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DRC: पूर्व राष्ट्रपति को फांसी हुई तो मोबाइल बनने बंद हो जाएंगे?

DRC के पूर्व राष्ट्रपति को फांसी की सजा सुनाई गई है जिसके बाद पूरे देश के साथ-साथ दुनिया में भी खलबली मची हुई है।

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पूर्व राष्ट्रपति जोसफ काबीला, Photo Credit: Sora AI

दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक दुनिया का सबसे भयानक संघर्ष कौन सा हुआ है? ख़बरगांव इस आइडिया में नहीं मानता कि किसी युद्ध की विभीषिका को तोला जाना चाहिए या उसकी तुलना किसी दूसरे युद्ध से की जानी चाहिए। फिर भी एक देश का नाम आगे आता है- कॉन्गो। सेन्ट्रल अफ्रीका में बसा देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कोंगो। इसी की संक्षिप्त में DRC कहा जाता है।

 

1998 से 2003 तक चले इस संघर्ष के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि इसमें करीब 60 लाख लोग मारे गए थे। इनमें से कई की जान लड़ाई खत्म होने के बाद बीमारियों और सुविधाओं के अभाव में हुई थी पर जान तो गई थी। इसलिए दूसरे विश्व युद्ध के बाद इसे सबसे भीषण संघर्ष कहा जाता है।

 

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इस संघर्ष में अफ्रीका के 9 देश शामिल हुए थे इसलिए इसे अफ्रीका का वर्ल्ड वॉर भी कहा जाता है। इस संघर्ष के बाद ही DRC में पहली बार निष्पक्ष चुनाव हुए और पहली बार जनता ने अपना राष्ट्रपति खुद चुना। यह राष्ट्रपति थे जोसफ़ काबीला। वह 2006 से 2019 तक राष्ट्रपति रहे लेकिन उन्होंने भी एक समय के बाद अपना असली रंग दिखा दिया। पुराने राष्ट्रपतियों की तरह उन्होंने भी जनता का उत्पीड़न करना शुरू कर दिया। करोड़ों का करप्शन, विपक्षी पार्टी के नेताओं का अपहरण, चुनाव में धांधली, हत्याएं, यौन उत्पीड़न, प्रदर्शनकारियों पर गोली चलवा देना। क्या नहीं किया काबीला ने। इसी के चलते वह 2019 का चुनाव हारे भी थे। उसी समय से काबीला के दिन ख़राब चलने लगे। उन्होंने M23 जैसे विद्रोही गुटों को समर्थन देना शुरू कर दिया। यह गुट DRC की राजनीति और सेना में तुत्सी जाति की भागीदारी चाहता है। इस गुट पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगते हैं और यह भी कहा जाता है कि इसकी वजह से देश में हमेशा सिविल वॉर का खतरा बना रहता है।

 

 

ये सब आरोप काबीला पर लग तो रहे थे लेकिन इसपर कोई ऐक्शन नहीं ले रहा था। इसी साल DRC की सरकार ने उनपर मुकदमा कर दिया। जुलाई 2025 में इसकी सुनवाई शुरू हुई और अब उन्हें DRC की कोर्ट ने मौत की सज़ा सुनाई है। साथ ही उन्हें DRC की सरकार और पीड़ितों को 50 बिलियन डॉलर चुकाने का हुक्म दिया है। 50 बिलियन डॉलर माने भारतीय रुपये में लगभग साढ़े 4 लाख रुपये।
  
कोर्ट के फैसले से देश में तनाव बढ़ गया है क्योंकि अभी भी देश का एक बड़ा धड़ा उनके समर्थन में खड़ा हुआ है। सबसे ज़्यादा माहौल गोमा शहर में बन रहा है। जहां पर पूरी तरह M23 रेबल गुट का कब्ज़ा है और यहीं काबीला के सबसे ज़्यादा समर्थक रहते हैं। अफ़्रीकी अखबारों में लिखा जा रहा है कि काबीला के खिलाफ़ आए फैसले से देश में एक और विद्रोह की आशंका बढ़ गई है।

DRC की कहानी

 

DRC, सेंट्रल अफ्रीका में बसा है। इसे आप दुनिया का एक फेफड़ा भी कह सकते हैं क्योंकि दुनिया में जितने उष्णकटिबंधीय जंगल यानी रेनफारेस्ट बचे हैं, उनका लगभग 12 पर्सेंट इलाका DRC में ही पड़ता है। अच्छा, कॉन्गो नाम के दो देश हैं। आप कन्फ्यूज़ मत होइएगा। एक है यह DRC जिसकी हम बात कर रहे हैं और दूसरा है उसका पड़ोसी, रिपब्लिक ऑफ़ द कॉन्गो। इन दोनों देशों के बीच में पड़ती है कॉन्गो नदी। मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में बहने वाली कॉन्गो दुनिया की सबसे गहरी नदी है।

 

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DRC के उत्तरपूर्व में है, साउथ सूडान। पूरब में हैं- युगांडा, रवांडा, बुरुंडी और तंजानिया। दक्षिण में ज़ाम्बिया। दक्षिण-पश्चिम में अंगोला और पश्चिम में हमनाम- रिपब्लिक ऑफ़ द कॉन्गो। DRC अफ़्रीका का दूसरा सबसे बड़ा देश है और दुनिया में 11वां सबसे बड़ा। यहां हीरा, कोबाल्ट, कोल्टन, टंग्स्टन, सोना जैसे प्राकृतिक खनिज प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। DRC की आबादी लगभग 11 करोड़ है। DRC का क्षेत्रफल लगभग 23 लाख वर्ग किलोमीटर है। जो पश्चिमी यूरोप से भी बड़ा है। बस अनुमान लगाने के लिए बता रहे हैं भारत का कुल एरिया लगभग 32 लाख वर्ग किलोमीटर है यानी ठीक-ठाक ज़मीन है DRC के पास।

 

बहुत संभव है कि आप यह लेख किसी मोबाइल फोन या लैपटॉप पर पढ़ रहे होंगे। इन सभी उपकरणों में लिथियम-आयन रिचार्जेबल बैटरी इस्तेमाल होती है। सभी बैटरियों में एक चीज़ कॉमन है- कोबाल्ट। यह एक ट्रांज़िशन मेटल है, जो धरती के भीतर एक रासायनिक अवस्था में मिलता है। मिलने के बाद इसकी प्रोसेसिंग भी कठिन होती है। DRC ही दुनिया का 60 पर्सेंट से ज़्यादा कोबाल्ट पैदा करता है। इसलिए वहां अस्थिरता आती है तो पश्चिमी देशों में बैठी बड़ी-बड़ी कम्पनियों के कान खड़े हो जाते हैं।

 

प्राकृतिक संसाधनों के मामले में DRC अब तक का सबसे अमीर मुल्क है। वहां 17 लाख करोड़ से ज़्यादा क़ीमत के खनिज संसाधन ज़मीन में दबे हैं। होने को यह मुल्क सबसे अमीर देशों में एक हो सकता था। मगर, ऐसा हुआ नहीं। उसकी संपदा उसका अभिशाप बन गई। इसी संपदा के चलते वह गुलाम बना। इसी गुलामी से निजात दिलाने के नाम पर कई नेता आए और चले गए या तो लालच ने उन्हें बदल दिया या पावर के नशे में चूर होकर वे अपनी नैतिकता ही भूल गए। इसका खामियाज़ा हमेशा जनता को ही भुगतना पड़ा।

काबीला के पिता ने क्या किया था?

 

जैसे जोसफ काबीला तो देश बदलने के नाम पर आए ही थे। फिर उन्होंने देश के हाल और ख़राब ही किए। उनके पिता भी कम दोषी नहीं थे। वह भी 1997 से 2001 तक देश के राष्ट्रपति रहे हैं। इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं। दरअसल, DRC की ज़मीन में कई यूरोपियन शक्तियों की नज़र रही है पर एक तवील अरसे तक बेल्जियम ने यहां के संसाधनों का ख़ूब दुरुपयोग किया। 1950 के दशक में DRC की आज़ादी का आंदोलन तेज़ हुआ। कई नेता इसमें शामिल हुए। एक कैबिनेट बनाई गई। इसमें मोबुतु सेसे का नाम बहुत लोकप्रिय हुआ। इसकी खुद की एक प्राइवेट आर्मी भी थी। 1965 में इसी के बलबूते पर मोबुतु ने DRC की सत्ता हथिया ली फिर उसकी तानाशाही 32 साल चली।

 

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मोबुतु की तानाशाही ख़त्म हुई 1997 में। डिक्टेटरशिप के ख़ात्मे के फ़ौरन बाद यहां सिविल वॉर शुरू हो गई। इसमें DRC के दर्जनों मिलिशिया ग्रुप्स के अलावा आठ बाहरी देश भी शामिल थे। इसमें ही लगभग 60 लाख लोग मारे गए। मोबुतु की तानाशाही खत्म हुई तो लॉरेंट काबीला देश के राष्ट्रपति बने फिर 2001 में उनकी हत्या हुई। दो साल बाद सिविल वॉर भी धीमी पड़ी। लॉरेंट काबीला के बाद उनके बेटे जोसफ काबीला राष्ट्रपति बने। जोसफ़ काबीला असंवैधानिक तरीके से 2018 तक राष्ट्रपति बने रहे। दिसंबर 2018 में बड़ी जद्दोजहद के बाद यहां राष्ट्रपति चुनाव हुआ। हालांकि, यह चुनाव भी गड़बड़ ही था। इसमें जीतकर नए राष्ट्रपति बने फीलिक्स चीशेकेदी। उन्हें सरकार बनाने के लिए पूर्व प्रेज़िडेंट जोसफ़ काबीला से गठबंधन करना पड़ा।

काबीला की 'हिस्ट्री शीट'

 

काबीला पर दर्जनों केस लदे हुए हैं। कुछ हम बता देते हैं। नंबर 1- नवंबर 2021 में कॉन्गो होल्ड-अप नाम के दस्तावेज लीक हुए थे। यह अफ्रीका के इतिहास का सबसे बड़ा लीक कहा जाता है। इसमें लगभग 35 लाख दस्तावेज सार्वजनिक किए गए थे। इन डाक्यूमेंट्स में कॉन्गो के कई भ्रष्ट नेता और अधिकारियों की पोल खुली थी। एक खुलासा काबीला से जुड़ा भी हुआ कि उनके और उनके करीबियों के बैंक अकाउंट में BGFI बैंक से अवैध रूप से पैसा ट्रांसफर किया गया है। कितना पैसा? कुल मिलकर यह रकम 138 मिलियन डॉलर की बताई गई थी।

 

BGFI एक अफ़्रीकी बैंक है, जिसका मुख्यालय गैबॉन में है। यह बैंक BGFI Bank Group का हिस्सा है, जो अफ़्रीका के अलग-अलग देशों में वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है। अब तो अफ्रीका के 10 देशों में इसकी शाखाएं हैं। 2010 में कॉन्गो की राजधानी किंशासा में एक इकाई खोली और काबीला की बहन, ग्लोरिया मटेयू को अपनी सहायक कंपनी में 40% हिस्सेदारी सौंपी। इसी बैंक के ज़रिए घोटाला हुआ जो 2021 के लीक में सामने आया। दूसरा घोटाला काबीला ने चीनी कंपनियों के साथ मिलकर किया। नवंबर 2021 में द सेंट्री जो एक इन्वेस्टिगेटिव एंड पॉलिसी ऑर्गनाइजेशन है, उसकी रिपोर्ट आई। जिसमें दावा किया गया कि सड़कों, अस्पतालों और स्कूलों के निर्माण के लिए चीन की कुछ कम्पनियों ने DRC में निवेश करने का वादा किया। यह सौदा सरकार से हुआ लेकिन इसमें भी काबीला और उनके करीबियों को अलग से पैसा दिया गया। उन्होंने चीन के साथ मिलकर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का काम अपने करीबियों को दिलवाया। इससे भी उनका मोटा मुनाफा हुआ। ये सब बातें जब सेंट्री की रिपोर्ट में आई तब उनके लोगों को धमकियां भी मिलीं। काबीला ने इन रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया लेकिन उनके साथ ये दाग तो हमेशा के लिए जुड़ गए।

 

जब इस साल 2025 में उनके खिलाफ़ मुक़दमा शुरू हुआ तब भी इन दो केस पर चर्चा हुई थी। फिर मानवाधिकार उल्लंघन के कितने मामले आपको बताएं। जो काबीला की नीतियों के खिलाफ़ बोलता था। उनपर तो वह चलते-फिरते गोलियां चलवा देते थे। दो उदाहरण आपको देते हैं। पहला, 2015 में काबीला ने संविधान संशोधन की कोशिश की ताकि आजीवन सत्ता का सुख ले सकें। अब इसके खिलाफ़ वहां के छात्र खड़े हो गए। सिविल सोसायटी के लोगों ने भी उनका साथ दिया। एक बड़ा प्रदर्शन हुआ। यह एक देश व्यापी आंदोलन बन पाता कि इससे पहले ही काबीला ने इसे दबा दिया। छात्रों पर गोलियां चलवाई। 42 लोगों की इसमें जान गई थी।

 

दूसरा उदाहरण 2007 का है। DRC में Bundu dia Kongo (BDK) नाम का एक गुट है। आंदोलन कह लीजिए इसे। यह एक जातीय आंदोलन है। किसी धर्म का इससे लेना-देना नहीं है। ये अपने हिसाब से देश की नीति बदलना चाहते थे। उनकी मांग थी कि सरकार में उनके लोगों की भागीदारी हो। 2007 में BDK वालों पर काबीला ने ऐसा क्रैकडाउन करवाया कि ह्यूमन राइट्स वॉच को तुरंत स्टेटमेंट जारी करना पड़ गया। 2007 में काबीला की पुलिस ने कम से कम 106 BDK वालों की हत्या की थी। इन्हीं सब आरोपों के चलते एक मिलिट्री कोर्ट ने काबीला को मौत की सज़ा सुनाई है और राज्य को 50 बिलियन डॉलर चुकाने का आदेश दिया है। यह बात हम शुरू में भी बता चुके हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि काबीला DRC के मौजूदा राष्ट्रपति फेलिक्स त्सीकेदी की सरकार पलटना चाहते थे। इसके लिए वह उनकी सरकार के लोगों के साथ लगातार संपर्क में थे।

 

ये सब तो कोर्ट की बात हो गई। असल सवाल है कि क्या उन्हें सज़ा मिल पाएगी? इसका जवाब थोड़ा मुश्किल है। कोर्ट ने काबीला के खिलाफ़ अरेस्ट वारेंट तो जारी कर दिया है पर उन्हें गिरफ्तार करना थोड़ा मुश्किल है।  अफ़्रीकी अखबारों में लिखा जा रहा है कि काबीला संभवतः गोमा शहर में हैं। यहां उनके समर्थकों की ठीक-ठाक तादाद है। M 23 विद्रोही गुट के कब्ज़े में है यह शहर और उन्हें काबीला समर्थन देते हैं पर यह समर्थन क्यों? इससे काबीला को क्या फायदा?

 

काबीला ने M23 जैसे समूहों का समर्थन करके अपने विरोधियों को कमजोर करने और पूर्वी प्रांतों में अपना प्रभाव बनाए रखने की कोशिश की है। पूर्वी कॉन्गो में कोबाल्ट, तांबा और डायमंड जैसे बहुमूल्य खनिज हैं। M23 को समर्थन देकर काबीला इन क्षेत्रों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं। वह इन सब खदानों से ख़ूब कमाई करते हैं और इन्हें M23 जैसे संगठनों को दे देते हैं। अब कहा जा रहा है कि DRC की पुलिस या सेना गोमा शहर में उनकी गिरफ्तारी के लिए गई तो M23  से उनकी झड़प हो सकती है और जनता भड़ककर सरकार के खिलाफ़ ही विद्रोह कर सकती है।

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