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रामनगर विधानसभा: BJP का विजय रथ रोक पाएगा विपक्ष? बड़ी मुश्किल है डगर

पश्चिमी चंपारण की इस विधानसभा सीट पर पिछले 8 में से 7 चुनाव बीजेपी ही जीती है। कांग्रेस पार्टी लगातार उम्मीदवार बदलने के बावजूद यह सीट जीत नहीं पा रही है।

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रामनगर विधानसभा, Photo Credit: Khabargaon

बिहार की रामनगर विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यह विधानसभा सीट वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट और पश्चिमी चंपारण जिले में आती है। सीटों की गिनती के हिसाब से यह बिहार की विधानसभा नंबर 2 है। यह विधानसभा क्षेत्र भी दो तरफ से नेपाल से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र भारत के रेलवे नेटवर्क से सिर्फ नाम मात्र का कनेक्टेड है और नरकटियागंज से होकर गुजरने वाली रेलवे लाइन इस विधानसभा क्षेत्र के गौहाना से होते हुए नेपाल बॉर्डर पर स्थित भिखना थोरी तक जाती है। इस क्षेत्र की गिनती बिहार की पिछड़ी विधानसभाओं में होती है।

 

1962 में जब इस विधानसभा सीट पर पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए थे तब राजपरिवार से आने वाले नारायण बिक्रम शाह उर्फ नारायण राजा चुनाव में उतरे। वह स्वतंत्र पार्टी के उम्मीद थे। वहीं, कांग्रेस के टिकट पर उतरे केदार पांडेय। 1957 में बगहा विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर केदार पांडेय दूसरे विजेता बने। तब एक सीट पर दो उम्मीदवार भी चुने जाते थे। केदार पांडेय 1957 से 1962 तक बिहार की सरकार में उपमंत्री रहे और आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। नारायण बिक्रम शाह से 1962 का चुनाव हारने के बाद केदार पांडेय ने मुकदमा दायर कर दिया था कि बिक्रम शाह तो भारत के नागरिक ही नहीं हैं और वह नेपाल के नागरिक हैं। हालांकि, उनका यह दावा अदालत में खारिज हो गया।

 

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नतीजा यह हुआ कि बिक्रम शाह यहां से 1967 और 1969 में भी चुनाव जीते। फिर उन्हीं के परिवार के बिक्रम शाह 3 बार चुनाव जीते। 1990 से लेकर अब तक यहां सिर्फ एक ही बार जनता दल को जीत मिली है, बाकी के 7 चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बाजी मारी है। पिछले 6 चुनाव से यहां बीजेपी ही जीतती आ रही है और भागीरथी देवी 3 बार से विधायक हैं।

मौजूदा समीकरण

 

इस विधानसभा के समीकरणों और बीजेपी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए इतना तो तय है कि इस बार भी यहां से बीजेपी ही चुनाव लड़ेगी। उम्मीदवार के तौर पर भागीरथी देवी का दावा भी मजबूत है। वहीं, पूर्व में रही शिकारपुर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके सुबोध कुमार पासवान भी जोर लगा रहे हैं। सुबोध कुमार इस सीट पर हुए पिछले तीनों चुनाव में अलग-अलग पार्टियों से लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली है। इस बार जन सुराज पार्टी के भी कई युवा नेता अपनी किस्मत आजमाने को तैयार हैं। अब विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह बीजेपी के तिलिस्म को तोड़ने के लिए कौनसा दांव निकालती है।

उम्मीद है कि एक बार फिर से यहां से कांग्रेस ही अपना उम्मीदवार उतारेगी। कांग्रेस के लिए समस्या यह है कि पिछले तीन चुनाव में उसने हर बार उम्मीदवार बदला है लेकिन हर बार उसे हार ही मिली है।


2020 में क्या हुआ था?

 

2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर से अपनी विधायक भागीरथी देवी पर भरोसा जताया था। गठबंधन की ओर से यह सीट कांग्रेस के खाते में थी तो कांग्रेस ने राजेश राम को टिकट दिया था। भारतीय पंचायत पार्टी के सुबोध कुमार भी इस सीट पर चुनाव लड़े थे और अच्छे-खासे वोट भी बटोरे थे। सुबोध कुमार इस सीट पर पहले भी चुनाव लड़ते रहे थे और उन्हें वोट भी मिलते थे। 

 

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2020 में एक बार फिर से बीजेपी की भागीरथी देवी ने यहां जीत हासिल की और कांग्रेस के राजेश राम दूसरे नंबर पर रह गए। वहीं, सुबोध कुमार 26 हजार से ज्यादा वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे।


विधायक का परिचय

 

इस सीट से विधायक भागीरथी की पहली पहचान है कि वह पद्मश्री से सम्मानित हैं। एक समय पर सरकारी दफ्तरों में सफाई कर्मचारी का काम करने वाली भागीरथी देवी अपनी सादगी के लिए चर्चित हैं। वह बताती हैं कि पहला चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अपने ही परिवार में विरोध झेलना पड़ा था। वह अपने पति के खिलाफ जाकर न सिर्फ चुनाव लड़ीं बल्कि खुद को राजनीति में स्थापित भी किया। सफाईकर्मी के तौर पर काम करते हुए ही उन्होंने महिलाओं की समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करना शुरू किया और इसी ने उन्हें राजनीति में आने को भी प्रेरित किया।

 

यह वही भागीरथी देवी हैं जिनको लालू यादव ने विधानसभा में कहा था- तू हमार फुआ लागेलू यानी तुम मेरी बुआ लगती हो तो बैठ जाओ। 2010 में रामनगर विधानसभा सीट पर आने से पहल भागीरथी देवी शिकारपुर विधानसभा (अब खत्म हो चुकी सीट) से 3 चुनाव जीत चुकी थीं। आमतौर पर भोजपुरी में ही बात करने वाली भागीरथी देवी ने 'प्यार मोहब्बत जिंदाबाद' नाम की एक फिल्म में भी छोटी सी भूमिका निभाई थी। 2019 में पद्मश्री से सम्मानित होने वाली भागीरथी देवी 2022 में बीजेपी से इतनी नाराज हुईं कि पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, बाद में बीजेपी ने उन्हें मना लिया। 

 

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भागीरथी देवी से जुड़ा एक और रोचक किस्सा है। 2020 के चुनाव में उनके बेटे राजेश कुमार की पत्नी रानी देवी ने भागीरथी देवी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए निर्दलीय पर्चा भर दिया था। रानी ने अपनी सास को हत्यारिन कह दिया था था और आरोप लगाए थे कि जो घर को नहीं हुआ, वह किसी का नहीं होगा। इस पर भागीरथी देवी ने कहा था कि इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 

विधानसभा का इतिहास

 

1962 में नारायण बिक्रम शाह और केदार पांडेय के मुकाबले की वजह से चर्चा में आई यह सीट 1990 तक इसी परिवार के कब्जे में रही। 1990 में 'राम लहर' पहली बार यहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जीत हासिल की। 1995 में जनता दल के राम प्रसाद यादव ने पहली बार अपनी पार्टी के लिए यह सीट जीती। उसके बाद लगातार तीन बार बीजेपी के ही चंद्र मोहन राय ने जीत हासिल की। 2008 के परिसीमन में यह सीट SC के लिए आरक्षित हो गई और तब से ही यहां से बीजेपी की भागीरथी देवी चुनाव जीतती आ रही हैं।

 

1962- नारायण बिक्रम शाह- स्वतंत्र पार्टी
1967- नारायण बिक्रम शाह- कांग्रेस
1969- नारायण बिक्रम शाह- कांग्रेस
1972- नारायण बिक्रम शाह- कांग्रेस (O)
1977-अर्जुन बिक्रम शाह- कांग्रेस
1980-अर्जुन बिक्रम शाह- कांग्रेस
1985- अर्जुन बिक्रम शाह- कांग्रेस
1990- चंद्र मोहन राय- बीजेपी
1995- राम प्रसाद राय-जनता दल
2000-चंद्र मोहन राय- बीजेपी
2005-चंद्र मोहन राय- बीजेपी
2005-चंद्र मोहन राय- बीजेपी
2010-भागीरथी देवी- बीजेपी
2015-भागीरथी देवी- बीजेपी
2020-भागीरथी देवी- बीजेपी

 

 

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