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भारत और पाकिस्तान, आजादी के बाद कितनी कम हुई गरीबी, क्या कहता है डेटा

आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान दोनों ने आर्थिक प्रगति की दिशा में काम किया लेकिन दोनों की ग्रोथ ट्रैजेक्टरी बिल्कुल अलग रही है।

pm modi and shahbaz shrif

पीएम मोदी और शाहबाज शरीफ

हाल ही में गरीबी को लेकर विश्व बैंक ने एक डेटा रिलीज किया। यह डेटा भारत और पाकिस्तान दोनों आजादी के बाद से ही आर्थिक प्रगति की कहानी बयां करता है कि दोनों देशों ने किस तरह से गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। विशेष रूप से पिछले 15 वर्षों में, दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच उनकी प्राथमिकताओं में एक बड़ा फर्क दिखता है। जबकि भारत के लिए शनिवार को जारी किए गए आंकड़े 2011-12 और 2022-23 के बीच गरीबी का तुलनात्मक विश्लेषण देते हैं, पाकिस्तान के लिए ये आंकड़े 2017-18 और 2020-21 के बीच की स्थिति को दर्शाते हैं।

 

यह आंकड़े भी ऐसे समय में जारी किए गए हैं जब कुछ दिन पहले ही जापान को पीछे छोड़कर भारत विश्व में चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था बन गया था। वहीं पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले महीने IMF से एक और बेलआउट पैकेज के लिए खबरों में थी, क्योंकि वह डूबने से बचने के लिए संघर्ष कर रही है। भारत की विकास कहानी उसके गवर्नेंस मॉडल - विकास और गरीबी उन्मूलन - का परिणाम है, जबकि पाकिस्तान की स्थिति फंड्स के दुरुपयोग और आतंकवाद की पॉलिसी का परिणाम है।

 

यह भी पढ़ेंः PAK को मिला एशियन बैंक से 800 मिलियन डॉलर का लोन, भारत ने क्या कहा?

भारत में गरीबी कम हुई

महंगाई को अपनी प्राइमरी संकेतकों में से एक रखते हुए, विश्व बैंक ने वैश्विक आय की सीमा को $2.15 प्रति व्यक्ति, प्रति दिन से बढ़ाकर $3 प्रति व्यक्ति, प्रति दिन कर दिया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने प्रतिशत लोग 'अत्यधिक गरीबी' रेखा से ऊपर रहते हैं।

 

विश्व बैंक की 'Poverty and Shared Prosperity' रिपोर्ट के अनुसार, प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि के बावजूद, 2012 और 2022 के बीच भारत में अत्यधिक गरीब कुल जनसंख्या के 27.1 प्रतिशत से घटकर 5.3 प्रतिशत हो गई।

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 में भारत में 75.24 मिलियन (7.5 करोड़) लोग अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे, जिनकी संख्या 2011-12 में 344.47 मिलियन (34.4 करोड़) थी जो कि एक बड़ी गिरावट को दर्शाता है। इसका मतलब है कि सिर्फ 11 सालों में भारत में 269 मिलियन (26.9 करोड़) लोग अत्यधिक गरीबी के स्तर से बाहर आ गए जो कि पाकिस्तान की पूरी जनसंख्या से भी अधिक है।

पाकिस्तान में कहानी उल्टी है

हालांकि, पाकिस्तान के लिए यह कहानी बिल्कुल उल्टी है। अत्यधिक गरीबी के आंकड़े 2017 से 2021 के बीच 4.9 प्रतिशत से बढ़कर 16.5 प्रतिशत हो गए। विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के आउटडेटेड हाउसहोल्ड इनकम एंड एक्सपेंडीचर सर्वे के संभवतः यह स्तर दिख रहा है वरना स्थिति इससे भी ज्यादा खराब होने की संभावना है।  इसके अलावा, पाकिस्तान में 2017 में समग्र गरीबी - $4.2 प्रति व्यक्ति, प्रति दिन - के स्तर पर कुल जनसंख्या के 39.8 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 44.7 प्रतिशत से अधिक हो गई।

लोन पर निर्भर पाकिस्तान

इस बीच, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वैश्विक संस्थानों और फ्रेंडली देशों से लोन पर पूरी तरह से निर्भर रही है। उसने IMF से 25 बेलआउट पैकेज लिए हैं, जिनकी कुल राशि $44.57 बिलियन है, और विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक से $38.8 बिलियन का लोन लिया है।

 

इसके अलावा, चीन से $25 बिलियन और यूरोबॉण्ड्स और अन्य उधारदाताओं से $7.8 बिलियन का लोन है। सऊदी अरब, UAE, और पेरिस क्लब ने भी पैसे की कमी से जूझ रहे इस्लामाबाद को कई बिलियन डॉलर का लोन दिया है।

 

इस्लामाबाद की जवाबदेही की कमी के कारण उसे कई बार अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा फटकार लगाई गई है। पाकिस्तान की भारत के प्रति विरोध की नीति और नई दिल्ली से तुलना करने की पुरानी आदत ने उसे सेना के लिए ज्यादा से ज्यादा धन मुहैया कराने के लिए मजबूर किया है, जो बदले में, भारत के खिलाफ आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों का समर्थन करके  'क्रॉस-बॉर्डर टेरर' करते हैं।

 

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