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वोटिंग होते ही फिर चर्चा में आया फॉर्म 17C, क्या है इसकी पूरी कहानी?

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग खत्म होते ही फॉर्म 17C पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी इसको लेकर बात उठी थी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था।

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दिल्ली में वोट डालने के बाद स्याही दिखाते लोग, Photo Credit: PTI

अक्सर यह देखा जाता है कि चुनाव हो जाने के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को रखने, स्ट्रॉन्ग रूम में उनकी सुरक्षा और फिर काउंटिंग की प्रक्रिया को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं। चुनावों के आसपास कई बार इस प्रक्रिया को लेकर कई बार अदालतों तक भी मामला पहुंचता है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव की वोटिंग होते ही सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर दी गई है। इस जनहित याचिका में फॉर्म-17C को जल्द से जल्द प्रकाशित करने की मांग की गई है। यह जनहित याचिका कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा और अमेठी से कांग्रेस के सांसद किशोरी लाल शर्मा ने दाखिल की है।

 

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई इस याचिका में कहा गया है कि देश की सर्वोच्च अदालय चुनाव आयोग को अंतरिम आदेश दे कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के अलावा भविष्य में होने वाले चुनावों का फॉर्म 17C भी तुरंत अपलोड करे। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित होती है और किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका खत्म होती है।

क्या है फॉर्म 17C?

 

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के तहत फॉर्म 17C एक ऐसा फॉर्म है जिसमें मतदाताओं से संबंधित जानकारी दी जाती है। इसी फॉर्म के जरिए यह जानकारी सार्वजनिक की जाती है कि किस बूथ पर कितने वोटर थे, कितने लोगों ने वोट डाले, कितने लोग वोट डालने नहीं आए और कितने लोगों को वोट डालने से रोक दिया गया। 

 

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इस फॉर्म का पार्ट-1 बूथ पर मौजूद पीठासीन अधिकारी भरता है और इसकी जानकारी हर पोलिंग एजेंट को भी देता है। यानी वोटिंग खत्म होने के बाद फॉर्म भरने के बाद पीठासीन अधिकारी सबको बताता है कि उस बूथ पर कुल कितने वोट डाले गए। ऐसा करने की वजह यही होती है कि पोलिंग एजेंट को पता रहे कि उस बूथ पर कुल कितने वोट डाले गए हैं। यह संख्या गिनती के समय काम आती है।

फॉर्म का पार्ट-2 सुपरवाइजर भरता है और इस पर हर उम्मीदवार या उसके प्रतिनिधि के दस्तखत भी करवाए जाते हैं। इस पार्ट की समीक्षा रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा भी की जाती है।

 

क्यों होता है विवाद?

 

पहले भी यह मुद्दा कई बार चर्चा में रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने सवाल उठाए थे कि चार चरण के चुनाव हो जाने के बाद भी पहले चरण की वोटिंग के अंतिम आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया था और 17 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा भी था कि डेटा जारी करने में यह देरी क्यों हो रही थी। 22 मई को चुनाव आयोग ने कहा कि उसने फैसला लिया है कि वह फॉर्म 17C को अपनी वेबसाइट पर पब्लिश नहीं करेगा।

 

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दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को हुई थी लेकिन चुनाव आयोग ने वोटिंग के अंतिम आंकड़े अप्रैल महीने के आखिर में जारी किए थे। इसी को लेकर सवाल उठे थे कि आखिर इसमें इतनी देरी क्यों की गई जबकि यह संख्या तो तुरंत बताई जा सकती है।

 

इसी को लेकर एक एनजीओ असोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स ने चुनाव आयोग से अपील की थी वह वोटिंग के तुरंत बाद डेटा जारी करे। इसी एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग से सवाल पूछे थे। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था, 'उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17C की जानकारी देना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है।' चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि अगर वह ऐसा डेटा अपलोड करता है तो उसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।

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