संजय सिंह, पटना: कोसी का मधेपुरा क्षेत्र समाजवादियों का गढ़ रहा है। यहां की राजनीतिक भूमि पर वीपी मंडल, शरद यादव, लालू यादव और पप्पू यादव जैसे सूरमा भी अपना भाग्य आजमा चुके हैं। यह क्षेत्र कभी कांग्रेस तो कभी आरजेडी का मजबूत गढ़ माना जाता था। समाजवादी नेता शरद यादव के पुत्र शांतनु बुंदेला पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन किसी कारणवश उन्हें टिकट नहीं मिला। इस बार शांतनु तेजस्वी यादव के साथ देखे जा रहे हैं। इससे उम्मीद की जा रही है कि वे विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाएंगे।
‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का’; मधेपुरा के लिए यह कहावत पुरानी है। यह कहावत वहां के जातीय समीकरण को दर्शाता है। इस कहावत का उपयोग अधिकांश समय चुनाव के दौरान किया जाता है। यहां के जातीय समीकरण में सबसे ज्यादा संख्या यादवों की है। दूसरे नंबर पर मुसलमान हैं। यह कहावत 1962 के चुनाव में गढ़ी गई थी। तब से यह मधेपुरा की राजनीति का हिस्सा बन गया है। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता बीएन मंडल ने दिग्गज कांग्रेसी नेता ललित नारायण मिश्रा को चुनाव में पराजित किया था। यहां की संसदीय राजनीति राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और जेडीयू के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यादव बाहुल्य होने के कारण यहां से लालू यादव भी चुनाव लड़ चुके हैं। पूर्णियां के वर्तमान सांसद पप्पू यादव भी यहां के सांसद रहे हैं।
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शरद का मधेपुरा से रिश्ता
शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से शिक्षा प्राप्त कर राजनीति की शुरुआत की। बाद में उनका राजनीतिक रिश्ता बिहार के मधेपुरा से हो गया। उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री और श्रम मंत्री के रूप में भी कार्य किया। वह 2006 से 2016 जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे चार बार मधेपुरा से सांसद भी चुने गए। उनकी लोकप्रियता इस क्षेत्र में काफी थी। आज भी इनके समर्थकों की संख्या इस इलाके में हजारों में है। उन्होंने इस इलाके के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। यही कारण है कि शांतनु अपनी पिता की विरासत पर मधेपुरा से राजनीति करना चाहते हैं।
शांतनु लड़ सकते हैं चुनाव
शरद यादव के पुत्र शांतनु बुंदेला पिछले लोकसभा चुनाव में ही मधेपुरा से अपना भाग्य आजमाना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें विधानसभा चुनाव तक इंतजार करने को कहा था। गत चुनाव में बिहारीगंज से शरद की पुत्री सुवासिनी ने चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इधर शीर्ष नेतृत्व के फैसले पर बुंदेला चुप्पी साधकर बैठे रहे। अब तेजस्वी के रथ पर बुंदेला को सवार देखकर राजनीतिक हलकों में तरह तरह की प्रतिक्रिया होते देखी जा रही है।
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आरजेडी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री भी मधेपुरा से ही राजनीति करते हैं। ऐसे ही कुछ अन्य नेताओं को बुंदेला को देखकर हड़बड़ी मच गई है। कोसी के अन्य दो जिले सहरसा और सुपौल की राजनीति में शरद यादव का बेहतर प्रभाव था। अब तेजस्वी और बुंदेला के साथ आने से कोसी का राजनीतिक समीकरण बदल सकता है। इस समीकरण को देखकर राजद के लोग ज्यादा उत्साहित हैं।