नई दिल्ली सीट पर वोट कम होना केजरीवाल के लिए खतरा, समझिए कैसे
AAP के मुखिया अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर घेरने के लिए इस बार बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस ने भी जोर लगाया है। समझिए कैसे हो सकती है मुश्किल।

अरविंद केजरीवाल, Photo Credit: PTI
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर इस कुर्सी की रेस में हैं। इस रेस में दौड़ रहे केजरीवाल लगातार चौथी बार नई दिल्ली विधानसभा सीट से ही चुनाव मैदान में हैं। अपने पहले चुनाव में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराने वाले केजरीवाल को घेरने के लिए विपक्षी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने मजबूत नेताओं को यहां से उतारा है। लगातार 50 पर्सेंट से ज्यादा वोट हासिल करते आ रहे अरविंद केजरीवाल के लिए इस बार मुश्किल ये है कि हजारों वोट यहां से कट गए हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में लगभग 25 पर्सेंट वोट कम होना, अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसका अंदाजा AAP को भी है, इसीलिए उसके नेता लगातार चुनाव अधिकारियों के संपर्क में हैं और बार-बार इसकी शिकायत भी दर्ज कराते आ रहे हैं।
कुछ दिनों पहले ही अरविंद केजरीवाल ने एक चिट्ठी लिखकर आरोप लगाए कि नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 5000 नाम कटवाने और 7500 नए नाम जोड़ने का आवेदन दिया गया है। केजरीवाल ने यह भी कहा कि अगर इस तरह से 12 पर्सेंट वोट इधर से उधर हो जाएंगे तो बचेगा ही क्या? चुनाव आयोग की ओर से 6 जनवरी को जब ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल प्रकाशित किया गया तो AAP ने आरोप लगाए कि 29 अक्तूबर से 2 जनवरी के बीच 6166 वोट कटवाने की अर्जी दी गई और 10 हजार से ज्यादा नए वोट जुड़वाने की अर्जी दी गई।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला सिर्फ राजनीतिक दलों के बीच का ही नहीं रह गया है। नई दिल्ली के एसडीएम ने दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी को चिट्ठी लिखकर इस बात पर चिंता जताई है कि जनसंख्या की तुलना में मतदाताओं की संख्या कम हुई है। एक चुनाव अधिकारी के मुताबिक, सरोजनी नगर, रेलवे क्वार्टर, रक्षा भवन सर्वेंट क्वार्टर और कई अन्य घरों को तोड़े जाने से लोग शिफ्ट हुए हैं जिसके चलते मतदाताओं की संख्या में अंतर आया है।
AAP की चिंता क्या है?
दरअसल, 2020 के विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली में मतदाताओं की कुल संख्या 1,46,901 थी। मौजूदा समय में यह 1.09 लाख पर आ गई है। यानी लगभग 40 हजार वोट कम हो चुके हैं। AAP आरोप लगा रही है कि जानबूझकर उन इलाकों में लोगों के वोट काटे गए हैं, जो AAP और अरविंद केजरीवाल के वोटर रहे हैं। कई अन्य मीडिया रिपोर्ट में भी यह देखा गया है कि जो लोग वहीं पर मौजूद हैं उनके नाम भी काटे गए हैं। इसे सुधारने के लिए चुनाव आयोग की ओर से काम जारी है लेकिन फिलहाल मतदाताओं की संख्या कम है, यह एक तथ्य है।
2020 के चुनाव की तुलना में कुल मतदाताओं की संख्या जितनी घटनी है, अरविंद केजरीवाल की जीत का अंतर उससे कम था। 5 साल में लगभग 40 हजार वोटों का अंतर आया है। अरविंद केजरीवाल ने पिछला चुनाव लगभग 21 हजार वोटों के अंतर से जीता था। AAP का आरोप है कि लगभग 15 हजार वोटों की हेरफेर हो गई है।
Large scale fraud taking place in voter additions and deletions in New Delhi assembly. Delhi CM Atishi ji writes this letter to Hon’ble CEC presenting evidence and seeking time to meet pic.twitter.com/R9GU4KtU3Q
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 6, 2025
एक और खास बात है कि 2020 की तुलना में इस बार यह सीट बेहद हाई प्रोफाइल हो गया है। बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित दोनों ही पुराने और मंझे हुए नेता हैं। दोनों ही नेता दिल्ली की राजनीति में सक्रिय रहे हैं और दोनों की ही पार्टियां उनके पीछे दम लगा रही हैं। ऐसे में अगर प्रवेश वर्मा बीजेपी के वोट को थोड़ा बढ़ाने में कामयाब होते हैं और कांग्रेस अपना प्रदर्शन पिछले दो चुनाव की तुलना में बेहतर करती है तो अरविंद केजरीवाल अपनी ही सीट पर फंस सकते हैं।
पुराने चुनाव बताते हैं क्यों परेशान हैं केजरीवाल
अब 2020 के चुनाव नतीजे को देखते हैं। कुल 1,46,901 मतदाता थे जिसमें से 76090 ने वोट डाले। इसमें से 46,758 वोट यानी 61.10 पर्सेंट वोट अरविंद केजरीवाल को मिले, बीजेपी के सुनील कुमार यादव को 32.75 पर्सेंट यानी कुल 25,061 वोट मिले और कांग्रेस के रोमेश सभरवाल सिर्फ 3220 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे।
2015 के चुनाव की बात करें तो तब लगभग 137294 वोट थे। उसमें से 89 हजार ने वोट डाले। 89 हजार में से 57213 वोट यानी 64.34 पर्सेंट वोट अरविंद केजरीवाल को मिले। बीजेपी की नूपुर शर्मा को 25 हजार वोट मिले और कांग्रेस की किरण वालिया सिर्फ 4781 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहीं।
2013 में शीला दीक्षित सीएम थीं और अरविंद केजरीवाल पहली बार चुनाव में उतरे थे। पहले ही चुनाव में अरविंद केजरीवाल को 44,269 वोट मिले और वह 28 हजार से ज्यादा के वोटों के अंतर से शीला दीक्षित से चुनाव जीत गए। वह चुनाव भी बेहद हाई प्रोफाइल था क्योंकि तब बीजेपी के विजेंद्र गुप्ता भी इसी सीट से चुनाव लड़े थे और उन्हें 17 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।
इन तीनों चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल हर बार 50 पर्सेंट से ज्यादा वोट पाते रहे हैं। इस बार अगर उनके वोट में थोड़ी भी कमी आई और बाकी पार्टियों ने अपने वोट बढ़ाने में कामयाबी हासिल कर ली तो नई दिल्ली सीट से लगातार तीन चुनाव जीत चुके अरविंद केजरीवाल के लिए मुश्किल हो सकती है। विपक्षियों की कोशिश भी यही है कि वोटों का बंटवारा हो। हालांकि, अरविंद केजरीवाल भी 'महिला सम्मान योजना', 'संजीवनी योजना' और 'पुजारी ग्रंथी योजना' जैसे लोकलुभावन वादों को नई दिल्ली से ही लॉन्च करते रहे हैं जिससे वह यहां लगातार माहौल बनाने में भी जुटे हुए हैं।
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