संजय सिंह, पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा जाति की भूमिका अहम है। दोनों गठबंधनों ने इस जाति को रिझाने के लिए कई कदम उठाए हैं। एनडीए और महागठबंधन दोनो दलों के गठबंधनों ने कुशवाहा जाति को 22-22 टिकट वितरण कर प्राथमिकता दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस जाति को रिझाने की रणनीति अपनाई जा रही है।
महागठबंधन से राजद और एनडीए से जदयू दोनों ने 13-13 सीट कुशवाहा को दिया है, जबकि भाजपा और माले ने 5-5 टिकट दिया है। एनडीए में रोलोमो ने 3 और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 1 कुशवाहा को टिकट दिया है, वहीं महागठबंधन में कांग्रेस एवं सीपीएम ने दो-दो टिकट कुशवाहा को दिया है। 
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कुशवाहा पर ही क्यों जोर?
कुशवाहा नेताओं का सूबे में दबदबा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राज्य के कुशवाहा नेताओं पर अब तक यह समुदाय भरोसा करता रहा है। बीजेपी में सम्राट चौधरी के बढ़ते कद की एक वजह, कुशवाहा वोटरों का मजबूत समर्थन माना जाता है। कुशवाहा समुदाय का अभी कोई सर्वमान्य नेता नहीं है। सम्राट चौधरी, उपेंद्र कुशवाहा या आलोक मेहता जैसे कई नेता हैं, लेकिन इनमें से किसी के पास जाति का वोट शिफ्ट कराने की ताकत नहीं है। 
क्या उपेंद्र कुशवाहा का कद बड़ा है?
उपेंद्र कुशवाहा की भूमिका बिहार विधान सभा चुनाव में अहम है। वे राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख हैं और कुशवाहा समुदाय के नेता हैं। उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है, लेकिन उनकी लोकप्रियता मुख्यत:  कुशवाहा,कोइरी समुदाय तक सीमित है।
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बिहार की राजनीति में कितनी अहम हैं जातियां?
बिहार की जाति आधारित राजनीति में चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता अहम भूमिका निभाते हैं। ये नेता 2-5 प्रतिशत वोट शेयर पर प्रभाव डाल सकते हैं, जो कि त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबलों में जीत-हार तय कर सकता है। 
कुशवाहा जाति का महत्व बिहार विधान सभा चुनाव में बढ़ गया है। दोनों गठबंधनों ने इस जाति को रिझाने के लिए कई कदम उठाए हैं। कुशवाहा जाति के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी अपनी पार्टी के लिए कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।