कांटी विधानसभा क्षेत्र मुजफ्फरपुर जिले में स्थित है लेकिन यह वैशाली लोकसभा क्षेत्र में आती है। यह सामान्य वर्ग की सीट है। यह मुजफ्फरपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐतिहासिक रूप से उपनिवेश काल में यह शोरा (साल्टपीटर) औऱ नील के लिए प्रसिद्ध था।
राज्य की राजधानी पटना से कांटी लगभग 80 किलोमीटर दक्षिण में है। इसके नजदीक मोतीपुर, बरुराज, समस्तीपुर औऱ हाजीपुर शहर पड़ते हैं। 1951 में बनी इस विधानसभा सीट पर अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती सालों में तो कांग्रेस का इस सीट पर काफी वर्चस्व रहा और उसने पांच बार लगातार इस सीट पर जीत दर्ज की। हालांकि, शुरुआती दो बार मामूली अंतर से ही जीत मिली। इसके अलावा जेडीयू, आरजेडी ने भी इस सीट पर दो-दो बार जीत दर्ज की।
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2020 का रिजल्ट
पिछली बार 2020 में आरजेडी के मोहम्मद इसराइल मंसूरी ने करीब 10,314 वोटों से चुनाव जीता था। इस सीट पर अजीत कुमार की अच्छी हनक थी और वह दूसरे स्थान पर रहे। इससे पहले वह फरवरी 2005 में एलजेपी के टिकट पर पहली बार जीते थे और बाद में दो बार जेडीयू के टिकट से चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की, लेकिन इस बार उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, फिर भी कड़ी टक्कर दी थी। दरअसल, इन सीटों पर एलजेपी और जेडीयू ने भी अपने अपने कैंडिडेट उतारे थे जिससे एनडीए का वोट बंट गया था।
कांटी की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। औद्योगिक विकास भी हो रहा है लेकिन उसकी गति काफी धीमी है। इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की कमी अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। मुजफ्फरपुर के नजदीक होने के नाते यह एक छोटा व्यापारिक केंद्र बन गया है। 2020 में कांटी विधानसभा में 63.31 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जो कि पिछले चुनाव में सबसे कम था।
विधायक का परिचय
मोहम्मद इसराइल मंसूरी नेता होने के साथ साथ बिजनेस के मालिक भी हैं। शिक्षा की बात करें तो वह कुल 12वीं तक पास हैं। उन्होंने 1994 में नितीश्वर कॉलेज मुजफ्फरपुर बीएसईबी पटना से 12वीं पास की है। संपत्ति के मामले में उनके पास लगभग 95 लाख की संपत्ति है और लगभग 20 लाख की देनदारियां हैं।
क्राइम की बात करें तो उनके नाम पर दो आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2020 में उन्होंने पहली बार चुनाव जीता और पहली बार ही उनको मंत्री बना दिया गया। ऐसा माना जा रहा था कि मुस्लिमों को साधने के लिए उनको मंत्री बनाया गया था।
पहली बार मंत्रियों की जो सूची बनी थी उसमें उनका नाम नहीं था। उनका नाम न होने की वजह से जिले को प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में नहीं मिल रहा था। पार्टी का कहना था कि इससे मुजफ्फरपुर एवं पिछड़े पसमांदा मुसलमानों को प्रतिनिधित्व मिला।
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विधानसभा का इतिहास
शुरुआती सालों में कांटी विधानसभा सीट पर लगातार कांग्रेस पार्टी की जीत होती रही है, लेकिन बाद में दूसरी पार्टियों ने भी जीत दर्ज करनी शुरू की। हालांकि, इस सीट पर बीजेपी नहीं जीत पाई है।
1952- जमुना प्रसाद त्रिपाठी (कांग्रेस)
1957- जमुना प्रसाद त्रिपाठी (कांग्रेस)
1962- जमुना प्रसाद त्रिपाठी (कांग्रेस)
1967- एमपी सिन्हा (कांग्रेस)
1969- हरिहर प्रसाद शाही (लोकतांत्रिक कांग्रेस)
1972- शंभु शरण ठाकुर (कांग्रेस)
1977 - ठाकुर प्रसाद सिंह (जनता पार्टी)
1980- नलिनी रंजन सिंह (सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया)
1985- नलिनी रंजन सिंह (जनता दल)
1995- मुफ्ती मोहम्मद कासिम (जनता दल)
2000- गुलाम जिलानी वारसी (आरजेडी)
2005- अजित सिंह (लोक जनशक्ति पार्टी)
2010- अजित सिंह (जेडीयू)
2015- अशोक कुमार चौधरी (निर्दलीय)
2020- मोहम्मद इसराइल मंसूरी (आरजेडी)