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1947 से अब तक कितनी बदल गई है फिल्मों की शूटिंग

बॉलीवुड की पहली फिल्म मूवी 1931 में बनी थी। उस समय से अब तक कई बड़े बदलाव आए है। आइए जानते हैं कितनी बदल गई है इंडस्ट्री।

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प्रतिकात्म तस्वीर(Photo Credit: Freepik)

सिनेमा माने बॉलीवुड जिसे देखकर हम सबका बचपन बीता है। हमारा क्या, हमारे पेरेंट्स का और उनके पेरेंट्स तक फिल्में देखते आए हैं। सिनेमा का प्रभाव हम सभी की लाइफ पर पड़ता है। कहते हैं सिनेमा समाज का आईना होती है। 1913 में पहली भारतीय फिल्म 'राजा हरिशचंद' रिलीज हुई थी। ये पहली फूल लेंथ फिल्म थी जिसका निर्देशन और निर्माण दादा साहेब फाल्के ने किया था। इस फिल्म को रिलीज हुए 111 साल हो गए है। इस फिल्म में दादा साहेब फाल्के ने नई तकीनीकों और टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया था डबल एक्सपोजर और स्पेशल इफेक्ट। उन्होंने ही पहली बार फिल्म में  म्यूजिक के कॉन्सेप्ट को पहली बार पेश किया था।

 

इतने सालों में काफी कुछ बदल गया है। 

 

पहले के समय में शूटिंग करने का बहुत मुश्किल होता था। एक फिल्म को शूट करने के लिए सालों लग जाते थे। कई बार निर्देशक और निर्माता के पास शूटिंग के बीच में पैसे खत्म हो जाते थे। जब पैसे फिर से फिल्म की शूटिंग शुरू हो जाती थी। आज के समय में एक सामान्य फिल्म को शूट करने के समय में 90 से 100 दिन लगते हैं। आइए जानते हैं पिछले कुछ सालों से अब शूटिंग करने का तरीका कितना बदल गई है। 

पहले के समय में शूटिंग करते समय कलाकार वहीं खड़ा रहता था और कमैरा घूमता था और शॉर्ट लिया जाता था। आज के समय में कलाकार के साथ-साथ कैमरा पर्सन कैमरा लिए घूमता है। शूटिंग के समय पहले अभिनेत्रियां कई शॉर्ट में एक ही कपड़े पहने रहती थी। आज के समय में शूटिंग से पहले कॉस्ट्यूम सबसे बड़ा मुद्दा रहता है। सबसे पहले फिल्म में निगेटिव रील्स बनती थी लेकिन आज सबकुछ बदल है।

 

किस तरह का कैमरा होता था इस्तेमाल

 

कभी इंडस्ट्री में फिल्में शूट करने के लिए ब्लैक एंड व्हाइट कैमरे का इस्तेमाल होता था। साल 1910 तक फिल्म की शूटिंग के लिए Aerospace कैमरे का इस्तेमाल किया जाता था। ये हाथ में पकड़ने वाला कैमरा था। आज के समय में 5K (5120×2880 पिक्सल रेजोल्यूशन) वाले कैमरे का इस्तेमाल होता है। इनमें एचडी क्वॉलिटी भी अच्छी होती है। 

 

साल 1940 और 1960 तक के सिनेमा को गोल्डन ऐरा कहा गया। इस दौर में पैरलर सिनेमा की शुरुआत हुई थी जिसमें सामजिक समस्याओं को दिखाया गया। इस दौर में सत्यजीत रे की फिल्में रिलीज हुई थी। उस दौर में सिनेमैटोग्राफर सुभ्रता मित्रा ने बाउंस बैक टेकिनिक का इस्तेमाल किया जिसकी वजह से सेट पर डे लाइट के सीन को शूट किया जाता था बाद में फोटो निगेटिव फ्लैशबैक इफेक्ट का इस्तेमाल हुआ। 1957 में 'प्यासा,' 'कागज के फूल 'और 'अवारा' जैसी कमर्शियल फिल्मों की शुरुआत हुई।

 

1987 में पहली बार फिल्म 'मिस्टर इंडिया 'में क्रोमा टेक्नोलॉजी (ग्रीन स्क्रीन ) का इस्तेमाल हुआ ताकि भम्र की स्थिति पैदा हो। इस संभावना ने फिल्म मेकर के लिए नई संभावनाओं को खोल दिया। 1998 में पहली बार फिल्म में 3डी एनिमेशन का इस्तेमाल हुआ। 'कोई मिल गया' और 'धूम' जैसी फिल्मों में वीएफएक्स का इस्तेमाल हुआ। 

 

2010 के दौर में कंप्यूर जेनरेटड इमेज का इस्तेमाल हुआ। 'रावन' और 'कृष 3' जैसी फिल्मों में एडवांस लेवल का सीजीआई का इस्तेमाल हुआ था। 'पद्मावत' में लड़ाई के बैकग्राउड सीन को दिखाने के लिए वीएफएक्स का इस्तेमाल हुआ था। साल 2009 में 'मगधीरा' को इंटरनेशनल वीएफएक्स स्टूडियो के साथ मिलकर बनाया गया था। आने वाले समय में ऐआई और एडवांस टेक्नोलॉजी का होने वाली है।

 

 

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