अधिक ब्राह्मण 7.18 फीसदी है, दूसरे नंबर पर भूमिहार और तीसरे नंबर पर राजपूतों की संख्या है। हालांकि कोरोना काल के बाद कुछ लोगों ने रोजगार के लिए बाहर न जाकर अपने ही क्षेत्र में छोटा-मोटा रोजगार शुरू कर दिया है। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है।
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ग्राम प्रधान के जिम्मे होगी वोटरों को रोकने की जवाबदेही
सियासी दलों की कोशिश है कि प्रवासी वोटरों को रोकने के लिए ग्राम प्रधानों से सहायता ली जाय। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपने ग्रामीण प्रधानों की बात अधिक सुनते हैं। नेताओं के बीच फिलहाल ग्राम प्रधानों की पूछ बढ़ गई है। प्रवासी वोटरों को रोकने के लिए हर तरह के संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा पलायन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से होता है। यहां रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। इस बार के चुनाव में सियासी दलों ने रोजगार और पलायन को मुद्दा बनाया है। जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर लगातार प्रदेश में घूम घूमकर पलायन के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं। उनकी बातों का असर वोटरों पर देखा जा रहा है। इधर राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी यह घोषणा की है कि प्रदेश में जिन परिवारों में एक भी नौकरी नही है, उस परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी।