डुमरांव विधानसभा: जनसुराज दिखा पाएगी कमाल या BJP-RJD में ही होगी फाइट?
डुमरांव सीट पर ददन सिंह यादव का काफी दबदबा रहा है। पिछली बार तो महागठबंधन के कैंडीडेट की जीत हुई थी लेकिन इस बार जनसुराज के आने के बाद से स्थिति बदल सकती है।

बिहार के बक्सर जिले का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र डुमरांव, आज एक विधानसभा क्षेत्र के रूप में अपनी नई पहचान गढ़ रहा है। कभी डुमरांव राज की राजधानी रहा यह कस्बा 18वीं सदी में राजा होरिल सिंह द्वारा स्थापित किया गया था, जिन्होंने इसे ‘होरिलनगर’ नाम दिया था। ब्रिटिश काल में डुमरांव जमींदारी करीब 2,330 वर्ग किलोमीटर में फैली थी और गंगा किनारे बसे 70 से अधिक गांवों पर इसका अधिकार था। लेकिन समय के साथ यह शक्तिशाली राजधानी अपनी चमक खोकर एक उपखंड स्तरीय कस्बे तक सीमित रह गई। इतिहासकारों के अनुसार, राजा होरिल सिंह की अवसरवादी नीतियां—जैसे कि अपने ही कबीले के विद्रोहों को दबाने में मुगलों की सहायता करना—डुमरांव के पतन का कारण बनीं।
गंगा के किनारे बसे डुमरांव की भूमि काफी उपजाऊ है और। कभी यह क्षेत्र चीनी उत्पादन और निर्यात के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन अब चीनी मिलों के बंद होने के साथ यह शहर बिहार के औद्योगिक नक्शे से लगभग मिट चुका है। फिर भी, शिक्षा के क्षेत्र में डुमरांव अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करता है — 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की साक्षरता दर 71.6% है, जो बिहार की औसत दर से अधिक है, हालांकि लैंगिक असमानता अब भी गहरी है।
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राजनीतिक समीकरण
डुमरांव विधानसभा की स्थापना 1951 में हुई थी। यह बक्सर लोकसभा सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। यह सीट बिहार की राजनीति में हमेशा दिलचस्प रही है, क्योंकि यहां मतदाता पार्टी से अधिक उम्मीदवार के व्यक्तित्व को तरजीह देते हैं। अब तक 17 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें कांग्रेस ने सात बार, जनता दल, जेडीयू और निर्दलीय प्रत्याशियों ने दो-दो बार, जबकि सीपीआई, समाजवादी पार्टी, अखिल जन विकास दल और सीपीआई(एमएल)(एल) ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।
यहां के चर्चित चेहरे रहे हैं बसंत सिंह और उनके उत्तराधिकारी ददन सिंह यादव। ददन यादव चार बार अलग-अलग पार्टियों से विधायक बने — एक बार निर्दलीय, समाजवादी पार्टी, अखिल जन विकास दल और जेडीयू से। वे आज भी स्थानीय राजनीति में प्रभावशाली हैं। हालांकि, इस बार अभी तक किसी पार्टी से उनके लड़ने की कोई खबर नहीं है। ददन यावद ने 2024 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय ताल ठोंका था लेकिन उन्हें लगभग 15,000 वोटों से ही संपर्क करना पड़ा था। यहां से मौजूदा विधायक सीपीआई(एमएल)(एल) के अजीत कुशवाहा हैं, जिन्होंने 2020 में जेडीयू की अंजुम आरा को 24,415 मतों से हराया था।
इसी सीट पर जनसुराज पार्टी ने शिवांग विजय सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि, व्यक्तिगत तौर पर उनकी ज्यादा कुछ पैठ यहां पर नहीं दिखती है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय लड़ा था लेकिन उन्हें कुल 9,390 वोट ही मिले थे। अब इस बार देखना होगा कि जनसुराज से टिकट उनको कहां तक पहुंचाता है?
2020 में क्या हुआ था?
2020 में इस सीट से सीपीआई(एमएल)(एल) के अजीत कुमार विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में 71,320 वोट मिले थे जो कि कुल वोटों का 40.8 % था। दूसरे स्थान पर जेडीयू की अंजुम आरा रहीं जिन्हें 46,905 वोट मिले थे। इस चुनाव में शिवांग विजय सिंह चौथे स्थान पर रहे थे, वहीं पांचवे स्थान पर ददन यादव रहे थे। ददन यादव को 9,166 वोट मिले थे।
विधायक का परिचय
2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी-महागठबंधन के समर्थन से चुनाव लड़ने वाले अजीत सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार ददन यादव को हराकर जीत दर्ज की थी। अजीत सिंह अपने क्षेत्र में जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता माने जाते हैं। वे लंबे समय से किसान, मजदूर और गरीब वर्ग के मुद्दों को लेकर सक्रिय रहे हैं।
उन्होंने वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी, आरा से साल 2018 में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। साथ ही उन्होंने वर्ष 2012 में महाराजा लॉ कॉलेज, आरा से एलएलबी किया है। उनकी कुल घोषित संपत्ति लगभग ₹37,48,000 है, यानी करीब 37.5 लाख रुपये। उनकी कोई बड़ी देनदारी (liabilities) नहीं है। उनके ऊपर हत्या के प्रयास (IPC धारा 307), धोखाधड़ी और संपत्ति डराने-धमकाने की धारा (IPC-420), कीमती दस्तावेजों से धोखाधड़ी, धोखाधड़ी के उद्देश्य से फर्जीवाड़ा – विभिन्न IPC धारा जैसे कि 467, 468, सांप्रदायिक दंगा-फसाद, हिंसा, अन्य धाराएं जैसे मारपीट, गैर-कानूनी सभा, सार्वजनिक अधिकारी के दायित्व में बाधा आदि भी शामिल हैं।
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विधानसभा का इतिहास
इस सीट पर शुरुआत में कांग्रेस का कब्जा रहा है। एक लंबे समय तक इस सीट पर ददन सिंह यादव का कब्जा रहा है। इस सीट पर 6 नवंबर 2025 को चुनाव होना है।
1952: हरिहर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1957: गंगा प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1962: हरिहर प्रसाद सिंह (निर्दलीय)
1967: हरिहर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1972: रामाश्रय सिंह (सीपीआई)
1977: राजा राम आर्य (कांग्रेस)
1980: वी. एन. भारती (कांग्रेस)
1985: हरिहर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1990: बसंत सिंह (जनता दल)
1995: ददन सिंह यादव (निर्दलीय)
2000: ददन सिंह यादव (सपा)
2005: ददन सिंह यादव (अखिल जन विकास दल)
2010: दाऊद अली (जेडीयू)
2015: ददन सिंह यादव (जेडीयू)
2020: अजीत कुशवाहा (सीपीआई-एमएल)
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