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झारखंड चुनाव में कोल वर्कर्स का है खासा प्रभाव, जाएंगे किसके पाले में

झारखंड के करीब 14 जिलों के दो दर्जन सीटों पर कोल वर्कर्स का खासा असर है. लेकिन इनकी कई समस्याएं भी हैं.

Coalmining workers

प्रतीकात्मक तस्वीर । क्रेडिटः Meta AI

झारखंड में 13 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी और जेएमएम ने चुनाव जीतने के लिए जान लगा रखी है। चुनाव प्रचार के दौरान आदिवासियों के मुद्दे से लेकर बांग्लादेशी घुसपैठियों तक का मुद्दा छाया रहा। इस दौरान करप्शन और अन्य मुद्दे भी उठाए गए। लेकिन कोयला वर्कर्स की कम बात की गई, जिनका कि झारखंड के 14 जिलों के लगभग दो दर्जन सीटों पर खासा प्रभाव है।


कोयलाकर्मियों की लाखों में है संख्या

कोयलाकर्मी सिर्फ कोयलांचल के धनबाद और झरिया तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि कांके, रामगढ़, बाघमारा, सिंदरी, निरसा, गोमियो, टुंडी, बेरमो, मांडू, गिरिडीह, बड़कागांव, लातेहार, सिमरिया, चंदनकियारी, बोरियो, सारठ, पाकुड़ और महागामा विधानसभा सीट में भी इनका खासा प्रभाव है।

 

दरअसल,झारखंड में कोयला खनन से संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र की कोल इंडिया तीन कंपनियां के साथ साथ कई बिजली कंपनियां भी काम करती हैं। इनमें  एनटीपीसी, पंजाब इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड, वेस्ट बंगाल पॉवर कॉरपोरेशन जैसी कंपनियां शामिल हैं। इन कंपनियों में करीब एक लाख कर्मचारी काम करते हैं। अगर परिवार सहित देखें तो इनकी संख्या 4 से 5 लाख तक पहुंच जाती है। इसके अलावा अनऑर्गेनाइज़्ड सेक्टर या कहें गैर-संगठित क्षेत्र में भी कोयला के खनन और व्यवसाय से काफी लोग जुड़े हैं। अगर इनको भी मिला दें तो कोयला कर्मियों की संख्या और ज्यादा हो जाती है।

 

क्या हैं समस्याएं

दरअसल इन जिलों में कोयला खनन के लिए जिस ज़मीन का अधिग्रहण किया जाता है, वह कोल बियरिंग ऐक्ट के तहत किया जाता है। इस ऐक्ट की वजह से जमीन अधिग्रहण में भारत सरकार का सीधा दखल होता है। कानूनी प्रावधान ऐसे हैं कि छोट-बड़े हर तरह के कामों के लिए जहां जमीन अधिग्रहण की जरूरत पड़ती है उसमें झारखंड सरकार और विधायक इत्यादि जन प्रतिनिधियों को कंपनी व केंद्र सरकार की अनुमति पर निर्भर रहना पड़ता है।

 

अनुमति की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि विकास कार्यों में बाधा पहुंचती है, जिसकी वजह से इन इलाकों में बिजली, पानी, सड़क, नाली जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है।

85 फीसदी मजदूर छोड़ना चाहते हैं कोयला खनन का काम

पिछले साल जारी लाइवलीहुड ऑपरचुनिटी फॉर जस्ट ट्रांज़ीशन इन झारखंड की रिपोर्ट में कहा गया था कि तमाम कोयला मजदूर तमाम क्षेत्रों में कोयला खनन बंद होने के बाद जीवन यापन के लिए अन्य रोजगार अपनाना चाहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर तीन में से एक कोयला श्रमिक कृषि को एक वैकल्पिक रोजगार के रूप में देख रहा है।

 

झारखंड में कोयला खनन उद्योग प्रत्यक्ष रूप से लगभग तीन लाख लोगों को रोजगार दे रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला खनन से जुड़े 35 फीसदी मजदूर ऐसे हैं जिनके पास वर्तमान रोजगार बंद होने की स्थिति में घर चलाने के लिए कोई सेविंग नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, 85 फीसदी मजदूरों में से अधिकांश ने रोजगार के वैकल्पिक अवसरों की ओर बढ़ने के लिए स्किलिंग या रीस्किलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। इनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

राजनीतिक पार्टियों ने क्या किया

कोयलाकर्मियों को अपने पाले में करने के लिए राजनीतिक दलों ने इनके बीच का उम्मीदवार उतारने की कोशिश की है। करीब दर्जन भर उम्मीदवार ऐसे हैं जो या तो कोयला मजदूर रहे हैं और या फिर ट्रेड यूनियन से जुड़े रहे हैं।

कोयलांचल में लड़ रहे ये हाई प्रोफाइल नेता

कोयलांचल की कई सीटों पर दिग्गज चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तरी छोटा नागपुर में 2019 के चुनाव में बीजेपी इस इलाके में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उस चुनाव में बीजेपी ने 11, कांग्रेस ने पांच, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चार, आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन ने एक, सीपीआई (एमएलए) ने एक, झारखंड विकास मोर्चा ने एक, राष्ट्रीय जनता दल ने एक और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी। इस क्षेत्र में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी गिरडीह जिले की धनवार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, वह आदिवासी समुदाय से आते हैं लेकिन जिस सीट से वह चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा गांडेय से सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी लड़ रही हैं. यह सीट साल 2019 से ही जेएमम के पास है. वहीं झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के प्रमुख जयराम महतो बरमो और डुमरी सीट से चुनाव मैदान में हैं.

 

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