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अमेरिका अगर NATO से बाहर हुआ तो दुनिया पर क्या होगा असर?

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बहस हुई थी, उसके बाद से अमेरिका के NATO से बाहर निकलने की अटकलें तेज हो गई हैं।

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। (File Photo Credit: PTI)

क्या अमेरिका NATO से बाहर होने जा रहा है? सवाल इसलिए क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'खासमखास' एलन मस्क इस बात से सहमत हैं कि अब अमेरिका को NATO और UN से बाहर निकल जाना चाहिए।

 

 

NATO से बाहर निकलने की वकालत करने वाले एलन मस्क अकेले नहीं हैं। खुद ट्रंप भी कई बार इससे बाहर निकलने का इशारा कर चुके हैं। राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि NATO को सबसे ज्यादा फंडिंग अमेरिका करता है, जबकि सुरक्षा यूरोपीय देशों को मिलती है। ट्रंप का कहना है कि यूरोपीय देशों को भी NATO में फंडिंग बढ़ानी चाहिए।


पिछले हफ्ते व्हाइट हाउस में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ हुई ट्रंप की बहस के बाद कई रिपब्लिकन सांसद NATO से बाहर निकलने की वकालत कर चुके हैं। 


कुछ दिन पहले ही रिपब्लिकन सीनेटर माइक ली ने भी NATO से बाहर निकल जाने की वकालत की थी। उन्होंने NATO को यूरोपीय देशों के लिए 'अच्छी डील' और अमेरिका के लिए 'कच्ची डील' बताया था।

 

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ट्रंप का क्या है रुख?

NATO को दुनिया का सबसे ताकतवर सैन्य गठबंधन माना जाता है। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप NATO के आलोचक रहे हैं। अगस्त 2019 में तो उन्होंने पब्लिकली कहा था, 'मुझे NATO की कई परवाह नहीं है।'


फ्रेंच यूरोपियन कमिश्नर थियरी ब्रेटन ने बताया था, '2020 में दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की मीटिंग में ट्रंप ने यूरोपियन कमीशन की प्रेसिडेंड उर्सुला वोन डेर लेयेन से कहा था कि अगर यूरोप पर हमला होता है तो हम कभी मदद के लिए आगे नहीं आएंगे।' ट्रंप ने यह भी कहा था, 'वैसे भी NATO अब मर चुका है और हम इसे छोड़ देंगे।'


अपने दूसरे कार्यकाल में भी ट्रंप NATO पर हमलावर रहे हैं। शपथ लेने के कुछ दिन बाद ही ट्रंप ने कहा था, 'अमेरिका गठबंधन के सदस्यों की रक्षा कर रहा है लेकिन वे हमारी रक्षा नहीं कर रहे हैं।' उनका कहना है कि NATO के हर सदस्य को अपनी जीडीपी का कम से कम 5 फीसदी खर्च करना चाहिए।

 

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क्या ट्रंप NATO से बाहर आ सकते हैं?

यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल। 2023 में बाइडेन सरकार ने एक कानून बनाया था। इसके तहत, अगर अमेरिका NATO से बाहर निकलना चाहता है, तो उसके लिए सीनेट के दो-तिहाई सदस्यों की मंजूरी लेनी होगी। इसका मतलब यह हुआ कि ट्रंप NATO से बाहर निकलने का एकतरफा फैसला नहीं ले सकते।


हालांकि, इसे लेकर भी अलग-अलग राय है। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के स्कॉलर स्कॉट एंडरसन का कहना है कि राष्ट्रपति को संसद नहीं बता सकती कि राष्ट्रपति को क्या करना है और क्या नहीं? हालांकि, अगर संसद को अनदेखा किया जाता है तो इसे अदालत में चुनौती मिल सकती है।


हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि ट्रंप आधिकारिक तौर पर भले ही NATO से न निकलें लेकिन वे इसे कमजोर कर सकते हैं। हो सकता है कि ट्रंप NATO की फंडिंग कम कर सकते हैं। अमेरिकी सैनिकों की संख्या भी कम कर सकते हैं।

 

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अंगर अमेरिका बाहर निकला तो...?

अगर ट्रंप जिद पर अड़े और अमेरिका NATO से बाहर आया तो शायद वो हो जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। NATO पर कई किताब लिख चुके जेम्स गोल्डगियर ने द अटलांटिक को बताया, 'इसके नतीजे भयावह होंगे। आप नहीं कह सकते कि हमारे पास दूसरी योजना है। कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है। कोई वैकल्पिक हथियार नहीं है और गोला-बारूद की आपूर्ति भी नहीं है। अमेरिका के निकलते ही यूरोप पर रूस के संभावित हमले का खतरा बढ़ जाएगा।'


यूरोप को पता है कि अगर अमेरिका इससे बाहर निकलता है तो रूस उस पर हमला कर सकता है। पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क तो कह भी चुके हैं, '50 करोड़ यूरोपीय 30 करोड़ अमेरिकियों से गुहार लगा रहे हैं कि 14 करोड़ रूसियों से हमारी रक्षा करो।'


अमेरिका के NATO से निकलने का सबसे पहला असर यूक्रेन पर पड़ेगा। अभी तक यूरोपीय देश अमेरिका की वजह से यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि अगर भविष्य में रूस उन पर हमला करता है तो अमेरिका से उन्हें सैन्य मदद मिल जाएगी। मगर अमेरिका के बाहर निकलने के बाद इसकी गुंजाइश खत्म हो जाएगी और ऐसी स्थिति में यूरोपीय देश यूक्रेन की मदद करने की बजाय खुद को सुरक्षित करने पर ज्यादा ध्यान देंगे।


हालांकि, इससे सिर्फ यूरोप को ही नुकसान नहीं होगा। बल्कि अमेरिका पर भी इसका असर पड़ेगा। अभी NATO के सहारे यूरोप, अफ्रीकी और कुछ पश्चिमी एशियाई देशों तक अमेरिका की पहुंच है। NATO से बाहर आने के बाद अमेरिका की मौजूदगी खत्म हो जाएगी। ऐसी स्थिति में यह देश रूस या चीन के करीब चले जा सकते हैं।

 

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NATO आखिर है क्या?

NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन। 1949 में इसे इसलिए बनाया गया था, ताकि सोवियत संघ (अब रूस) की विस्तारवादी नीति को रोका जा सके। यह एक सैन्य संगठन है, जिसका मकसद साझा सुरक्षा नीति है। इसका संविधान कहता है कि अगर कोई बाहरी देश किसी NATO देश पर हमला करेगा तो उसे बाकी देशों पर हमला माना जाएगा और सब मिलकर उसकी रक्षा करेंगे।


NATO का गठन दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुआ था। दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी ने तो सरेंडर कर दिया था लेकिन सोवियत संघ विस्तारवाद पर उतर आया था। उसे रोकने के लिए अमेरिका की अगुवाई में NATO का गठन किया गया। शुरुआत में इसमें 12 सदस्य थे लेकिन आज 32 देश NATO में शामिल हैं। 


NATO का 2024 का बजट 3.5 अरब डॉलर का था। NATO को सबसे ज्यादा फंडिंग अमेरिका से मिलती है। NATO के बजट में लगभग 16 फीसदी हिस्सेदारी अमेरिका की है। जबकि, पोलैंड ऐसा देश है जो अपनी जीडीपी का 4 फीसदी से ज्यादा NATO पर खर्च करता है।

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