किशनगंज विधानसभा: ध्वस्त होगा कांग्रेस का किला या बनी रहेगी सियासी धमक
चुनाव
• KISHANGANJ 28 Jul 2025, (अपडेटेड 28 Jul 2025, 12:39 PM IST)
बिहार की किशनगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस की सियासी पकड़ बेहद मजबूत है। मुस्लिम बहुल इस सीट पर बीजेपी से उसे कड़ी टक्कर मिल रही है। जानिए पूरा सियासी समीकरण।

किशनगंज विधानसभा सीट। (Photo Credit: Khabargaon)
बिहार का किशनगंज जिला मुस्लिम बहुल है। सियासत में इसकी अपनी धमक है। इसके उत्तर में नेपाल और पूर्व में पश्चिम बंगाल का दिनाजपुर जिला है। बांग्लादेश की सीमा भी बेहद करीब है। यहां की लगभग 70 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय से है। यह विधानसभा सीट बिहार की उन गिनी-चुनी विधानसभा सीटों में शामिल हैं, जहां कांग्रेस की सियासी धमक आज भी कायम है। 2010 से अभी तक किशनगंज सीट पर कांग्रेस का कब्जा है।
पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्वीटी सिंह ने भले ही 1381 मतों से चुनाव हारीं हो, लेकिन पार्टी यहां पहली बार कमल खिलाने को बेकरार है। यहां हरगौरी मंदिर और किशनगंज शहर में मुस्लिम सूफी संत की मजार भी स्थित है। यहां के बनदर्जूला गांव में भगवान विष्णु और सूर्य देव की प्राचीन मूर्तियां भी मिल चुकी हैं। विधानसभा क्षेत्र में किशनगंज नगरपालिका, किशनगंज प्रखंड के अलावा पूरा पोठिया प्रखंड आता है।
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सीट का समीकरण
आर्थिक विकास के मामले में किशनगंज विधानसभा की गिनती पिछड़े क्षेत्रों में होती है। रोजगार नहीं होने के कारण यहां पलायन सबसे आम समस्या है। मानसून सीजन में यहां कई नदियां उफान पर होती हैं। इस वजह से हर साल यहां की जनता बाढ़ से भी जूझती है।
2011 की जनगणना के मुताबिक किशनगंज जिले की 55.46 फीसदी जनता ही पढ़ी-लिखी है। यहां के लगभग 60.9 फीसदी मतदाता मुस्लिम समुदाय से आते हैं। यही वजह है कि इस सीट पर ज्यादातर मुस्लिम चेहरों को ही जीत मिली है। मगर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कांग्रेस की मुस्लिम जरूर बढ़ाई है। उसके आने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ। इस वजह से भाजपा प्रत्याशी को किशनगंज में हार जरूर मिली, लेकिन अंतर मामूली रह गया है।
- 2010 विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्वीटी सिंह को कुल 38,603 वोट मिले थे। वह कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद जावेद से सिर्फ 264 वोटों से चुनाव हारी थीं। सपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा और कम्युनिस्ट पार्टी ने मुस्लिम चेहरों पर दांव खेला था। नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ और हार-जीत का अंतर बेहद कम रह गया।
- 2015 में स्वीटी सिंह 8609 वोट से चुनाव हारीं। इस चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने अकेले दम पर 16,440 मत हासिल करने में सफल रही। अगर वह चुनाव मैदान में नहीं होती तो शायद हार-जीत का अंतर बढ़ सकता था।
- 2020 विधानसभा चुनाव में स्वीटी सिंह सिर्फ 1381 वोटों से हारीं। एआईएमआईएम को 41904 वोट मिले थे। मतलब साफ है कि अगर किशनगंज सीट पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
2020 चुनाव का परिणाम
पिछले विधानसभा चुनाव में किशनगंज सदर सीट से 20 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई। इनमें से 17 की जमानत जब्त हो गई। कांग्रेस प्रत्याशी इजहारुल हुसैन को कुल 61078 मत मिले। उनके प्रतिद्वंद्वी भाजपा प्रत्याशी स्वीटी सिंह को 59697 वोट मिले। दोनों के बीच हार जीत का अंतर सिर्फ 1381 मतों से तय हुआ। खास बात यह है कि 1037 वोट नोटा को भी मिले। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशी मोहम्मद कमरुल होदा भी 41,904 वोट पाने में सफल रहे। बाकी सभी प्रत्याशियों को अपनी जमानत तक गंवानी पड़ी।
मौजूदा विधायक का परिचय
इजहारुल हुसैन किशनगंज सदर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में दिए अपने हलफनामे में इजहारुल हुसैन ने कृषि और व्यवसाय को अपनी आय का जरिया बताया है। उनकी कुल संपत्ति 66 लाख रुपये से अधिक है। लगभग 79 हजार रुपये की देनदारी भी है।
अगर इजहारुल हुसैन की शिक्षा की बात करें तो वह पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इजहारुल हुसैन ने 1985 में मुजफ्फरपुर स्थित बिहार विश्वविद्यालय से बीएससी और 1988 में एमएससी की डिग्री हासिल की। हलफनामे के मुताबिक पहाड़कट्टा थाने में इजहारुल हुसैन के खिलाफ आईपीसी की धारा 341, 323, 506, 379, 188, 171जी के तहत मामला दर्ज है।
विधानसभा सीट का इतिहास
किशनगंज विधानसभा सीट 1952 में अस्तित्व में आई है। किशनगंज जिला मुख्यालय होने के साथ-साथ लोकसभा सीट भी है। कांग्रेस के मोहम्मद जावेद यहां से सांसद हैं। अगर विधानसभा चुनाव की बात करें तो किशनगंज सीट पर कुल 17 चुनाव में से कांग्रेस ने नौ बार बाजी मारी है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) कभी नहीं जीती है। साल 2005 में जेडीयू की रेणु कुमारी यहां से दो बार विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं।
2000 में पहली बार आरजेडी की टिकट पर रविंदर चरण यादव विधायक बने। मगर इससे पहले वे जनता दल से दो बार विधायक रह चुके हैं। किशनगंज सीट पर जनता पार्टी, लोकदल और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी भी एक-एक बार अपना करिश्मा दिखा चुकी हैं। कांग्रेस की टिकट पर रफीक आलम और मोहम्मद जावेद दो-दो बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। 1962 में यशोदा देवी और 2005 में रेणु कुमारी के रूप में किशनगंज को दो महिला विधायक भी मिल चुकी हैं।
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साल | विजेता | दल |
1952 | कमलेश्वरी प्रसाद यादव | कांग्रेस |
1957 | अब्दुल हयात | कांग्रेस |
1962 | यशोदा देवी | कांग्रेस |
1967 | एलएल कपूर | पीएसपी |
1969 | रफीक आलम | कांग्रेस |
1972 | रफीक आलम | कांग्रेस |
1977 | राजनंदन प्रसाद | जनता पार्टी |
1980 | सिंघेश्वर मेहता | कांग्रेस (आई) |
1985 | राज नंदन प्रसाद | लोकदल |
1990 | रविंदर चरण यादव | जनता दल |
1995 | रविंदर चरण यादव | जनता दल |
2000 | रविंदर चरण यादव | आरजेडी |
2005 (फरवरी) | रेणु कुमारी | जेडीयू |
2005 (अक्तूबर) | रेणु कुमारी | जेडीयू |
2010 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस |
2015 | मोहम्मद जावेद | कांग्रेस |
2020 | इजहारुल हुसैन | कांग्रेस |
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