जब शिवसेना थी तो राज ठाकरे ने क्यों बनाया मनसे, क्या है बगावत की कहानी
राज ठाकरे पर बाला साहेब ठाकरे की छाप थी। उनके राजनीतिक तेवर वही थे, उनका बड़बोलापन भी वैसा ही था। सोच-समझकर न बोलने की आदत भी उन्होंने अपने चाचा की ही पाई थी।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के संस्थापक राज ठाकरे। (तस्वीर-www.facebook.com/RajThackeray)
स्वराज श्रीकांत ठाकरे। राजठाकरे का यही पूरा नाम था। उन्हें अपने नाम को छोटा करके राज ठाकरे कर लिया। जब शिवसेना, अपनी राजनीतिक यात्रा के सबसे सफल दौर से गुजर रही थी तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इस पार्टी की कमान राज ठाकरे नहीं उद्धव ठाकरे संभालेंगे। राज ठाकरे अपने चाचा बाला साहेब ठाकरे की तरह सफल वक्ता थे, तेज-तर्रार तेवर थे, कभी न झुकने वाले इरादे थे और बिना लाग-लपेटकर बोलने वाली आदत भी थी। वे भी अपने चाचा की तरह कार्टूनिस्ट थे।
राज ठाकरे पर अपने चाचा की छाप थी। उनके पास, अपने चाचा की पूरी राजनीतिक विरासत संभालने की क्षमता थी लेकिन भतीजा कितना भी प्यारा क्यों न हो, विरासत, बेटे को ही मिलती है। कुछ ऐसा ही राज ठाकरे के साथ हुआ था। 14 जून 1968 को जन्मे राज ठाकरे को लोग, बाला साहेब ठाकरे का राजनीतिक वारिस समझते थे। उनके पिता का नाम श्रीकांत ठाकरे था, वे बाला साहेब ठाकरे के छोटे भाई थी। उनकी मां का नाम कुंदा ठाकरे था।
शिवसेना के भविष्य थे राज ठाकरे
राज ठाकरे, अपने चाचा की तरह कलाकार थे। तबला, गिटार, वायलीन और कार्टून यही राज ठाकरे को आता था। वे 1983 तक अपने चाचा की पत्रिका मार्मिक में कार्टून बनाने लगे। राज ठाकरे के चाचा महाराष्ट्र की सत्ता की धुरी बन चुके थे। उन्हें शिवसेना के छात्र संगठन भारतीय विद्यार्थी सेना की जिम्मेदारी मिली। साल 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान राज ठाकरे का जलवा जम चुका था। लोग उन्हें नेता के तौर पर स्वीकार कर चुके थे और उनमें शिवसेना का राजनीतिक भविष्य देख रहे थे।
महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ी थी लोकप्रियता
एक तरफ बाला साहेब ठाकरे के बड़बोले बयानों की चर्चा पूरे देश में होती थी, राम मंदिर आंदोलन में उन्होंने खुलकर कह दिया था कि बाबरी विध्वंस में शिवसैनिक शामिल रहे हैं, दूसरी तरफ राज ठाकरे भी महाराष्ट्र में तेजी से लोकप्रिय होने लगे थे। शिवसैनिक उन्हें भी अपना नेता स्वीकार कर चुके थे। छात्र उनसे जुड़ाव महसूस कर रहे थे।
बाल ठाकरे जैसे ही थे राज के तेवर
साल 1995 में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होने वाले थे तो भी राज ठाकरे के पास सियासी ताकतें थीं। वे टिकट बंटवारे भी में भी मजबूत दखल देते थे। साल 1999 के चुनाव में भी उन्होंने जमकर मेहनत की थी। ऐसा लगने लगा था कि अब बाला साहेब ठाकरे अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी का ऐलान कर देंगे लेकिन वे ऐसा करने से बचते रहे। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे को देखकर असुरक्षित होने लगे थे।
उद्धव ठाकरे ने ऐसे कर दिया हाशिए पर
साल 2004 के विधानसभा चुनावों तक राज ठाकरे को उद्धव ठाकरे किनारे लगा चुके थे। उनकी हर अहम भूमिका छीन ली थी। न उन्हें प्रचार अभियान में शामिल किया, न संगठन में। न ही उन्हें टिकट बंटवारे में कोई अहम भूमिका दी। हर मोर्चे से वे राज ठाकरे को काटते ले गए। महाराष्ट्र की सियासत में उद्धव से ज्यादा जनसमर्थन राज ठाकरे के पास था। उन्हें चाहने वाले लोगों की कोई कमी नहीं थी। उद्धव ठाकरे में बाला साहेब ठाकरे के कोई गुण नहीं थे। उनके भाषण ओजस्वी नहीं होते थे, वे जनसभा में तालियां नहीं बजाव पाते थे। उन्हें उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी ही नहीं समझा जा रहा था। राज ठाकरे को यह पसंद नहीं आ रहा था। बाल ठाकरे भी चाहते थे राज ठाकरे अब पीछे जाएं और कमान उद्धव ठाकरे संभालें।
चाचा ने भतीजे को किया दरकिनार
बाल ठाकरे ने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करते हुए उद्धव ठाकरे के नाम पर मुहर लगा दी। भतीजा दरकिनार हो गया था। जो भतीजा एक दशक से ज्यादा वक्त तक चाचा का प्रतिमूर्ति था, उसे ही किनारे लगा दिया गया। शिवसैनिकों के लिए भी यह फैसला बेहद हैरान करने वाला रहा। राज ठाकरे बेहद नाराज हुए। वे खुद ही शिवसेना से दूरी बनाने लगे। उन्हें लग गया था कि अब पार्टी उनके हाथ से जा चुकी है और उनके आदर्श, बाल ठाकरे, उन्हें दरकिनार कर चुके हैं।
ऐसे पड़ी मनसे की नींव
राज ठाकरे, शिवसेना से बहुत बेआबरू होकर निकले। उन्हें ये तक कहना पड़ा कि शिवसेना अपनी चमक खो दी है, अब शिवसेना को क्लर्क चला रहे हैं। बुजुर्ग बाला साहेब ठाकरे खुद को सक्रिय रखे हुए थे लेकिन 80 की उम्र में हर कोई शरद पवार की तरह नहीं हो सकता। राज ठाकरे ने 9 मार्च 2006 को अपनी पार्टी बना ली। उन्हें भरोसा था कि वे शिवसेना का फिर से अस्तित्व में लाएंगे। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखा, 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना।' अब इसे लोग मनसे के नाम से जानते हैं। उन्होंने भी अपनी पार्टी की पहली रैली शिवाजा पीर्क में की। उन्होंने मराठी अस्मिता की शपथ लेते हुए पार्टी बनाई और कहा कि वे बाला साहेब ठाकरे के ही आदर्शों पर चलेंगे।
वन टाइम वंडर बनकर रह गए राज ठाकरे
राज ठाकरे लोकप्रिय थे, इसलिए उन्हें पांव जमाने में मुश्किलें नहीं आईं। उद्धव ठाकरे लाइम लाइट से दूर थे और मीडिया को राज ठाकरे पसंद थे। राज ठाकरे ने विधानसभा चुनावों के लिए मनसे की सदस्यता अभियान को बढ़ावा दे दिया। साल 2009 के विधानसभा चुनाव में वे उतरे तो उनकी पार्टी 13 सीटों पर जीत गई। उनकी पार्टी के पास ठीक-ठाक सीटें आ गई थीं लेकिन उनसे उम्मीद बड़ी थी। 5 साल में ही उनका राजनीतिक ग्राफ गिरने लगा।
कैसे हाशिए पर चलते गए राज ठाकरे?
राज ठाकरे यह तय नहीं कर पा रहे थे कि राजनीति किस पर करनी है। वे उत्तर भारतीयों से नफरत करते थे। फरवरी 2008 में राज ठाकरे की पार्टी मनसे से उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक अभियान चलाया। राज ठाकरे केक पर भइया लिखकर काटने लगे, जिसका मतलब था यूपी-बिहार के लोग। राष्ट्रीय मीडिया ने उनकी आलोचना की, वे मीडिया की नजरों में विलेन बनते गए। वे मराठी साइनबोर्ड की वकालत भी करने लगे। उन्होंने कहा कि दूसरी भाषाओं में लगे साइन बोर्ड काले कर दिए जाएंगे। उन्होंने इस पर भी बवाल कराया। जया बच्चन तक से उन्होंने पंगा ले लिया।
उन्होंने कहा था कि हम यूपी से हैं, इसलिए हिंदी में ही बात करेंगे, महाराष्ट्र के लोग माफ करें। इस बयान से राज ठाकरे इतने भड़के कि उन्होंने कह दिया जया बच्चन माफी मांगे नहीं तो उनकी फिल्म रिलीज नहीं होने देंगे। जया बच्चन को माफी मांगनी पड़ी लेकिन महाराष्ट्र पुलिस ने राज ठाकरे के बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया। वेकअप सिड नाम की एक फिल्म की स्क्रीनिंग रोकने के लिए भी राज ठाकरे ने हंगामा किया था। राज ठाकरे हर बार कुछ ऐसा करते गए, जिसकी वजह से उनकी जमकर आलोचना हुई। वे राजनीतिक रूप से भी फ्लॉप ही रहे। न तो वे महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जलवा दिखा पाए, न ही लोकसभा चुनावों में।
राजनीतिक भविष्य पर हैं सवाल
साल 2019 के विधानसभा चुनावों में मनसे ने 101 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन जीत सिर्फ एक सीट पर मिली। ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे, साल-दर-साल कमाल करते चले गए। उन्होंने शिवसेना पर पकड़ बनाए रखी। जब एकनाथ शिंदे ने उनकी पार्टी उनसे छीन ली, तब लगा कि एक वक्त उनका राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो जाएगा। उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर साबित किया कि शिवसेना सिर्फ उन्हीं की है।
लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) 9 सीटें जीतने में कामयाब हुई। राज ठाकरे चुनाव ही नहीं लड़े। धीरे-धीरे वक्त ने खुद साबित कर दिया कि राज ठाकरे जब तक विभाजनकारी राजनीति करेंगे, वे बाल ठाकरे की तरह सफलता नहीं दोहरा सकेंगे। अब महाराष्ट्र के लोगों की प्राथमिकता अलग है, न ही अब सरकारें, किसी भी क्षेत्र विशेष के लोगों के खिलाफ अभियान चलाने को मंजूरी देंगी। उन्होंने अपनी छवि ऐसी बना ली है, जिसे अब महाराष्ट्र के लोग भी पसंद नहीं कर पा रहे हैं।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap