भारत से अमेरिका तक, मुस्लिम मुल्क कतर इतना 'पावरफुल मीडिएटर' कैसे बना?
दुनिया
• NEW DELHI 21 Mar 2025, (अपडेटेड 21 Mar 2025, 8:50 PM IST)
कतर की बदौलत ढाई साल बाद तालिबान की कैद से एक अमेरिकी नागरिक जॉर्ज ग्लेजमैन की रिहाई हो गई है। जॉर्ज दिसंबर 2022 से तालिबान की कैद में थे। इसने एक बार फिर कतर को मजबूत 'मध्यस्थ' बना दिया है। ऐसे में जानते हैं कि कतर इतना ताकतवर मध्यस्थ कैसे बना?

कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल-थानी। (File Photo)
कतर ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उससे अच्छा 'मीडिएटर' शायद फिलहाल कोई नहीं है। कतर की बदौलत ही ढाई साल से तालिबान की कैद में रहे अमेरिकी नागरिक जॉर्ज ग्लेजमैन घर वापस लौटने वाले हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बताया, 'अफगानिस्तान में ढाई साल कैद में रहने के बाद डेल्टा एयरलाइंस के मैकेनिक जॉर्ज ग्लेजमैन अब वापस अमेरिका आ रहे हैं।'
विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने यह भी साफ किया कि अभी सिर्फ जॉर्ज को ही छोड़ा गया है। जॉर्ज को तालिबान की कैद से रिहा कराने में कतर ने बड़ी भूमिका निभाई है। कतर की मध्यस्थता में कई हफ्तों तक अफगानिस्तान और अमेरिका के अधिकारियों के बीच बात हुई थी, जिसके बाद तालिबान जॉर्ज को रिहा करने पर राजी हो गया।
66 साल के जॉर्ज ग्लेजमैन दिसंबर 2022 में 5 दिन के लिए अफगानिस्तान गए थे लेकिन तालिबान ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। पिछले साल जुलाई में जॉर्जिया के दो सांसदों ने दावा किया था कि तालिबान ने जॉर्ज को बाकी कैदियों के साथ 9X9 फीट के सेल में रखा है। तब अमेरिकी सांसदों ने यह भी बताया था कि दिसंबर 2022 से जुलाई 2024 तक जॉर्ज को कॉन्सुलर एक्सेस भी नहीं मिला। इस दौरान उन्हें सिर्फ 7 बार ही अपने परिवार से बात करने को मिला था।
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कतर ने कैसे करवाई रिहाई?
अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद अमेरिका ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। अफगानिस्तान में अब अमेरिका की कोई राजनयिक मौजूदगी नहीं है। अफगानिस्तान में अमेरिका का प्रतिनिधित्व कतर ही करता है।
दिलचस्प बात है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का समझौता भी कतर ने ही करवाया था। यह समझौता 29 फरवरी 2020 को कतर की राजधानी दोहा में हुआ था। इसके बाद ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना पूरी तरह वापस आ गई थी।
He has arrived in Doha and will depart for his home country at a later time. Qatar Facilitates Release of US Citizen George who had been detained in Afghanistan#MOFAQatar pic.twitter.com/LJ8WSBQoLZ
— Ministry of Foreign Affairs - Qatar (@MofaQatar_EN) March 20, 2025
खैर, अफगानिस्तान में तालिबान का शासन शुरू होने के बाद से कतर की भूमिका और भी अहम हो गई। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा, 'कतर एक बार फिर विश्वसनीय भागीदार और भरोसेमंद मध्यस्थ साबित हुआ है, जिसने मुश्किल से मुश्किल बातचीत को आसान बना दिया।' मार्को रुबियो ने कहा कि वे कतर का शुक्रगुजार करते हैं, जिसने जॉर्ज ग्लेजमैन की रिहाई में अहम भूमिका निभाई।
जनवरी में कैदियों की अदला-बदली में रयान कॉर्बेट और विलियम मैकेंटी के बाद जॉर्ज इस साल अफगानिस्तान से रिहा होने वाले तीसरे अमेरिकी हैं। कॉर्बेट और मैकेंटी की रिहाई का सौदा बाइडेन सरकार के आखिरी दिनों में हुआ था। समझौते के तहत अमेरिका खान मोहम्मद को रिहा करने पर सहमत हुआ था, जो एक तालिबानी था और अमेरिकी जेल में बंद था। अमेरिका और तालिबान के बीच यह डील भी कतर ने ही करवाई थी।
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मध्यस्थता में कब-कब कामयाब रहा कतर?
पिछले कुछ सालों में कतर एक मजबूत 'मध्यस्थ' बनकर उभरा है। कतर की बदौलत ही अमेरिका और तालिबान के बीच 20 साल की जंग खत्म हो पाई थी। साल 2001 से अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में बैठी थी। 20 साल तक अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत चलती रही लेकिन इसका नतीजा तब निकला जब यह बैठक दोहा में हुई।
29 फरवरी 2020 को दोहा में एक समझौता हुआ, जिसमें तय हुआ कि अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से वापस आ जाएगी। आखिरकार 15 अगस्त 2021 को तालिबान का काबुल पर कब्जा हो गया।
इससे पहले 2012 में हमास और फतेह के बीच समझौता करने में भी कतर की अहम भूमिका थी। इस समझौते के बाद फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक में फतेह सरकार बन सकी। इससे पहले 2011 में कतर ने ही सूडान की सरकार और विद्रोही गुट लिबरेशन एंड जस्टिस मूवमेंट के बीच समझौता करवाया था।
साल 2008 में कतर की मध्यस्थता में ही यमन की सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच समझौता हुआ था। यह बात अलग है कि इसके बावजूद यमन में शांति नहीं लौट सकी। 2009 में सूडान और चाड और फिर 2010 में जिबूती और इरिट्रिया के बीच संघर्ष खत्म करवाने में भी कतर ने बड़ी भूमिका निभाई।
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इजरायल-हमास की डील में भी कतर
इजरायल और हमास के बीच भी इस साल 15 जनवरी को जो सीजफायर डील हुई थी, उसमें कतर की अहम भूमिका थी। कतर के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन अब्दुल रहमान अल थानी ने इस डील में अहम भूमिका निभाई थी।
वैसे तो इजरायल और हमास के बीच जंग खत्म करवाने के लिए और एक सीजफायर के लिए अमेरिका और मिस्र समेत कई देश महीनों से लगे थे लेकिन कतर के आने के बाद माहौल काफी बदल गया।
इस साल 14 जनवरी को कतर में ही प्रधानमंत्री अब्दुल रहमान अल थानी की मेहमाननवाजी में इजरायल और हमास के बीच आखिरी बातचीत हुई थी। इसी बातचीत के बाद दोनों के बीच सीजफायर की शर्तें तय हुईं और आखिरकार कैदियों के बदले बंधकों की रिहाई की बात बन पाई।
हालांकि, अब यह समझौता टूट गया है क्योंकि हमास ने और इजरायली बंधकों को रिहा करने से मना कर दिया है। इसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सेना को हमास के खिलाफ गाजा में तेज ऑपरेशन करने का आदेश दे दिया है।
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कतर कैसे बन गया 'मध्यस्थता' का किंग?
कतर ने दशकों पहले से ही अपनी छवि बदलनी शुरू कर दी थी। साल 1995 में जब हमाद बिन खलीफा अल थानी कतर के शासक बने तो उन्होंने शांति समझौतों में अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी।
इसके अलावा, बाकी खाड़ी मुल्कों की तरह ही कतर की अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक तेल और गैस के भंडार पर निर्भर थी। अपनी अर्थव्यवस्था और खुद को मजबूत करने के लिए कतर ने दूसरे रास्ते तलाशे, जिसमें 'मध्यस्थता' सबसे अच्छा रास्ता था। कतर को अपने तेल और गैस के भंडार से जो कमाई होती थी, उससे उसने दूसरे देशों में निवेश करना शुरू कर दिया।
कतर के सारे निवेश का कामकाज कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (QIA) संभालती है। 2023 तक QIA ने दुनियाभर 40 से ज्यादा देशों में निवेश कर रखा था। अनुमान है कि 2023 के आखिर तक दुनियाभर में कतर ने 475 अरब डॉलर (करीब 40 लाख करोड़ रुपये) का निवेश किया था। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी समेत दुनिया के कई देशों में उसकी संपत्तियां हैं। इन सबने कतर की 'कट्टर मुस्लिम' छवि को 'सॉफ्ट' कर दिया। शायद यही वजह है कि 2022 में उसे फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी का मौका मिला। फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी करने वाला कतर पहला मुस्लिम देश है।
इसके अलावा, कतर ने न सिर्फ अमेरिका और यूरोपीय देशों समेत दुनियाभर की सरकारों से अपने रिश्ते सुधारे बल्कि तालिबान, हमास, अल-कायदा और हिज्बुल्लाह जैसे कट्टरपंथी संगठनों से भी दोस्ती बनाकर रखी। नतीजा यह हुआ कि कतर अब अंतर्राष्ट्रीय ताकतों और कट्टरपंथी संगठनों के बीच 'पुल' बन गया है। इसका मतलब हुआ कि अगर अब किसी को तालिबान या हमास जैसे संगठनों से कोई सौदा करना है तो पहले कतर से बात करनी होगी।
हालांकि, इस कारण कतर पर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप भी लगते रहे हैं। साल 2017 में सऊदी अरब ने कतर से आतंकवादी और कट्टरपंथी संगठनों का साथ न देने को कहा था। इसके बाद सऊदी अरब, UAE, बहरीन और मिस्र ने कतर से राजनयिक संबंध तोड़ दिए थे। हालांकि, कतर ने कहा था कि वह आतंकवाद का समर्थन नहीं करता और अलग-अलग पक्षों के बीच 'मध्यस्थ' की भूमिका निभाता है।
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