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महाराष्ट्र में मराठा बनाम OBC कैसे हो गई सियासी जंग?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र की एक जनसभा में कहा कि कांग्रेस OBC वर्ग को कमजोर कर रही है। कांग्रेस का भी आरोप, उनकी सरकार पर कुछ ऐसा ही है।

Maharashtra Politics

महाराष्ट्र की सियासत में जाति बनाम हिंदुत्व पर चुनाव शिफ्ट होता नजर आ रहा है। (इमेज क्रेडिट- facebook.com/bjp

महाराष्ट्र की सियासत में राजनीति, सिर्फ मराठा ही तय नहीं करते। मराठा, ओबीसी वर्ग के तहत आने के लिए आंदोलन पर हैं, सरकार के सामने यह एक बड़ा मुद्दा है लेकिन कांग्रेस ने सधे कदमों से नई सियासी कवायद छेड़ दी है। पहले जो राजनीति सिर्फ मराठाओं पर केंद्रित थी, अब वह ओबीसी पर शिफ्ट होती नजर आ रही है। कांग्रेस ने इसकी पहल की, बीजेपी इसे अंजाम तक लाने की कोशिश में जुट गई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) कांग्रेस की जाति आधारित राजनीति के जवाब में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) फैक्टर लाकर, इसे नया मोड़ दे रही है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को अपने एक चुनावी रैली में सीएम योगी आदित्यनाथ के नारे 'बंटेंगे तो कटेंगे' के जवाब में 'एक हैं तो सेफ हैं'का नारा दिया है। अब महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (MVA) के सहयोगी दल ये सोच नहीं पा रहे हैं कि नए सियासी नारे क्या गढ़े जाएं। बीजेपी पर MVA गठबंधन के सहयोगी दल, खुलकर सांप्रदायिक होने का आरोप लगा रहे हैं, जिसे बीजेपी अपने पक्ष में भुना रही है। 

जाति पर बीजेपी की 'एक रहेंगे-सेफ रहेंगे' राजनीति
बीजेपी सधे कदमों से हिंदुत्व की राजनीति कर रही है, कांग्रेस जातीय विभाजन और जातीय जनगणना की मांग पर टिकी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के इसी कैंपेनिंग का काउंटर नैरेटिव तैयार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के नेता खुलकर कह रहे हैं कि कांग्रेस का एजेंडा एक जाति को दूसरी जाति से लड़ाना है। वे नहीं चाहते कि एससी, एसटी और ओबीसी आगे बढ़ें। बीजेपी जातीय विभाजन के खिलाफ खुलकर उतर गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कांग्रेस को अब ओबीसी नहीं पसंद करते हैं क्योंकि मंडल राजनीति के बाद उनके एकजुट होने से ओबीसी कमजोर हो गए हैं। कांग्रेस ओबीसी को तोड़ना चाहती है और कमजोर करना चाहती है। 



'मराठाओं को छोड़कर OBC को लुभाने की कवायद'
भारतीय जनता पार्टी, हिंदुत्व की राजनीति करती है। ऐसे में ओबीसी के अलग-अलग धड़ों का सियासी तौर पर बंटना, बीजेपी के वोट बैंक का छिटक जाना है। बीजेपी पर मराठाओं को आरक्षण दिलाने का बोझ भी है, जिसकी वजह से अन्य पिछड़ी जातियां भी बीजेपी से नाराज हो सकती हैं। मराठा, अब एमवीए की ओर जाते नजर आ रहे हैं, ऐसे में बीजेपी अब हिंदुत्व की राह पर अन्य पिछड़ी जातिोयं को अपने खेमे में लाना चाह रही है।

महाराष्ट्र के राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के मुताबिक 350 ओबीसी वर्ग हैं, जिनकी हिस्सेदारी करीब 38 फीसदी है। महाराष्ट्र में मराठाओं की संख्या 33 फीसदी है। महाराष्ट्र का ओबीसी फैक्टर इतना मजबूत है कि इसका असर कुल 288 विधानसभा सीटों में से 116 सीटों पर साफ पड़ता है। ओबीसी पर सियासी जंग, विदर्भ में दिलचस्प मोड में पहुंची है, जहां मराठा आरक्षण मुद्दा ही नहीं है। इस क्षेत्र की 62 सीटों पर ओबीसी वर्ग का दबदबा है। 

भारतीय जनता पार्टी, ओबीसी वर्ग के ही कम संख्या वाली अलग-अलग जातियों को जोड़कर नई राजनीति कर रही है। महाराष्ट्र चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय ओबीसी सूची में 7 अन्य समूहों को एंट्री दी गई, वहीं राज्य सरकार ने ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ा दी। हरियाणा में बीजेपी, ओबीसी वोटरों के भरोसे ही सरकार में आ गई।

क्या मराठाओं से बीजेपी का मोहभंग हो गया है?
भारतीय जनता पार्टी के नेता, मराठा आरक्षण को लेकर उत्साहित थे। वे चाह रहे थे कि राज्य की बड़ी आबादी, नाखुश न होने पाए। मराठा, ओबीसी वर्ग के तहत आरक्षण चाहते हैं, जिसे सरकार ने देने की कोशिश भी की। मराठा आरक्षण में अदालती पेच फंस जाता है, जिसके बाद मराठा सड़क पर उतर गए। वे बीजेपी से नाराज भी हुए, जिसका असर लोकसभा चुनावों में भी दिखा। अब मनोज जरांगे पाटिल की खुशामद पर उतरी बीजेपी को यह एहसास हो गया है कि मराठाओं के चक्कर में ओबीसी वोटरों को नहीं अनदेखा किया जा सकता है। 

जाति को हिंदुत्व से काट रही बीजेपी
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने महाराष्ट्र में 28 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन महज 9 सीटें हासिल हुईं। साल 2019 में यह आंकड़ा, 21 था। बीजेपी इससे सबक ले चुकी है। अब बीजेपी, ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए नए प्रयोग करने से भी नहीं हिचक रही है। जिस बीजेपी को ब्राह्मण और बनिया पार्टी का टैग मिला था, बीजेपी उससे निकल चुकी है। वह महाराष्ट्र में मराठाओं वाले टैग से भी बाहर आ गई है और अब उसका नारा, बटेंगे तो कटेंगे पर आ गया है। 

महाराष्ट्र के जातीय समीकरण का चुनाव पर असर क्या?
मराठा वोटरों का झुकाव कांग्रेस और एनसीपी की ओर नजर आया है। पश्चिमी महाराष्ट्र के शुगर बेल्ट में करीब 70 सीटें आती हैं, इन क्षेत्रों में कुनबी समुदाय का बोलबाला है। मराठा इसी समुदाय के तहत आरक्षण मांग रहे हैं। विदर्भ में ही ओबीसी आबादी करीब 60 प्रतिशत है। दलित और मुस्लिम वोटर भी यहां मजबूत स्थिति में हैं। साल 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को विदर्भ की 62 सीटों में से 44 सीटें हासिल हई थीं। साल 2019 में ये आकंड़ा 29 तक सिमट गया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 5 सीटों पर आगे थी, बीजेपी 2 सीटों पर आगे थी, वहीं अन्य सीटों पर शिवसेना, एनसीपी (शरद) और एक निर्दलीय को जीत मिली। 

उत्तर और पश्चिमी महाराष्ट्र में कांग्रेस, ओबीसी समुदायों को लुभाने की कोशिश कर रही है, यहां करीब 9 प्रतिशत ओबीसी वोटर हैं। महाविकास अघाड़ी के नेता कह रहे हैं कि बीजेपी ने वादा किया था कि धनगर समुदाय को आदिवासियों का दर्जा मिलेगा, उन्हें घुमंतु जनजाति (सी) श्रेणी के तहत 3.5 प्रतिशत कोटा मिलता है। अभी उनकी लिस्टिंग आदिवासी के तौर पर हुई नहीं है। अब देखने वाली बात ये है कि कांग्रेस की जाति आधारित राजनीति पर महाराष्ट्र के वोटर भरोसा करते हैं या बीजेपी के हिंदुत्व पर।

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