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महागठबंधन में नहीं मिली जगह, अलग-थलग पड़े ओवैसी; कौन सी चाल चलेंगे?

बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को महागठबंधन में जगह नहीं मिली है। इसके बाद से ही वह आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को आड़े हाथों ले रखा है। इस बीच कांग्रेस और आरजेडी की निगाह ओवैसी की अगली सियासी चाल पर टिकी है।

Asaduddin Owaisi.

असदुद्दीन ओवैसी। (Photo Credit: PTI)

संजय सिंह, पटना। बिहार के अन्य क्षेत्रों से सीमांचल का सियासी मिजाज थोड़ा अलग है। यहां के लोग लिट्टी चोखा से ज्यादा बिरयानी पसंद करते हैं। महागठबंधन में जगह नहीं मिलने के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल और मिथिलांचल में राजनीतिक कवायद तेज कर दी है। अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि एआईएमआईएम कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन ओवैसी की सियासी यात्रा के दौरान कोशिश जनाधार बढ़ाने की होगी। 

सीमांचल पर विशेष फोकस 

ओवैसी की मजबूत पकड़ सीमांचल में रही है। 2020 के चुनाव में पार्टी ने 22 जिलों में 32 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सफलता सीमांचल में ही मिली थी। यहां से उनके पांच विधायक चुनाव जीते थे। हालांकि कुछ दिनों बाद इनके चार विधायक पाला बदलकर राजद में शामिल हो गए। एक मात्र विधायक अख्तरुल ईमान पार्टी के साथ जुड़े रहे। आज वे इस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। अकेले दम पर ईमान ने सीमांचल में पार्टी का जनाधार बढ़ाया है। 

 

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ओवैसी यदि चुनावी रण में अपने रणबांकुरों को उतारेंगे तो इससे ज्यादा परेशानी राजद और कांग्रेस को होगी। मुस्लिम वोट बैंक के बंटने का खतरा बढ़ेगा। पिछले चुनाव में भी मुस्लिम वोट में सेंधमारी कर ओवैसी के पांच विधायक जीते थे। यही कारण है कि राजद ने ओवैसी की पार्टी को महागठबंधन में जगह नहीं दी। 

राजद से ज्यादा नाराजगी

महागठबंधन में जगह नहीं मिलने के कारण ओवैसी राजद से ज्यादा नाराज हैं। उनका मानना है कि राजद के कारण उन्हें महागठबंधन में जगह नहीं मिली। राजद ने उनके चार विधायकों को अपने दल में शामिल भी कर लिया था। इससे सीमांचल में उनकी राजनीति पृष्ठभूमि कमजोर हुई। अपनी सभाओं में ओवैसी ऐसे विधायकों को सबक सिखाने का ऐलान कर चुके हैं। 

 

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल इमान ने राजद नेताओं से मिलने की कोशिश की पर राजद नेताओं ने उन्हें मिलने का मौका नहीं दिया। राजद का मानना है कि यदि ओवैसी महागठबंधन में आते तो पार्टी का एमवाई समीकरण बिगड़ सकता था। यह समीकरण बिगड़े नहीं, इसके कारण राजद ने ओवैसी से दूरी बनाए रखी। कांग्रेस भी नहीं चाहती है कि मुस्लिम वोट बैंक में कोई सेंधमारी हो। यही कारण है कि कांग्रेस भी ओवैसी के दल से अपनी दूरी बनाए रखी। 

सीमांचल की 30 सीटों पर निगाह

सीमांचल के चार जिलों में विधानसभा की 30 सीटें हैं। भौगोलिक और जनसंख्या की लिहाज से सीमांचल की सियासत अनोखी है। यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल और नेपाल की सीमा से सटा है। एसआईआर के कारण इस इलाके के वोटर लिस्ट में बदलाव भी आया है। इस इलाके में मुस्लिम आबादी अधिक है। पिछले चुनाव में सीमांचल से 11 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। किशनगंज की चार सीटों पर हमेशा से मुस्लिम विधायक चुनाव जीतते रहे हैं। 

 

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इस बार भी ओवैसी का ज्यादा फोकस सीमांचल में ही है। किशनगंज में अल्पसंख्यकों की आबादी 60 प्रतिशत है। पूर्णियां, अररिया और कटिहार जिले में भी इनकी आबादी अच्छी खासी है। इन क्षेत्रों से भी मुस्लिम विधायक चुनाव जीतते रहे हैं। सीमांचल के बाद ओवैसी की नजर मिथिलांचल के वैसे इलाकों पर है, जहां मुस्लिम की आबादी ठीक ठाक है। ओवैसी के विरोधियों की नजर उन पर टिकी है कि वे कितने उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारते हैं। 

 

ओवैसी पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगता रहा है। वह महागठबंधन में शामिल होकर अपने ऊपर लगे दाग को मिटाने की कोशिश में थे, लेकिन राजद ने महागठबंधन में ओवैसी को इंट्री नहीं दी। अब वे अपने दम पर सीमांचल और मिथिलांचल को साधने में जुटे हैं।

 

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