पीरपैंती अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। यह एक तरह का अधिसूचित क्षेत्र है यानी कि यह न ही पूरी तरह से गांव है और न ही पूरी तरह से शहर। पीरपैंती गंगा किनारे बसा हुआ है। मछलीपालन, कृषि, परिवहन और व्यापार इत्यादि यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह भागलपुर जिले का सबसे बड़ा प्रखंड है जिसमें 89 गांव और 29 पंचायतें शामिल हैं।
पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई। यह भागलपुर की छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक सीट है। इस क्षेत्र में पीरपैंती प्रखंड के अलावा कहलगांव विकास खंड की 18 ग्राम पंचायतें भी आती हैं. प्रारंभ में यह सीट सामान्य श्रेणी की थी, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया।
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मौजूदा राजनीतिक समीकरण
पीरपैंती में अनुसूचित जाति की संख्या 13.31 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों का 11.65 प्रतिशत और मुस्लिम समुदाय का 11.7 प्रतिशत है। पीरपैंती में मतदान प्रतिशत आमतौर पर काफी अच्छा रहता है। 2015 के विधानसभा चुनावों में यह 57.56 प्रतिशत रहा, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में यह 59.67 प्रतिशत और 2020 के विधानसभा चुनावों में 59.03 प्रतिशत रहा।
इस सीट पर बीजेपी और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिलती है। अब तक के हुए चुनाव में सीपीआई ने छह बार कांग्रेस ने पांच बार, आरजेडी ने चार बार और बीजेपी ने दो बार यह सीट जीती है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।
2020 की स्थिति क्या रही?
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लल्लन कुमार पासवान ने जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 96,229 वोट मिले थे यानी कि उन्हें कुल वोट का 48.5 प्रतिशत मिला था, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले आरजेडी के राम विलास पासवान को 69,210 वोट मिले थे। लल्लन कुमार ने लगभग 17 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। दोनों उम्मीदवारों के बीच जीत-हार का अंतर 13.6 प्रतिशत था।
इसके पहले के चुनावों की बात करें तो 2015 में बीजेपी को आरजेडी के हाथों 5,144 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि इससे पहले 2010 में बीजेपी ने 5,752 वोटों से जीत दर्ज की थी।
विधायक का परिचय
पीरपैंती से विधायक लल्लन सिंह पासवान बिहार की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं। वे पहले जेडीयू में थे, लेकिन बाद में पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। उनके पास लगभग 16 लाख की संपत्ति है और उन्होंने बीएससी करने के बाद एमआईटी मुजफ्फरपुर से साल 2000 में इंजीनियरिंग की है।
लल्लन पासवान विवादित बयानों को लेकर कई बार सुर्खियों में रहे हैं। एक मौके पर उन्होंने सवाल उठाया कि अगर मुस्लिम समाज लक्ष्मी या सरस्वती जैसी देवियों की पूजा नहीं करता, तो क्या वे अमीर या विद्वान नहीं बन सकते। यह बयान राजनीतिक हलकों और सोशल मीडिया पर काफ़ी विवाद का कारण बना। उन्होंने ‘श्राद्ध भोज’ और धार्मिक परंपराओं को लेकर भी तर्कपूर्ण टिप्पणी की थी, जिससे असहमति और विवाद पैदा हुआ।
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विधानसभा का इतिहास
शुरुआत में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था। शुरुआती तीन विधानसभा चुनाव यानी कि 1962 तक कांग्रेस इस सीट से जीतती रही। इसके बाद इस पर सीपीआई का कब्जा हो गया। 1995 तक कांग्रेस और सीपीआई के बीच यह सीट बंटती रही। लेकिन उसके बाद से आरजेडी और बीजेपी के बीच इस सीट को लेकर लड़ाई रही है।
1952 - सियाराम सिंह (कांग्रेस)
1957 - रामजनम माहतो (कांग्रेस)
1962 - बैकुंठ राम (कांग्रेस)
1967 - अंबिका प्रसाद (सीपीआई)
1969 - अंबिका प्रसाद (सीपीआई)
1972 - अंबिका प्रसाद (सीपीआई)
1977 - अंबिका प्रसाद (सीपीआई)
1980 - दिलीप कुमार सिन्हा (कांग्रेस)
1985 - दिलीप कुमार सिन्हा (कांग्रेस)
1990 - अंबिका प्रसाद (सीपीआई)
1995 - अंबिका प्रसाद (सीपीआई)
2000 - शोभकांत मंडल (आरजेडी)
2005 - शोभकांत मंडल (आरजेडी)
2010 - अमन कुमार (बीजेपी)
2015 - राम विलास पासवान (आरजेडी)
2020 - ललन कुमार (बीजेपी)