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झारखंड विधानसभा चुनाव 2005: पहला चुनाव और जमकर बनी खिचड़ी

लंबे संघर्ष के बाद बने झारखंड राज्य में जब पहली बार विधानसभा के चुनाव कराए गए तो नतीजे ऐसे आए कि अगले पांच साल तक जमकर उठापटक चलती रही और कोई सरकार स्थायी नहीं हो पाई।

jharkhand assembly elections 2005

झारखंड विधानसभा चुनाव 2005

दशकों के संघर्ष के बाद बिहार के दो हिस्से करके जब झारखंड बना तो साल 2000 में विधानसभा के चुनाव नहीं हुए। पहले से ही नियम तय कर दिए गए थे साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव के हिसाब से ही झारखंड की विधानसभा का गठन होगा। यानी जिन क्षेत्रों को मिलाकर झारखंड बन रहा है, उसमें आने वाली विधानसभा सीटों में जिसे बहुमत मिल रहा है वही सरकार बना सकता है। इस तरह भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई और बाबू लाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने। इससे पहले वह केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में पर्यावरण और वन मंत्रालय में राज्यमंत्री थे। उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया और उपचुनाव लड़कर विधानसभा के सदस्य बन गए।

 

हालांकि, ढाई साल में ही उनके गठबंधन में बगावत हो गई। नतीजा यह हो गया कि बीजेपी को ही अपनी सीएम बदलना पड़ा। मार्च 2003 में अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया। इस तरह पहले ही कार्यकाल में सरकार तो बीजेपी की ही रही लेकिन उसे दो मुख्यमंत्री बदलने पड़े। इस तरह झारखंड में साल 2005 में जब पहली बार विधानसभा के चुनाव कराए गए तब राज्य के सीएम अर्जुन मुंडा ही थे।

 

इस चुनाव में कांग्रेस ने कुल 41, बीजेपी ने 63, जेएमएम ने 49, आरजेडी ने 51 और जेडीयू ने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनके अलावा, सीपीआई, सीपीएम और आजसू जैसी पार्टियां भी मैदान में थीं। इस चुनाव में बीजेपी ने जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी मिलकर चुनाव लड़ने वाले थे लेकिन आखिर में बात बिगड़ गई और आरजेडी इस गठबंधन से बाहर हो गई। हालांकि, चुनाव के नतीजे आए तो फिर से दो गुट बन गए थे और आरजेडी फिर से कांग्रेस और जेएमएम के साथ आ गई थी।


चुनाव के बाद कैसे आगे बढ़ा झारखंड?

 

अलग झारखंड राज्य में पहली बार विधानसभा के चुनाव साल 2005 में हुए। झारखंड के लोगों ने किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं दिया। कुल 81 सीटों के लिए चुनाव हुए थे जिसमें से बीजेपी को सबसे ज्यादा 30, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को 17, कांग्रेस को 9, आरजेडी को 7, जेडीयू को 6, निर्दलीयों को 3 और अन्य पार्टियों को 9 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। किसी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन शिबू सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और शपथ ले ली। हालांकि, वह बहुमत नहीं जुटा पाए और 10 दिन में ही उनकी सरकार गिर गई।

 

दरअसल, एक तरफ बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन था जिसे 30+6=36 सीटें मिली थीं, यानी बहुमत से 5 कम। जेएमएम के 17, कांग्रेस के 9 और आरजेडी के 7 मिलाकर 33 विधायक हो रहे थे। जेएमएम गठबंधन ने फॉरवर्ड ब्लॉक के दो और सीपीआई-एमएल के एक विधायक को साथ लाने का दावा करके यह कहा था कि उसके पास 36 विधायक हो गए हैं। यानी यह गठबंधन भी 36 तक पहुंच गया था। अब बाकी बचे 9 विधायकों को लेकर ही खींचतान होनी थी और वह बखूबी हुई भी।

बीजेपी के अर्जुन मुंडा ने बनाई सरकार

 

ऐसे में अर्जुन मुंडा ने एक बार फिर से झारखंड में अपनी सरकार बनाई। एक बार फिर वह इस सरकार को लंबा नहीं खींच पाए और बगावत हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि लगभग डेढ़ साल में ही अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा। अब जो सरकार बनी उसके मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा जो कि किसी पार्टी के विधायक नहीं थे। यानी पहली बार ऐसा हो रहा था कि एक निर्दलीय विधायक राज्य का मुख्यमंत्री बन गया।

 

मधु कोड़ा की सरकार भी नहीं चली। 2008 का अगस्त महीना आते-आते मधु कोड़ा की भी सरकार गिर गई और शिबू सोरेन एक बार फिर से सीएम बन गए। हालांकि, वह विधायक नहीं थे। उनकी सरकार 145 दिन चली और फिर से सरकार गिर गई। इस बार बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया था। इस तरह पांच साल का कार्यकाल पूरा होने में अभी भी लगभग एक साल बाकी था, चार मुख्यमंत्री बन चुके थे ऐसे में फिर से चुनाव नहीं हुए और लगभग एक साल तक झारखंड में राष्ट्रपति शासन रहा।

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