33 साल पहले संविधान का वह संशोधन, जिसने दिल्ली को दिलाई विधानसभा
दिल्ली एक बार फिर विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है। दिल्ली में 1993 में विधानसभा का गठन हुआ था। इसके लिए संविधान में संशोधन किया गया था।

दिल्ली विधानसभा। (Photo Credit: Delhi Assembly)
बस कुछ दिन और... फिर दिल्ली में नई सरकार का गठन हो जाएगा। दिल्ली का ये 9वां विधानसभा चुनाव है। पिछले दो चुनाव की तरह इस बार भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ही लड़ाई मानी जा रही है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए 5 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। इसके नतीजे 8 फरवरी को घोषित होंगे।
दिल्ली वैसे तो केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन यहां भी बाकी राज्यों की तरह अपनी विधानसभा है। दिल्ली ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में भी विधानसभा बनाई गई है।
आजादी के कुछ सालों बाद ही विधानसभा भंग कर दी गई थी। इसकी जगह मेट्रोपॉलिटन काउंसिल बनाई गई थी। आखिरकार 1991 में संविधान में एक संशोधन किया गया, जिसके बाद दिल्ली में फिर से विधानसभा अस्तित्व में आई।
दिल्ली है क्या?
1911 में अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट की। लगभग 20 साल बाद आधिकारिक रूप से दिल्ली अंग्रेजों की राजधानी बनी। आजादी के बाद राज्यों को तीन हिस्सों- पार्ट A, पार्ट B और पार्ट C में बांटा गया। दिल्ली को पार्ट C में रखा गया था।
1952 में दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव हुए। उस वक्त दिल्ली पूर्ण राज्य हुआ करती थी। तब 48 विधानसभा सीटें हुआ करती थीं। चौधरी ब्रह्मप्रकाश पहले मुख्यमंत्री बने, जो 1952 से 1955 तक पद पर रहे। उनके बाद गुरमुख निहाल सिंह सीएम बने।
साल 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून बनाकर राज्यों का नए सिरे से पुनर्गठन किया गया। तब दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। यहां विधानसभा भंग कर दी गई। इसकी जगह दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल बनाई गई। इसमें कुल 61 सदस्य होते थे। 56 सदस्यों को जनता चुनती थी, जबकि 5 को मनोनीत किया जाता था। उस वक्त इसके प्रमुख को चीफ एग्जीक्यूटिव काउंसिलर कहा जाता था। इस काउंसिल के पास कोई शक्ति नहीं होती थी। उसका काम सिर्फ एडमिनिस्ट्रेटर को सलाह देना था।
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संविधान का वो संशोधन
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ रही थी। विधानसभा की भी मांग हो रही थी। तब 1991 में संविधान में 69वां संशोधन किया गया। इस संशोधन ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा तो नहीं दिया, लेकिन कुछ खास अधिकार जरूर दे दिए। इस संशोधन के जरिए दिल्ली को 'नेशनल कैपिटल टेरिटरी' का दर्जा मिला।
इस संशोधन के जरिए संविधान में अनुच्छेद 239AA जोड़ा गया। इससे दिल्ली में विधानसभा का प्रावधान किया गया। तय हुआ कि दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें होंगी। एक कैबिनेट होगी। एडमिनिस्ट्रेटर को 'उपराज्यपाल' का नाम दिया गया। उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के काम का बंटवारा भी किया गया।
अनुच्छेद 239AA में एक प्रावधान ये भी किया गया कि अगर किसी बात पर एलजी और कैबिनेट के बीच सहमति नहीं बनती है या विवाद होता है तो ऐसी स्थिति में आखिरी फैसला राष्ट्रपति का होगा।
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फिर बनी विधानसभा
संविधान में संशोधन के बाद 1993 में दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव हुए। पहला चुनाव बीजेपी ने जीता। बीजेपी को 70 में से 49 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को 14 सीटें मिलीं। 7 सीटें बाकी पार्टियों को मिली।
चुनाव जीतकर मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने। फरवरी 1996 में खुराना ने इस्तीफा दे दिया। उनके बाद साहिब सिंह वर्मा सीएम बने। लगभग ढाई साल तक पद पर रहने के बाद साहिब सिंह वर्मा ने भी इस्तीफा दे दिया। उनके बाद बीजेपी नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनीं। सुषमा स्वराज सिर्फ 52 दिन तक ही मुख्यमंत्री रहीं।
1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जोरदार वापसी की। बीजेपी सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं। कांग्रेस सरकार में शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं। शीला दीक्षित 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं।
फिर 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी की लहर में कांग्रेस डूब गई। कांग्रेस 8 सीटें ही जीत सकी। बाद में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 2015 में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतीं। 2020 में पार्टी को 62 सीटों पर जीत मिली।
NCT और NCR में अंतर क्या?
दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए इसे 1992 में 'नेशनल कैपिटल टेरिटरी' यानी NCT का दर्जा दिया गया। वहीं, NCR यानी नेशनल कैपिटल रीजन एक तरह की योजना है, जिसे 1985 में लागू किया गया था। इसके तहत दिल्ली और आसपास के जिलों को प्लानिंग के साथ विकसित करना है। NCR में हरियाणा के 14, उत्तर प्रदेश के 8, राजस्थान के 2 और पूरी दिल्ली शामिल है।
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