बिहार के जमुई जिले में पड़ने वाली झाझा विधानसभा हॉट सीट में से एक है। यह बिहार के मुख्यमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह की सीट रही है। चंद्रशेखर सिंह दो बार इस सीट से विधायक चुने गए थे। 1962 के चुनाव में वह हार गए थे। यह सीट इसलिए भी दिलचस्प है, क्योंकि यहां अब तक सिर्फ 5 नेता ही विधायक चुने गए हैं। इन 6 के अलावा कोई और नेता कभी विधायक नहीं बन पाया। इनमें चंद्रशेखर सिंह, श्रीकृष्णा सिंह, शिव नंदन झा, शिव नंदन यादव, रविंद्र यादव और दामोदर रावत हैं।
 
झाझा विधानसभा में अब तक 18 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन यहां की सियासत कुछ चेहरों के इर्द-गिर्द ही रही है। तीन दशकों से यहां की राजनीति सिर्फ दो चेहरों पर आकर टिक गई है। एक रविंद्र यादव और दूसरे दामोदर रावत। तीन दशकों से मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच होता रहा है।
 
झाझा में कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था। मगर 1995 के बाद से यहां कांग्रेस कभी नहीं जीती। 2000 से यह सीट सिर्फ एनडीए की रही है। कभी बीजेपी तो कभी जेडीयू यहां जीतती है।
मौजूदा समीकरण
झाझा की लगभग 15 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति (SC) और 5 फीसदी अनुसूचित जनजाति (ST) है। मुस्लिमों की आबादी 10 फीसदी से ज्यादा मानी जाती है। झाझा में एनडीए का ही दबदबा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस विधानसभा में एनडीए ही हावी रहा था। इसलिए यहां इस बार भी एनडीए के ही जीतने की संभावना है। जेडीयू ने इस बार फिर दामोदर रावत को ही यहां से उम्मीदवार बनाया है।
 
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2020 में क्या हुआ था?
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से जेडीयू के दामोदर रावत ने जीत हासिल की थी। पिछले चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार राघवेंद्र यादव ने कड़ी टक्कर दी थी लेकिन दामोदर रावत से 1,679 वोटों से हार गए थे। 2020 में दामोदर रावत को 76,972 और राघवेंद्र यादव को 75,293 वोट मिले थे। बीएसपी के बिनोद यादव तीसरे नंबर पर थे, जिन्हें 13,479 वोट मिले थे।
विधायक का परिचय
झाझा सीट से 2020 में 5वीं बार दामोदर रावत विधायक चुने गए थे। अब वह 7वीं बार मैदान में हैं। दामोदर रावत पहली बार 2000 के विधानसभा चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। उसके बाद से 2010 तक लगातार 4 बार उन्होंने चुनाव जीता।
 
2015 का चुनाव बीजेपी और जेडीयू ने अलग-अलग लड़ा था। इस कारण दामोदर रावत यहां से हार गए थे। उन्हें बीजेपी के रविंद्र यादव ने 22 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था। 2020 में दामोदर रावत ने वापसी करते हुए 5वीं बार जीत हासिल की थी। बीजेपी-जेडीयू में गठबंधन होने के कारण रविंद्र यादव एलजेपी में चले गए थे।
 
2020 के चुनाव में दाखिल हलफनामे में उन्होंने अपने पास 2.89 करोड़ रुपये की संपत्ति होने की जानकारी दी थी। उनके खिलाफ एक क्रिमिनल केस दर्ज है।
 
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विधानसभा का इतिहास
इस सीट पर अब तक 18 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 1986 का उपचुनाव भी शामिल है। इनमें 7 बार कांग्रेस जीत चुकी है। वहीं, जेडीयू 4 बार और बीजेपी 1 बार जीत चुकी है।
- 1952: चंद्रशेखर सिंह (कांग्रेस)
- 1957: भागवत मुर्मू (कांग्रेस) और चंद्रशेखर सिंह (कांग्रेस)
- 1962: श्री कृष्णा सिंह (सोशलिस्ट पार्टी)
- 1967: शिवनंदन झा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
- 1969: चंद्रशेखर सिंह (कांग्रेस)
- 1972: शिव नंदन झा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
- 1977: शिव नंदन झा (जनता पार्टी)
- 1980: शिव नंदन यादव (कांग्रेस)
- 1985: शिव नंदन यादव (कांग्रेस)
- 1986: रविंद्र यादव (कांग्रेस)
- 1990: शिव नंदन झा (जनता दल)
- 1995: रविंद्र यादव (कांग्रेस)
- 2000: दामोदर रावत (समता पार्टी)
- 2005: दामोदर रावत (जेडीयू)
- 2005: दामोदर रावत (जेडीयू)
- 2010: दामोदर रावत (जेडीयू)
- 2015: रविंद्र यादव (बीजेपी)
- 2020: दामोदर रावत (जेडीयू)